यूपी चुनाव में मायावती के लिए शिवपाल यादव कितने फायदेमंद
लखनऊ। समाजवादी पार्टी के हालिया झगड़े में एक बात पर आपने जरूर गौर किया होगा। जो समाजवादी पार्टी और उसके नेता राज्य की दूसरी बड़ी ताकतवर पार्टी बीएसपी की सुप्रीमो मायावती को फूटी आंखों नहीं सुहाते थे, वही मायावती उस झगड़े के सबसे ‘बड़े विलेन’ के रूप में उभरे शिवपाल सिंह यादव से रहमदिली दिखाई नजर आईं। उन्होंने शिवपाल को प्रताड़ित बताया और अपने सबसे बड़े सियासी दुश्मन मुलायम सिंह यादव पर निशाना साधते हुए कहा कि मुलायम ने पुत्र मोह में शिवपाल यादव को बलि का बकरा बना दिया। उन्होंने कहा कि शिवपाल को टिकट देकर एक सीट पर सीमित किया गया, यही शिवपाल गुट अखिलेश को सबक सिखाएगा।
शिवपाल यादव को लेकर मायावती की रहमदिली यहां तक दिखी कि एक प्रेस कांफ्रेंस में जब उनसे शिवपाल को बीएसपी में लेने को लेकर सवाल पूछा गया तो मायावती का कहना था कि अगर वो गुजारिश करेंगे तो वो विचार कर सकती हैं, हालांकि शिवपाल यादव ने ऐसी कोई गुजारिश नहीं की और जसवंत नगर से नामांकन कर दिया है। लेकिन नामांकन के वक्त ही शिवपाल ने एक अहम बात कह दी कि वो, उन साथियों के लिए प्रचार कर सकते हैं जो टिकट न मिलने के कारण इधर उधर चले गये हैं। शिवपाल का ये बयान मायावती के लिए रिटर्न गिफ्ट माना जा रहा है जो कि शिवपाल को उन्होंने रहमदिली दिखाकर और गुजारिश पर पार्टी में लेने तक के लिए तैयार होकर दिया था।
मायावती ने शिवपाल के प्रति अपनी हमदर्दी दिखाई तो उनका सीधा मकसत यूपी के तमाम हिस्सों में फैले शिवपाल के समर्थकों की तरफ से भी सहानुभूति भरी नजर के तौर था, ये उनके लिए बीएसपी में निमंत्रण भी था। जसवंतनगर में शिवपाल ने दो बड़ी बातें कहीं थीं और ये दोनों ही बातें मायावती के पक्ष में जाती हैं। एक यह कि11 मार्च के बाद शिवपाल अपनी नई पार्टी बनाएंगे, मतलब साफ है कि समाजवादी पार्टी में झगड़ा खत्म नहीं हुआ है, और जीतने में भी संदेह है। मुस्लिम वोट बैंक को साधने के लिए मायावती बार बार ये बात दोहराती रही हैं कि मुसलमान अपने वोट को खराब न होने दें। शिवपाल ने जो दूसरी बात कही थी उसका जिक्र हम पहले भी कर चुके हैं और वो पूरी तरह से मायावती के पक्ष में जाती है।
शिवपाल ने कहा कि वो उन साथियों के लिए प्रचार कर सकते हैं जो टिकट न मिलने के कारण इधर उधर चले गये हैं। समाजवादी पार्टी का साथ छोड़ने वाले नेताओं को सबसे ज्यादा शरण बीएसपी में ही मिली है। समाजवादी पार्टी के बड़े नेता अंबिका चौधरी ने हाल में बीएसपी का रुख किया तो नारद राय भी साइकल छोड़ हाथी पर सवार हो लिये। गाजीपुर की जहूराबाद सीट से विधायक और पूर्व मंत्री शादाब फातिमा को लेकर भी ऐसी ही अटकलें लगाई जा रही हैं। इन सब के अलावा अंसारी बंधु भी हैं जिन्हें अखिलेश के रिजेक्ट करते ही मायावती ने हाथों हाथ लिया। अब अगर सच में शिवपाल यादव इन सब के पक्ष में चुनाव प्रचार करने जाते हैं तो थोड़ा ही सही अखिलेश को नुकसान तो होगा ही।
शिवपाल का चुप रहना उनके राजनीतिक कॅरिअर के लिए खतरनाक होता, इसीलिए वो बोले। उन्हें सबसे बड़ा डर अपने समर्थकों के खोने का होगा क्योंकि समाजवादी पार्टी में जिन नेताओं ने अखिलेश से बैर मोल लिया वो किनारे कर दिए गए। इसीलिए बोल कर शिवपाल ने एक और राजनीतिक रास्ता खोल दिया। अगर चुनाव बाद पावर शेयरिंग की कोई स्थिति बनी तो शिवपाल के पास बदले समीकरणों में फिट होने की पूरी गुंजाइश रहेगी, इसमें मायावती के साथ जाने का विकल्प भी खुला रहेगा। समाजवादी पार्टी दोबारा सत्ता में आती है तो अखिलेश कैबिनेट में ज्यादा से ज्यादा उन्हें एक मंत्री पद मिल सकता है, लेकिन पहले जैसी पूछ नहीं रहेगी यह तो तय है। अगर वो मायावती से हाथ मिला लेते हैं तो बीएसपी में उनका दबदबा बढ़ सकता है। अखिलेश को काउंटर करने के लिए मायावती शिवपाल को छूट भी दे सकती हैं, वैसे भी स्वामी प्रसाद मौर्य के बीजेपी में जाने के बाद बीएसपी में ऐसी एक जगह खाली तो है ही। फायदे को देख कर ही मायावती ने मौके पर चौका मारते हुए शिवपाल के लिए हमदर्दी दिखाई।
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