यहां तो 6 साल बाद भी नहीं छोड़ रहे मलाईदार कुर्सियां

seatswww.tahalkaexpress.com लखनऊ। यूपी कैबिनेट की बैठक में नई तबादली नीति को मंजूरी देने के फैसले के बाद नगर निगम में दो दर्जन अफसरों पर तबादले की तलवार लटक गई है। 6 और उससे अधिक वर्षों से एक ही कुर्सी पर काबिज इन अफसरों के बीच नीति जारी होने के बाद से ही तबादले पर चर्चा शुरू हो गई है।

अफसर अभी से कुर्सी बचाने या कुछ जुगत लगाकर राजधानी में ही टिके रहने का जुगाड़ खोजने लगे हैं। यह हाल केवल नगर निगम का ही नहीं है। एलडीए और बिजली विभाग में भी बड़े पैमाने पर ऐसे ही अधिकारी और बाबुओं का बोलबाला है। चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से कईयों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं होती।

नगर विकास सचिव एसपी सिंह के सेवा विस्तार के मामले की सुनवाई करते हुए अक्टूबर में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी छह साल और ज्यादा अविधि से एक ही निकाय में तैनात जेई और अन्य अधिकारियों के तबादले के निर्देश दिए थे। हालांकि बाद में यह प्रक्रिया रुक गई थी।
तबादला नीति की जद में अपर नगर आयुक्त से लेकर सैनिटरी इंस्पेक्टर और जेई तक शामिल होंगे। इनकी संख्या दो दर्जन के करीब है। नगर आयुक्त उदयराज सिंह ने बताया कि यह नीतिगत निर्णय है, इसका अनुपालन किया जाएगा। तबादला शासन से होता है। वहां से जो आदेश आएगा उस पर अमल होगा।

लंबे अरसे से जमें अफसर:
– पीके श्रीवास्तव, अपर नगर आयुक्त, 2008 (उप नगर आयुक्त पद पर तैनाती हुई थी)
– अरुण कुमार शर्मा, सहायक नगर आयुक्त (प्रतिनियुक्ति पर), दिसंबर 2009
– फरीद अख्तर जैदी, सहायक अभियंता, अक्तूबर 2009
– रश्मि गर्ग, चिकित्साधिकारी ग्रेड, 1 अक्तूबर 1990
– रामनरेश, वैद्य ग्रेड-1 श्रेणी-2, जुलाई 2006
– गंगाराम गौतम, उद्यान अधीक्षक, जुलाई 2003
– राजू चौरसिया, उद्यान अधीक्षक, दिसंबर 2009
– अखिलेश कुमार नायक, कर अधीक्षक, मई 2006
– नरेंद्र देव, कर अधीक्षक, जुलाई 2007
– बृजेश कुमार वर्मा, जुलाई 2007
– आशीष वाजपेई, मुख्य सफाई एवं खाद्य निरीक्षक, जुलाई 2007
– नकुल सोनकर, कर एवं राजस्व निरीक्षक, जून 2009
– प्रीतम वर्मा, कर एवं राजस्व निरीक्षक, नवंबर 2008

– अवर अभियंता सिविलः
प्रमोद वर्मा, जुलाई 2008
आलोक कुमार श्रीवास्तव, जुलाई 2004
गुलाम अहमद सिद्दीकी, नवंबर 2005
सत्येंद्र बहादुर सिंह, मई 2006
दिनेश कुमार मिश्रा, जून 2006
जहूर आलम, जून 2006
विनोद कुमार पाठक, जुलाई 2006
राजेंद्र प्रसाद, जुलाई 2007
अंगद सिंह, जुलाई 2007
छोटे लाल वर्मा, जुलाई 2007
महेश्वरी प्रसाद श्रीवास्तव, जुलाई 2007
धीरेंद्र प्रसाद पांडेय, जुलाई 2008
किशोरी लाल, जनवरी 2009

प्रॉपर्टी समेत मलाईदार कुर्सियों पर वर्षों से जमे:
एलडीए में प्रॉपर्टी, ठेकेदारी रजिस्ट्रेशन, भुगतान, कमर्शल और अधिष्ठान समेत दर्जनों अहम कुर्सियों पर जमे बाबू पिछले 10 वर्षों से हटे ही नहीं। वीसी कोई आए उनकी कुर्सी नहीं बदलती। आलम यह है कि प्रॉपर्टी विभाग में काशीनाथ, मुक्तेश्वर नाथ ओझा, राम नरेश यादव और अवधेश सिंह एक ही कुर्सी पर पिछले छह से 10 वर्ष से काबिज हैं।

कमर्शल प्रॉपर्टी का काम विनय सिंह और महेंद्र प्रताप सिंह के पास से कहीं गया ही नहीं। वहीं ठेकेदारों के रजिस्ट्रेशन और उन्हें हो चुके भुगतान के लिए राम सिंह और जितेंद्र सिंह से ही मिलना पड़ता है। यही नहीं अधिष्ठान में रमेश चंद्र शर्मा और रामकमल रस्तोगी पिछले पांच से ज्यादा वर्षों से काबिज हैं। वहीं महकमे का उपाध्यक्ष कोई भी हो, उनके कैंप ऑफिस का चार्ज हमेशा केके वर्मा के पास ही रहता है।

40% से ज्यादा का कभी तबादला ही नहीं हुआ:
लेसा में चालीस फीसदी से ज्यादा बाबू, जेई और एक्सईएन है , जिनका पिछले तीन साल से कहीं तबादला नहीं हुआ है । इस बाबत पूछने पर लेसा चीफ इंजीनियर एसके वर्मा का कहना है कि 2006 में लोगों का तबादला किया गया था, उसके बाद भी बहुत से बाबू स्तर के कर्मचारी है, जो पिछले 10 साल से वहीं जमे हुए है। उन्होंने कहा कि समय समय तबादला किया जाता है, लेकिन कर्मचारियों की कमी के कारण बहुत ज्यादा फेरबदल नहीं हो सकता है।

 

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