याद करो कुर्बानी: लैंड माइन बिछा भारतीय सेना को निशाना बनाना चाहता था पाक और फिर…

अनूप कुमार मिश्र

नई दिल्‍ली। याद करो कुर्बानी की 18वीं और 19वीं कड़ी में हम आपको भारतीय सेना के दो जांबाजों की वीरगाथा बताने जा रहे हैं. सेकेंड लेफ्टिनेंट रामा राघोवा राणे नामक पहले जांबाज ने 1947 के भारत-पाक युद्ध में लैंड माइन सहित दूसरे अवरोधों को साफ कर भारतीय सेना के टैंक और वाहनों के लिए सुरक्षित रास्‍ता तैयार किया था.

वहीं भारतीय सेना के दूसरे जांबाज का नाम मेजर होशियार सिंह हैं. मेजर होशियार सिंह ने 1971 के भारत-पाक युद्ध में पाकिस्‍तान द्वारा बिछाई गई लैंड माइन को ध्‍यस्‍त कर दुश्‍मन सेना को मौत की नींद सुला दिया था. युद्ध के उपरांत दोनों जांबाजों को सेना के सर्वोच्‍च पुरस्‍कार परमवीर चक्र से सम्‍मानित किया गया था. आइए जाने दोनों जांबाजों की संक्षिप्‍त वीरगाथा …

सेकेंड लेफ़्टिनेंट रामा राघोबा राणे
सेकेंड लेफ्टिनेंट रामा रोघोवा राणे का जन्‍म 26 जून 1918 को धारवाड़ जिले के हवेली गांव में हुआ था. उनके सैन्‍य जीवन की शुरूआत 10 जुलाई 1940 को बांबे इंजीनियर्स के साथ शुरू हुई थी. रामा राघोवा राणे की बहादुरी और नेतृत्व क्षमता के चलते उन्‍हें जल्‍द ही सेकेंड लेफ़्टिनेंट के रूप में कमीशंड ऑफिसर बना दिया गया. इस तरक्‍की के बाद उनकी तैनाती जम्मू और कश्मीर में कर दी गई.

सेकेंड लेफ्टिनेंट राणे की जम्‍मू और कश्‍मीर में तैनाती उस समय की गई, जब भारत और पाकिस्‍तान के बीच 1947 का युद्ध जोरों पर था.  अब तक भारतीय सेना ने दुश्‍मन सेना को करारी मात देते हुए नौशेरा की जीत हासिल कर ली थी. इस जीत के साथ भारतीय सेना ने अपनी रणनीति में बदलाव करते हुए आक्रामक रुख अख्तियार करने का फैसला लिया.

param vir rama
                                       युद्ध के दौरान उन्‍होंने रास्‍ते में पडने वाले अवरोध ओर माइन क्षेत्रों का सफाया कर भारतीय सेना के लिए सुरक्षित रास्‍ता उपलब्‍ध कराया. 

भारतीय सेना की रणनीति रंग लाई. इसी रणनीति के तहत 18 मार्च 1948 को 50 पैराब्रिगेड तथा 19 इंफेंट्री ब्रिगेड ने झांगार पर दोबारा जीत हासिल कर ली थी. भारतीय सेना के विजय अभियान में सेकेंड लेफ्टिनेंट राणे की भूमिका सबसे अहम रही. युद्ध के दौरान उन्‍होंने रास्‍ते में पडने वाले अवरोध ओर माइन क्षेत्रों का सफाया कर भारतीय सेना के लिए सुरक्षित रास्‍ता उपलब्‍ध कराया.

जिससे लड़ाई के लिए टैंकों को मोर्चो तक सफलता पूर्वक पहुंचाया जाना संभव हुआ. सेकेंड लेफ्टिनेंट राणे की वीरता के लिए उन्‍हें 8 अप्रैल 1948 को सेना के सर्वोच्‍च पदक परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.

मेजर होशियार सिंह
मेजर होशियार सिंह का जन्‍म 5 मई 1937 को हरियाणा के सोनीपत में हुआ था. उनके सैन्‍य जीवन की शुरुआत 30 जून 1963 को ग्रेनेडियर रेजिमेंट के साथ शुरू हुई. अपने सैन्‍य जीवन में मेजर होशियार सिंह ने 1965 और 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध में अद्भुत वीरता का प्रदर्शन किया था.

उन्‍हें 1971 के भारत-पाक युद्ध में आसाधारण वीरता के लिए सेना के सर्वोच्‍च पदक परमवीर चक्र से सम्‍मानित किया गया था. दरअसल, 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान ग्रेनेडियर रेजीमेंट को शकगढ़ सेक्टर में बसंतर नदी के ऊपर पुल का निर्माण की जिम्‍मेदारी दी गई थी. मेजर होशियार सिंह की यूनिट ने तय समय के भीतर बसंतर नदी पर पुल बनाने का कार्य पूरा कर लिया था.

param vir hoshiyar
                                           संख्‍या बल में बेहद कमजोर होने के बावजूद मेजर होशियार सिंह हिम्‍मत नहीं हारे. 

योजना के तहत भारतीय सेना ने ग्रेनेडियर्स द्वारा बनाए गए पुल से नदी तो पार कर ली, लेकिन उनके लिए आगे बढना मुश्किल था. दरअसल, पाक सेना ने नदी से सटे पूरे इलाके में लैंड माइन बिछा रखी थी. दुश्‍मन के रास्‍ते मौजूद खतरों को जानते हुए मेजर होशियार सिंह ने दुश्‍मन पर कार्रवाई करने का फैसला किया.

उधर, पाकिस्‍तानी सैनिकों को नदी के किनारे मौजूद भारतीय सेना की मौजूदगी और संख्‍या की जानकारी मिल गई थी. लिहाजा, पाकिस्‍तानी सेना ने भारी संख्‍या बल और टैंक के साथ भारतीय सेना पर हमला बोल दिया. संख्‍या बल में बेहद कमजोर होने के बावजूद मेजर होशियार सिंह हिम्‍मत नहीं हारे.

उन्‍होने दुश्‍मन के हर हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया. दुश्‍मन से जंग के दौरान मेजर होशियार सिंह की हौसलाफजाई का नतीजा था कि मुश्किल दौर में भी भारतीय सेना ने पाकिस्‍तानी सेना को मात देते हुए उनके हमले को नाकाम कर दिया. इस युद्ध के दौरान मेजर होशियार सिंह के अद्भुत युद्ध कौशल और बहादुरी के लिए सेना के सर्वोच्‍च सम्‍मान परमवीर चक्र से सम्‍मानित किया गया.

 

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