याद करो कुर्बानी: दुश्‍मन के बीच फंसे साथी को बचाने के लिए दांव पर लगाई अपनी जिंदगी और फिर…

अनूप कुमार मिश्र

नई दिल्‍ली। याद करो कुर्बानी की 17वीं कड़ी में हम आपको सिख रेजीमेंट के लांस नायक करम सिंह की वीरगाथा बताने जा रहे हैं. लांस नायक करम सिंह की यह वीरगाथा 1947 में शुरू हुए भारत-पाक युद्ध से जुड़ी हुई है. इस युद्ध में लांस नायक करम सिंह ने पाकिस्‍तान सेना द्वारा लगातार किए गए आठ हमलों को नाकाम किया था. आइए जाने लांस नायक करम सिंह की पूरी वीरगाथा …

लांस नायक करम सिंह का जन्म 15 सितंबर 1 9 15 को पंजाब के बरनाला में हुआ था. उनके सैन्‍य जीवन की शुरुआत 15 सितंबर 1941 को 1 सिख रेजीमेंट के साथ शुरू हुई. उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध में सैन्य पदक अर्जित किया था. 1948 के भारत-पाक युद्ध में भारतीय सेना ने 23 मई 1948 के टिथवाल को अपने कब्‍जे में ले लिया था.  टिथवाल को कब्‍जे में लेने की कार्रवाई के दौरान भारतीय सेना का खौफ ही था कि पाकिस्‍तान सेना अपने  हथियारों को किशनगंगा नदी में डाल कर भाग खड़ा हुआ था.

भारतीय सेना से मिली यह हार पाकिस्‍तान के लिए किसी सदमे से कम नहीं थी. अपनी हार का बदला लेने के लिए दुश्‍मन सेना ने एक बार टिथवाल में हमले की साजिश रचना शुरू कर दी. साजिश के तहत, दुश्‍मन सेना ने भारी संख्‍या बल के साथ टिथवाल पर मौजूद भारतीय सेना पर हमला बोल दिया. इस हमले में भारतीय सेना ने अपनी स्थिति को बदलते हुए टिथवाल रिज पर काबिज हो गए. भारतीय सेना अब दुश्‍मन पर हमला करने का एक अच्‍छा मौका तलाश रही थी.

param vir karam singh
                                     लांस नायक करम सिंह ने पाकिस्‍तान सेना द्वारा लगातार किए गए आठ हमलों को नाकाम किया था.

इस बीच दुश्‍मन सेना भारत पर लगातार हमला करती रही, लेकिन सफलता उनसे कोसो दूर जाती जा रही थी. इसी हताशा में पाकिस्‍तान ने 13 अक्‍टूबर 1948 को भारत पर हमला करने के लिए पूरी बिग्रेड लगा दी. साजिश के तहत, पाकिस्‍तानी सेना टिथवाल के दक्षिण में स्थित रीछमार गली और टिथवाल के पूर्व नस्तचूर दर्रे पर अपना कब्जा जमाना चाहती थी. 13अक्‍टूबर की रात हुए इस हमले में भारत और पाक सेनाओं के बीच रीछमाल गली में जमकर मुकाबला हुआ.

इस युद्ध के दौरान लांस लायक करम सिंह 1 सिख की एक यूनिट का नेतृत्‍व कर रहे थे. इस युद्ध के दौरान, पाकिस्‍तान की तरफ से हो रही गोलाबारी में वह गंभीर रूप से जख्‍मी हो गए थे. जख्‍मी होने के बाजवूद उनके साहस में बिल्‍कुल कमी नहीं आई थी. युद्ध के दौरान , उन्‍होंने देखा कि पाकिस्‍तानी गोलाबारी में उनके दो जवान बुरी तरह से जख्‍मी हो गए हैं, जबकि एक जवान पाकिस्‍तानियों के बीच फंस गया है. वह लगातार ग्रेनेड फेंकते हुए पाकिस्‍तानी दुश्‍मनों के बीच घुस गए.

उन्‍होंने पाकिस्‍तानी दुश्‍मनों के बीच फंसे अपने साथी को न केवल सुरक्षित बाहर निकाल लिया, बल्कि घायल हुए दोनों जवानों को अपने कंधों पर रखकर सुरक्षित जगह पर ले आए. इस दौरान, लांस नायक करम सिंह दो बार दुश्‍मन सेना के हमले का शिकार हुए. बावजूद इसके, उन्‍होंने रण छोड़ने से इंकार करते हुए अपनी लड़ाई जारी रखी. इस हमले में भी पाकिस्‍तान को मुंह की खानी पड़ी. कुछ समय बाद, पाकिस्‍तान  ने पांचवें हमले को अंजाम दिया.

इस हमले के दौरान दो पाकिस्‍तानी सैनिक उनकी पोस्‍ट के करीब आ गए. उन्‍होंने दोनों पाकिस्‍तानियों पर बैनेट से हमला कर मौत की नींद सुला दिया. लांस नायक करम सिंह के इस जज्‍बे को देखकर पाकिस्तानी सैनिक हताशा से घिर गए. बावजूद इसके, दुश्‍मन सेना की तरफ से तीन हमले और किए गए. इन सभी हमलों को लांस नायक करम सिंह ने अपने युद्ध कौशल से नाकाम कर दिया. लगातार मिल रही हार से दुश्‍मन सेना पूरी तरह से हताश हो गई और वह मोर्चा छोड़कर भाग खड़ी हुई. इस युद्ध में लांस नायक करम सिंह के अद्भुद युद्ध कौशल और अभूतपूर्व साहस को देखते हुए उन्‍हें वीरता के सर्वोच्‍च पदक परमवीर चक्र से सम्‍मानित किया गया.

 

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