याद करो कुर्बानी: गोलियों से छलनी मेजर शैतान सिंह ने पोस्‍ट छोड़ने से किया इंकार और फिर…

अनूप कुमार मिश्र

नई दिल्‍ली। याद करो कुर्बानी की पांचवी कड़ी में  1962 के इंडो-चाइना युद्ध के दौरान मेजर शैतान सिंह की जांबाजी की कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं. मेजर शैतान सिंह का सैन्‍य जीवन 1 अगस्‍त1947 को कुमाऊं रेजीमेंट के साथ शुरू हुआ था. मेजर शैतान सिंह के पिता हेम सिंह जी भी भारतीय सेना में लेफ्टीनेंट कर्नल के पद पर तैनात थे. भारत और चीन के बीच 1962 का युद्ध छिड़ चुका था. इस दौरान,13 कुमाऊं रेजीमेंट को चुसुल सेक्‍टर में तैनात किया गया था. इस रेजीमेंट की सी कंपनी की कमान मेजर शैतान सिंह के पास थी. यह कंपनी समुद्र से करीब 5000 मीटर की ऊंचाई पर स्थिति रेजंग ला की वादियों में तैनात थी.

भौगोलिक स्थिति ने भारतीय सेना को दो हिस्‍सों में बांटा
रेजंग ला की भौगोलिक स्थिति कुछ इस तरह की थी कि कंपनी की पांच प्‍लाटून नदी के एक तरफ और बाकी प्‍लाटून नदी की दूसरी तरफ तैनात थी. जिसके चलते आपदा के दौरान कंपनी के सभी जवानों का एक जगह इकट्ठा हो पाना संभव नहीं था. वाकया 18 नवंबर की सुबह का है. हाड कंपाने वाली सर्द रात का धीरे-धीरे अंत हो रहा था. घाटी में चल रही सर्द हवाओं की मार ऐसी थी, जैसे शरीर पर कोई छूरियां चला रहा हो. अब घाटी में हल्‍का हल्‍का उजाला होने लगा था. अचानक , भारतीय सैनिकों की निगाह नाले के रास्‍ते प्‍लाटून संख्‍या सात और आठ की तरफ दुश्‍मन सेना की फौज पर पड़ी. मेजर शैतान सिंह को समझने में देर नहीं लगी कि दुश्‍मन प्‍लाटून संख्‍या सात और आठ पर हमला करने के इरादे से आगे बढ़ रहा है.

भारतीय सेना की गोलियों ने मचाई तबाही, दुश्‍मन की लाशों से पटा नाला
मेजर शैतान सिंह के का एक इशारे मिलते ही भारतीय जवानों ने अपनी पोजीशन संभाल ली. अब इंतजार था कि दुश्‍मन सेना एक निश्चित दूरी तक पहुंचे, जिसके बाद बदनियत लेकर आए दुश्‍मन को उसी की भाषा में जवाब दिया जाए. सुबह पांच बजे यह इंतजार खत्‍म हुआ. नाले के रास्‍ते से चीन की सेना का प्‍लांटून सात और आठ की तरफ बढ़ना लगातार जारी था. चीनी सेना के क्‍लोज रेंज में आते ही मेजर शैतान सिंह ने दुश्‍मन सेना पर राइफल्‍स, लाइट मशीन गन, ग्रेनेड और मोर्टार से हमला कर दिया. भारतीय सेना का यह हमला इतना जबरदस्‍त था कि देखते ही देखते नाला दुश्‍मन सेना की लाशों से पट गया.

भारतीय जवानों की गोलीबारी से घबराया दुश्‍मन, बदलनी पड़ी रणनीति 
चीन की बाकी बची सेना अब अपनी जान बचाने के लिए पत्‍थरों और लाशों का सहारा लेने के लिए मजबूर हो गई थी. चीनी सेना का मंसूबा पूरी तरह से नकामा हो चुका था. बावजूद इसके, चीनी सेना ने अब तक रेजंग ला की पहाडि़यों पर अपना कब्‍जा करने का मंसूबा नहीं छोड़ा था. थोड़े इंतजार के बाद चीनी सेना करीब 350 लड़ाकों को इकट्ठा करने में कामयाब रही. इस बार चीनी सेना ने अपने हमले की रणनीति बदल ली थी. हमले से पहले उसने भारतीय सेना को कमजोर करने के लिए तोप और मोर्टार से गोलाबारी शुरू कर दी थी.

major shaitan singh paramvir chakra
                                       मेजर शैतान सिंह की बहादुरी, नेतृत्‍व क्षमता और ड्यूटी के प्रति समर्पण को देखते हुए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्‍मानित किया गया.

मेजर शैतान सिंह के जवानों ने चुन-चुन कर दुश्‍मनों को बनाया निशाना
सुबह करीब 5.30 बजे गोलाबारी शुरू होने के साथ दुश्‍मन सेना के करीब350 लड़ाके प्‍लाटून नंबर नौ की तरफ बढ़ने लगे. वहीं प्‍लाटून नंबर नौ के जवान चीनी सेना के एक-एक लड़ाके को अपनी गोली का शिकार बनाने के लिए तैयार बैठी थी. भारतीय सेना इंतजार कर रही थी कि दुश्‍मन90 मीटर के दायरे के भीतर आए, फिर उनको चुन-चुन कर निशाना बनाया जाए. कुछ ही देर में चीनी दुश्‍मन 90 मीटर के दायरे के भीतर था. भारतीय सैनिकों ने बिना समय गवाए एक बार फिर चीनी सेना के लड़ाकों को अपनी गोलियों का शिकार बनाना शुरू कर दिया. देखते ही देखते एक बार फिर नाला चीनी सैनिकों की लाशों से पट गया था.

