याकूब मेमन से पहले शबनम-सलीम भी प्रेसिडेंट से मांग चुके हैं जीवनदान

salimतहलका एक्सप्रेस ब्यूरो, लखनऊ। 1993 में मुंबई में हुए दो घंटे में 13 धमाकों और इसमें 257 लोगों की मौत के मास्‍टरमाइंड याकूब मेमन ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव पिटीशन खारिज होने के तुरंत बाद प्रेसिडेंट को दया याचिका भेजी है। यूपी के मुरादाबाद में भी ऐसा मामला आ चुका है। यहां प्रेमी सलीम के साथ मिलकर मां-बाप सहित घर के सात लोगों की हत्या करने वाली शबनम ने भी अपनी डेथ वारंट के खिलाफ राष्ट्रपति को दया याचिका भेजी है। शबनम ने अब अपने बेटे को ढाल बनाकर कोर्ट से जिंदगी की भीख मांगी है। दया याचिका में उसने कहा है कि उसका बेटा अभी छोटा है। उन दोनों के अलावा उसका कोई नहीं है। लिहाजा उसे जीवनदान दिया जाए।
घटना 15 अप्रैल 2008 में यूपी के अमरोहा की है। घटना को अंजाम देने वाले सलीम और शबनम एक दूसरे से प्यार करते थे और विवाह करना चाहते थे। अमरोहा जिले के हसनपुर कस्बे से सटे गांव बावनखेड़ी की शिक्षामित्र शबनम ने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि घरवाले आरा मशीन के मजदूर सलीम से उसके प्यार के खिलाफ थे। शबनम ने अपने प्रेमी सलीम के साथ मिलकर 10 महीने के बच्चे भतीजे समेत पूरे परिवार की हत्या कर दी। घटना को अंजाम देने के बाद शबनम ने पुलिस को गुमराह करने की कोशिश गई और कहा कि कुछ अज्ञात लोगों ने उसके घर पर हमला किया था। घटना की जांच के दौरान सामने आया कि शबनम ने सलीम की मदद से अपने परिवार के सदस्यों पिता, मां, दो भाइयों, दोनों भाभियों, सात महीने के भतीजे और फुफेरी बहन की हत्या कर दी थी। इन सभी को उसने दूध में नशीला पदार्थ मिलाकर पिलाया और फिर सलीम के सहयोग से उनको मार डाला। इसके बाद शबनम ने अपने 10 महीने के भतीजे की भी गला घोंटकर हत्या कर दी थी। इस जघन्य हत्याकांड में शामिल महिला शबनम और उसके प्रेमी सलीम को यूपी की एक सत्र अदालत ने 2010 में मौत की सजा सुनाई थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी साल 2013 में सेशन कोर्ट का फैसला बरकरार रखा था। दोनों की मौत की सजा के लिए 21 मई 2015 को वारंट जारी किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी 1 मई को शबनम और सलीम को सुनाई गई सजा को बरकरार रखा और 15 मई को इस बारे में अपना विस्तृत फैसला सुनाया था। इस दौरान शबनम की ओर से अदालत में पेश हुए वरिष्ठ वकील आनंद ग्रोवर ने कोर्ट से कहा कि मौत की सजा को तामील किए जाने के संबंध में कोई भी निर्णय लिए जाने से पहले मामले में सुनवाई की जाए।
इस आधार पर मिला स्टे
डेथ पेनाल्‍टी लेटिगेशन क्‍लीनिक के निदेशक आलोक सुरेंद्र नाथ ने बताया कि निठारी कांड के अभियुक्त सुरेंद्र कोहली के केस के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि डेथ वारंट से पहले मुजरिम को नोटिस दिया जाएगा। सलीम और शबनम के मामले में ऐसा नहीं किया गया। भारत के संविधान के तहत यह उनका मौलिक अधिकार है। इसी को आधार बनाकर उन्होंने अपील की। इतना ही नहीं, डेथ वारंट पर फांसी की तारीख भी नहीं लिखी हुई थी। सलीम ने मार्च 2015 में इंटर की परीक्षा दी थी। उसका रिजल्‍ट पेंडिंग है। सलीम ने इग्‍नू से बैचलर ऑफ प्रिपेट्री एग्‍जाम (बीपीपी) और सर्टिफिकेट इन फूड एंड न्यूट्रीशन (एफसीएल) का कोर्स जेल में रहकर ही किया है।
mitrashenइस विधायक को भी मिली थी फांसी की सजा
फैजाबाद की मि‍ल्‍कीपुर वि‍धानसभा क्षेत्र से सपा के टि‍कट पर जीतकर वि‍धानसभा पहुंच चुके मि‍त्रसेन यादव को भी फांसी की सजा मिल चुकी है। 11 जुलाई 1934 को फैजाबाद के एक गांव में जन्‍मे मि‍त्रसेन को साल 1966 में जटाशंकर ति‍वारी और सुरेंद्र ति‍वारी के दोहरे कत्‍ल के लि‍ए फांसी की सजा सुनाई गई थी। इनकी हत्‍या उन्‍होंने 1964 में की थी। साल 1972 में कांग्रेसी नेता कमलापति त्रि‍पाठी ने उत्‍तर प्रदेश के राज्‍यपाल से इनकी फांसी माफी की अपील की तो सात अक्‍टूबर 1972 को तत्‍कालीन राज्‍यपाल ने इन्‍हें माफी दे दी।
तीन साल में बढ़े 15 मुकदमें
गंभीर बात यह है कि राज्‍यपाल‍ से जीवनदान मि‍लने के बाद भी मि‍त्रसेन यादव ने अपराध से कि‍नारा नहीं कि‍या है और तकरीबन एक दर्जन मुकदमे इसके बाद उनपर दर्ज हुए हैं। इसमें 11 बार कि‍सी की हत्‍या करने की कोशि‍श और तीन बार कि‍सी की हत्‍या कर देने का मुकदमा दर्ज है। साल 2009 में जब मि‍त्रसेन यादव ने लोकसभा का चुनाव लड़ा था, तब इन पर कुल 20 मुकदमे थे, लेकिन तीन साल में 15 मुकदमे बढ़ गए।
 

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