याकूब मेमन के बाद फांसी का अगला नंबर महाराष्ट्र की इन दो महिलाओ का

अदालत के अगले फैसले तक कोल्हापुर की दोनों बहनों की फांसी की सजा पर रोक लगी हुई है।

kolhapur-sistersतहलका एक्सप्रेस प्रतिनिधि,  बेबाक राशिद सिद्दीकी पुणे। याकूब मेमन को मिली मौत की सजा के बाद महाराष्ट्र में अगली फांसी कोल्हापुर की दो बहनों को हो सकती है। इन पर 13 बच्चों का अपहरण करने और उनमें से नौ की हत्या करने का दोष सिद्ध हो चुका है। राष्ट्रपति ने भी इनकी दया याचिका खारिज कर दी है। फिलहाल, मुंबई हाईकोर्ट में फांसी को उम्रकैद में बदलने को लेकर दायर याचिका के निपटारे तक इनकी फांसी पर रोक लगी हुई है। अगर इन बहनों को फांसी होती है तो यह देश का पहला मामला होगा जब दो महिलाओं को फांसी दी जाएगी।

क्या है इनका अपराध?

अदालत में दायर पुलिस की चार्जशीट के मुताबिक, कोल्हापुर की रहने वाली रेणुका शिंदे और सीमा गावित ने गुजरात और महाराष्ट्र के 42 बच्चों को मारने की बात कबूली थी। दोनों बहनें अपनी मां अंजनाबाई के साथ मिलकर एक से डेढ़ साल के बच्चों का अपहरण करती थीं और इन्हें भीख मांगने को मजबूर करती थीं। जो बच्चे भीख मांगने से इनकार कर देते, वे उनकी हत्या कर देती थीं। पुलिस के मुताबिक, दोनों बहनें हत्या करने के लिए बच्चों के सिर पर लोहे की रॉड से वार करने, गला दबाने या फर्श पर पटक कर मारने जैसे निर्मम तरीके अपनाती थीं। अंजनाबाई की 1997 में ही मौत हो चुकी है। फिलहाल, ये दोनों बहनें पुणे की यरवदा जेल में बंद हैं।

फैसला आने तक लगी है रोक
बॉम्बे हाईकोर्ट ने मृत्युदंड को उम्रकैद में तब्दील करने की मांग करने वाली याचिका का निपटारा होने तक इनकी फांसी पर रोक लगा दी है। राष्ट्रपति के पास से दया याचिका खारिज होने के बाद इन दोनों की ओर से हाईकोर्ट में अपील की गई। इसे जस्टिस वीएम कानाडे और पीडी कोड़े की बेंच ने मंजूर कर लिया। बेंच ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार से इस मामले में जवाब भी तलब किया था। संविधान के अनुच्छेद-226 के तहत हाईकोर्ट को दया याचिका पर विचार करने का अधिकार है। इस मामले में अगली सुनवाई 24 नवंबर, 2015 को होगी। राज्य सरकार ने आश्वासन दिया है कि वह याचिका का निपटारा होने तक दोनों बहनों को फांसी नहीं देगी।

कोल्हापुर के सेशन जज ने साल 2001 में इन्हें दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में इनकी फांसी की सजा बरकरार रखी। राष्ट्रपति के पास इन्होंने साल 2010 में दया याचिका दायर की थी।

 

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