मेजर शैतान सिंह के युद्ध कौशल से पींठ दिखाने को मजबूर हुआ दुश्‍मन
लगातार दूसरे हमले में नाकाम होने के बाद दुश्‍मन बुरी तरह से बौखलाया हुआ था. सामने से किए गए दो हमलों में करारी हाल मिलने के बाद चीन की सेना ने तीसरे हमले के लिए नया षडयंत्र रचाना शुरू कर दिया. षडयंत्र के तहत, इस बार भारतीय सेना को पीछे से निशाना बनाने की साजिश रची गई. इस साजिश को अंजाम देने के लिए दुश्‍मन सेना ने अपनके करीब 620 लड़ाके तैयार किए. जिसमें दुश्‍मन सेना के 400 लड़ाकों को प्‍लाटून संख्‍या आठ पर पीछे से हमला करने के किए कहा गया,वहीं बाकी बचे 120 लड़ाकों को प्‍लाटून संख्‍या सात पर पीछे से हमला करने के लिए तैयार किया गया.

गोला-बारूद की बरसात भी भारतीय सेना की हिम्‍मत तोड़ने में रही नाकाम
इन लड़ाकों की मदद के लिए चीनी सेना ने भारतीय प्‍लाटून को निशाना बनाकर मीडियम मशीन गन, मोर्टार और तोप से गोलाबारी करने लगा. दुश्‍मन अब तक साजिश के तहत दोनों प्‍लाटून के बेहद करीब आने में सफल रहा था. वहीं भारतीय सेना ने संख्‍या बल में बेहद कम होने के बावजूद अपना साहस नहीं छोड़ा. उन्‍होंने तीन इंच के मोर्टार से लगातार फायर करके दुश्‍मन सेना के कई लड़ाकों को मौत की नींद सुला दिया. लेकिन नियति को कुछ और ही बदा था. संख्‍याबल से मजबूत दुश्‍मन सेना अब दोनो प्‍लाटून के सामने पहुंच गई थी.

संगीन ले सैकड़ों की दुश्‍मन सेना पर टूट पड़ी भारतीय सेना और फिर…
इसी बीच, दुश्‍मन सेना अपनी भौगोलिक स्थिति का फायदा उठाकर रिइंफोर्समेंट भेजने में सफल रही. अब भारतीय सेना के सामने कोई उपाय नहीं बचा था, बावजूद इसके भारतीय सेना के सभी जवान अपनी पोस्‍ट से बाहर निकल कर दुश्‍मन सेना पर टूट पड़े. सभी भारतीय सैनिक दुश्‍मन सेना से तब तक लड़ते रहे, जब तक उनके शरीर में आखिरी सांस बची हुई थी. इस युद्ध में मेजर शैतान सिंह अपने सभी साथियों के साथ भले ही शहीद हो गए, लेकिन वे अपने पीछे वीरता का अद्भुत उदाहरण छोड़ गए. मेजर शैतान सिंह की यह वीरता ही थी कि उन्‍होंने तोप के गोलो, मोर्टार और गोलियों से हमले की परवाह किए बगैर अपने जवानों के उत्‍साहवर्धन के लिए एक प्‍लाटून से दूसरे प्‍लाटून के बीच दौड़ लगाते रहे.

गंभीर रूप से जख्‍मी होने के बावजूद मेजर शैतान सिंह ने पोस्‍ट छोड़ने से किया इंकार
एक पोस्‍ट से दूसरे पोस्‍ट की तरफ जाते समय मेजर शैतान सिंह दुश्‍मन के हमले का शिकार हो गए. गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद वह अपने साथियों के साथ दुश्‍मन से लड़ते रहे. मेजर शैतान सिंह के निढाल होने के बाद उनके दो साथियों ने उन्‍हें मौके से इवैक्‍युवेट करने की कोशिश भी की, लेकिन निर्दयता की हदें पार कर चुकी चीन की सेना ने निहत्‍थे जवानों पर मशीन गन से गोलियां बरसाना शुरू कर दी. अपने दोनों जवानों की जान बचाने के लिए उन्‍होंने खुद को वही छोड़ने का आदेश दे दिया. जिसके बाद जवान मेजर शैतान सिंह को एक पत्‍थर की ओट पर छोड़ कर दुश्‍मन से मोर्चा लेने में जुट गए.

कुमाऊं रेजीमेंट के 123 जवानों ने दी इस युद्ध में अपनी शहादत
इस युद्ध में 109 कुमाऊं रेजीमेंट के भले ही 123 जवानों की शहादत हुई हो, लेकिन ये जवान चीनी सेना के सैकड़ों जवानों का खात्‍मा करने में भी सफल रहे थे. युद्ध समाप्‍त होने के बाद मेजर शैतान सिंह के पार्थिव शरीर को इन्‍हीं पत्‍थरों के पीछे से बरामद किया गया. मेजर शैतान सिंह के शव को तत्‍काल हवाई मार्ग से जोधपुर लाया गया, जहां पूरे सैन्‍य सम्‍मान के साथ उनका अंतिम संस्‍कार किया गया. मेजर शैतान सिंह की बहादुरी, नेतृत्‍व क्षमता और ड्यूटी के प्रति समर्पण को देखते हुए मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्‍मानित किया गया.

 

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