मोदी से इतनी नाराजगी है तो फिर शिवसेना सरकार से अलग क्यों नहीं हो जाती?

नई दिल्ली। कल लोकसभा में विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर जो वोटिंग हुई उसमें एनडीए की सहयोगी शिवसेना ने हिस्सा नहीं लिया. मोदी सरकार के पक्ष में 325 वोट पड़े और विपक्ष के पक्ष में 126 वोट पड़े थे. इस अविश्वास प्रस्ताव में शिवसेना शामिल नहीं हुई और मोदी सरकार का साथ नहीं दिया जबकि उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना केंद्र की मोदी सरकार में साझीदार है. इसके अलावा शिवसेना के अनंत गीते मोदी सरकार में मंत्री हैं वहीं महाराष्ट्र में भी शिवसेना सरकार में शामिल है.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने की थी उद्धव ठाकरे से मुलाकात
पिछले महीने 6 जून की रात उद्धव ठाकरे के घर जाकर अमित शाह ने मुलाकात की थी. उम्मीद की जा रही थी कि दोनों दलों में जो तल्खी है वो दूर हो रही है. लेकिन कल जब मोदी को साथियों की जरूरत थी तब उद्धव ठाकरे ने साथ नहीं दिया. शिवसेना ने सरकार में रहते हुए कल वोटिंग में सरकार का साथ छोड़ दिया. अब सवाल ये है तो मोदी से इतनी नाराजगी है तो फिर शिवसेना सरकार से अलग क्यों नहीं हो जाती?

दोनों पार्टियां साथ लड़ें तो बीजेपी का फायदाः सीएसडीएस
मई महीने में सीएसडीएस ने जो सर्वे किया था उसके मुताबिक दोनों पार्टियां मिलकर लड़ती हैं तो फिर 48 फीसदी वोट मिल सकते हैं. इसमें बीजेपी को 29 फीसदी और शिवसेना को 19 फीसदी वोट का अनुमान है. इसके मुताबिक 2014 की तुलना में बीजेपी को 2 फीसदी का फायदा जबकि शिवसेना को 5 फीसदी का नुकसान होगा. लेकिन बात अब इससे आगे जा चुकी है.

2019 में शिवसेना के अलग लड़ने की चर्चा
हालांकि ये चर्चा जोरों पर है कि शिवसेना अलग लड़ने की तैयारी कर रही है. सवाल ये है कि प्रचार में वोटरों को उद्धव क्या कहेंगे? शिवसेना किसे पीएम बनाना चाहती है? शिवसेना जीतेगी तो केंद्र में किसे समर्थन करेगी? क्या शिवसेना मोदी के बजाए राहुल को पीएम बनाना चाहती है?

ये वो ऐसे सवाल हैं जो उद्धव ठाकरे को लोकसभा चुनाव में अलग लड़ने पर परेशान करने वाले हैं. ऐसे में बहुत मुमकिन है कि शिवसेना भले ही अभी अलग लड़ने की बात कह रही है लेकिन चुनाव के वक्त साथ भी आ सकती है. वहीं ये भी संभव है कि अगर चुनाव के शिवसेना वक्त साथ नहीं आई तो नतीजों के बाद तो पक्का साथ आएगी. नहीं तो मोदी के नाम पर पार्टी निपट भी सकती है.

 

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