योगी जी, अगर आप दुबे और उसके गिरोह को वाकई खत्म करना चाह रहे है तो मैदान में ऐसे मर्द उतारिये !
दीपक शर्मा
कानपुर में सिर्फ चौबेपुर ही नहीं पूरा शहर, और शहर के बड़े पान मसाला कारोबारी, प्रॉपर्टी डीलर और बिल्डर, माफिया सरगना विकास दुबे के आगे भेड़-बकरी की तरह सरेंडर थे। थानेदार, तहसीलदार, जेई, आबकारी इंस्पेक्टर ….फील्ड के ये अहम मुलाजिम, हर सरकारी ठेके-पट्टे में दुबे के साझेदार थे। कम शब्दों में, दुबे के आतंक को आप यूँ समझिये .. कि 2001 में जब उसने भाजपा नेता संतोष शुक्ला को कानपुर देहात के शिवली थाने में गोलियों से भून दिया तो इस खौफनाक वारदात के 25 पुलिस वाले चश्मदीद गवाह बने। लेकिन दुबे की दहशत का आलम ये था कि सभी पुलिस वाले अदालत में सच बोलने से मुकर गए और सरगना इस जघन्य हत्याकांड में बरी हो गया। बरी होते ही दुबे ने राजनीति में पाँव बढ़ाया और विधान सभा के स्पीकर हरिकृष्ण श्रीवास्तव ने उसे बिना शर्म गोद ले लिया।
आज आठ पुलिस कर्मियों की नृशंस हत्या करके, विकास दुबे फरार है और पुलिस अभी भी डॉन के गुर्गो पर सख्ती नहीं कर पा रही है। दुबे के एक साथी जय वाजपाई को कल पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया। वाजपेयी के पास से बिना नंबर प्लेट की तीन लक्ज़री गाड़ियां(ऑडी, फार्च्यूनर और वेरना) बरामद की गयी थीं और ये शक था कि इन गाड़ियों का इस्तेमाल विकास दुबे का गिरोह कर रहा था। दुबे के कुछ और प्रभवशाली नेता मित्रों से भी नरमी बरती गयी है। बहरहाल, पुलिस से AK 56 राइफल जैसे हथियार छीनकर फरार हुए दुबे को आज चार दिन हो गए हैं। अभी तक उसका कोई निशां, कोई सुराग पुलिस के हाथ नहीं लगा है , अलबत्ता जांच एजेंसियों के बीच खुद आपस में मतभेद है। एक दूसरे की गर्दन नापने-बचाने की कोशिशें हो रही है।
(वरिष्ठ पत्रकार दीपक शर्मा के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
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