राजनीति ही नहीं तमिल सिनेमा के भी बेताज बादशाह थे करुणानिधि, जानें फिल्मी सफर

नई दिल्ली। पांच बार मुख्यमंत्री, 13 बार विधायक और 61 साल तक देश की सियासत पर गहरी छाप छोड़ने वाले दक्षिण भारत के दिग्गज नेता एम करुणानिधि ने आज तमिलनाडु के कावेरी अस्पताल में आखिरी सांस ली. करुणानिधि लंबे समय से बीमार चल रहे थे. मंगलवार शाम करीब 6.15 मिनट पर उनका निधन हो गया. करुणानिधि ने अपने करियर की शुरुआत फिल्मों से की थी. उन्होंने ऐसी फिल्में बनाईं जो तमिल फिल्म इंडस्ट्री के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुईं. उन्हें करुणानिधि के अलावा ‘कलाईनार’ नाम से भी जाना जाता है जिसका मतलब होता है कल का विद्वान.

स्क्रीन राइटर के तौर पर की करियर की शुरुआत

 

करुणानिधि ने अपने करियर की शुरुआत स्क्रीन राइटर के तौर पर की थी. बतौर स्क्रीन राइटर उनकी पहली फिल्म ‘राजकुमारी’ थी जो 1947 में रिलीज हुई. कॉलेज लाइफ के दौरान ही उन्हें ऐतिहासिक और सामाजिक कहानियां लिखने के लिए जाना जाने लगा. करुणानिधि थियेटर भी करते थे. साल 1949 में मॉर्डन थियेटर के टी आर सुंदरम ने करुणानिधि को फिल्म ‘मंदिरी कुमारी’ (1950) का स्क्रीप्ट लिखने की जिम्मेदारी दी और ये फिल्म ब्लॉकबस्टर साबित हुई. इसके बाद मॉर्डन स्टूडियों में सुंदरम ने करुणानिधि को स्थायी जिम्मेदारी सौंप दी.

‘पराशक्ति’ से करुणानिधि को मिली शोहरत

इसके बाद फिल्म ‘पराशक्ति’ (1952) से करुणानिधि को खूब शोहरत मिली. ये फिल्म तमिल इंडस्ट्री के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित हुई. इस फिल्म ने द्रविड़ आंदोलन की विचारधारा का समर्थन किया और इस वजह से दो एक्टर्स शिवाजी गणेशन और एस. एस राजेंद्रन खूब मशहूर हुए. इस फिल्म को लेकर खूब बवाल भी मचा क्योंकि इसमें ब्राह्मणवाद की आलोचना की गई थी. इस फिल्म को बैन भी कर दिया गया लेकिन बाद में इसे रिलीज किया गया. बॉक्स ऑफिस पर ये फिल्म सुपरहिट साबित हुई.

सामाजिक विषयों पर बनाई फिल्में

 

करुणानिधि ने इस तरह की दो और फिल्में ‘पनाम’ और ‘धंगारथनम’ भी कीं. करुणानिधि की फिल्मों में विधवा विवाह और धार्मिका पाखंड जैसे सामाजिक मुद्दे शामिल रहते थे और इस वजह से उन्हें सेंसरशिप का भी सामना करना पड़ा. 1950 में उनके दो नाटकों को भी बैन कर दिया गया था. करुणानिधि के मुख्य नाटकों में शामिल हैं: ‘मनिमागुडम’, ‘ओरे रदम’, ‘पालानीअप्पन’, ‘तुक्कु मेडइ’, ‘कागिदप्पू’, ‘नाने एरिवाली’, ‘वेल्लिक्किलमई’, ‘उद्यासूरियन’ और ‘सिलप्पदिकारम.’

अपने फिल्मी करियर में करुणानिधि ने करीब 75 फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखी. उनकी मुख्य फिल्में ये हैं-

राजकुमारी (1947), अबिमन्यु (1948), मंदिरी कुमारी (1950), मरुद नाट्टू इलवरसी (1950), मनामगन (1952), देवकी, पराशक्ति (1952), पनम (1952), तिरुम्बिपार (1953), नाम, मनोहरा (1952), अम्मियापन, मलाई कल्लन (1954), रंगून राधा (1956), राजा रानी (1956), पुदैयाल (1957), पुदुमइ पित्तन (1957), एल्लोरुम इन्नाट्टु मन्नर, कुरावांजी (1960), ताइलापिल्लई (1961), कांची तलैवन (1963, पूम्बुहार (1964), पूमालई (1965), मनी मगुड्म, मारक्क मुडियुमा?, अवन पित्तना (1966), पूक्कारी, निदिक्कु दंडानई(1987) , पालईवना रोजाक्कल(1985), पासा परावाईकल, पाड़ाद थेनीक्कल (1988), नियाय तरासु, पासाकिलिग्ल, कन्नम्मा (2005), यूलियिन ओसई, पेन सिन्गम (2010)और इलगन (2011).

बतौर स्क्रीन राइटर करुणानिधि की आखिरी फिल्म ‘पोनार शंकर’ थी जो 2011 में रिलीज हुई. ये फिल्म करुणानिधि के किताब से ही प्रेरित थी.

साहित्य में भी उल्लेखनीय योगदान

फिल्मों के अलावा करुणानिधि ने साहित्य में भी उल्लेखनीय योगदान दिया. वे कविताएं, चिट्ठियां, पटकथाएं, उपन्यास, जीवनी, ऐतिहासिक उपन्यास, मंच नाटक, संवाद और गाने आदि सब लिखते थे. गद्य और पद्य मिलाकर उनकी लिखी पुस्तकों की संख्या 100 से भी अधिक है.

इसके अलावा करुणानिधि पत्रकार और कार्टूनिस्ट भी थे. उन्होंने 10 अगस्त 1942 को मुरासोली नामक मासिक अखबार निकाला. वो इस अखबार के संस्थापक संपादक और प्रकाशक भी थे. बाद में ये अखबार साप्ताहिक बना और अब एक दैनिक अखबार है. आपको जानकर हैरानी होगी कि वह अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को नाम से संबोधित करके रोज चिट्ठी लिखते थे. करुणानिधि 50 सालों से ये चिट्ठियां लिखते आ रहे हैं. इसके अलावा उन्होंने कुडियारसु के संपादक के रूप में काम किया और मुत्तारम पत्रिका के लिए भी काम किया.

मुथुवेल करुणानिधि का जन्म साल 1924 में थंजावुर (अब नागापट्टीनम) में हुआ था और 3 जून को उन्होंने अपने जीवन के 94 साल पूरे किए थे. आज शाम उनका निधन हो गया.

 

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