राहुल के दुर्ग अमेठी की दरक रही है दीवार, क्या किला बचा पाएंगे युवराज

लखनऊ। अपने राजनीतिक विरोधी को नेस्तनाबूद करना है तो सबसे अच्छा रास्ता है कि उसे उसके गढ़ में जाकर मात दी जाए. इससे न सिर्फ विरोधी की हार होती है बल्कि उसकी पार्टी के कार्यकर्ताओं का हौसला भी पूरी तरह टूट जाता है. कांग्रेस को 44 सीटों तक समेट चुकी बीजेपी अब उसके भावी अध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ इसी रणनीति पर काम कर रही है. मकसद है राहुल को उनके गढ़ अमेठी में मात देना ताकि पूरे देश में कांग्रेसियों का हौसला टूट जाए और कांग्रेस मुक्त भारत के पीएम मोदी के सपने को साकार किया जा सके.

अमेठी कांग्रेस का किला

आजादी के बाद कांग्रेस ने अनगिनत सीटों पर चुनाव लड़ा और जीत या हार का स्वाद चखा लेकिन अगर किसी एक सीट की बात की जाए जहां कांग्रेस का उम्मीदवार मतलब जीत की गारंटी है तो वो सीट यूपी के अवध की अमेठी ही है. अमेठी पर कांग्रेस के रुतबे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां अब तक हुए 15 लोकसभा चुनावों में से 13 बार कांग्रेस ने जीत हासिल की है. हालांकि अमेठी को कांग्रेस का गढ़ कहने की बजाय गांधी परिवार का गढ़ कहा जाए तो ज्यादा सही होगा क्योंकि जिन 13 चुनावों में पार्टी ने इस सीट से जीत हासिल की है उनमें से 9 बार यहां उम्मीदवार गांधी परिवार से ही रहा है.

संजय-राजीव-सोनिया और राहुल

अमेठी 1967 में लोकसभा सीट बनी. इसके बाद यहां 15 बार लोकसभा चुनाव हुए हैं. यहां से इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी 1980 में चुनाव लड़े और जीते. उनकी असामयिक मौत के बाद राजीव गांधी 1981, 1984, 1989 में यहां से विजेता घोषित किए गए. 1991 में भी राजीव गांधी यहां से जीते लेकिन उनके निधन के बाद कैप्टन सतीश शर्मा को यहां से उतारा गया. 1999 में सोनिया गांधी ने अमेठी से चुनाव लड़कर राजनीति में कदम रखा और जीत हासिल की. अगले चुनाव में यानी 2004 में राहुल गांधी यहा से लड़े और जीते. 2009 और 2014 में भी राहुल की जीत का सिलसिला जारी रहा.

बीजेपी ने लगाई सेंध

कांग्रेस या गांधी परिवार के इस गढ़ में बीजेपी ने ऐसी सेंधमारी की कि यहां के घरों की दीवारों से कांग्रेस नेताओं के पोस्टर उतरने लगे हैं और उन्हीं खूटियों पर मोदी के कैलेंडर नजर आने लगे हैं. शुरुआत 2014 के लोकसभा चुनाव से हुई जहां सबको चौंकाते हुए और राजनीतिक परंपराओं के उलट पीएम मोदी ने राहुल गांधी के मुकाबले में स्मृति ईरानी को मैदान में उतारा.

राहुल गांधी ने स्मृति ईरानी को भले ही हरा दिया हो. लेकिन स्मृति ईरानी लगातार अमेठी में सक्रिय हैं. पिछले 6 महीने में 3 बार उन्होंने अमेठी का दौरा किया है. इससे पहले भी लगातार वो अमेठी जाती रही हैं. अमेठी की जमीन पर बीजेपी की इस कवायद का असर देखा जा सकता है.

आज खुद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, सूचना प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अमेठी में एक बड़ी जनसभा की. कहने की जरूरत नहीं कि तीनों नेताओं के निशाने पर राहुल गांधी रहे. उन्होंने वहां 21 योजनाओं का शिलान्यास अथवा लोकार्पण किया. मकसद विकास के मुद्दे पर राहुल और गांधी परिवार को घेरना है.

कांग्रेस का दरकता दुर्ग

गांधी परिवार का गढ़ होने के बावजूद अमेठी में विकास की वो धारा नहीं बही जो दूसरे बड़े नेताओं के इलाके में देखने को मिलती है( जैसे मुलायम सिंह यादव का पैतृक गांव सैफई) यूपी का ये शांत और अल्पविकसित हिस्सा इसी गुमान में खुश रहता है कि वो देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार की कर्मभूमि है. लेकिन अब ये तस्वीर धूमिल होने लगी है और कांग्रेस के दुर्ग की दीवार दरकने लगी है. 2009 के लोकसभा चुनाव में अमेठी से राहुल ने करीब 3 लाख 70 हजार वोटों से जीत हासिल की थी.

2014 के लोकसभा चुनाव में राहुल के खिलाफ स्मृति ईरानी मैदान में थीं, तो राहुल की जीत का मार्जिन घटकर 1 लाख के करीब आ गया. अमेठी में कुल पांच विधानसभा सीटें हैं और मौजूदा समय में एक भी सीट कांग्रेस के पास नहीं है. 2017 के चुनाव में अमेठी की पांच में से 4 सीटों पर बीजेपी और एक पर सपा ने जीत दर्ज की थी. इस तरह से 2012 के विधानसभा चुनाव के नतीजों पर नजर डालें तो पांच में से महज 2 सीट कांग्रेस के पास थीं और 3 सीटें सपा के पास.

कांग्रेस के गढ़ में सेंध

कांग्रेस के घर में बीजेपी लगातार सेंधमारी कर रही है. अमेठी के कई कांग्रेसी नेता पार्टी छोड़कर बीजेपी और दूसरी पार्टियों का दामन थाम चुके हैं. इनमें अमेठी क्षेत्र की तिलोई विधानसभा से विधायक रहे डॉक्टर मुस्लिम ने बीएसपी का दामन थामा तो वहीं कांग्रेसी राज्यसभा सदस्य डॉ. संजय सिंह की पहली पत्नी गरिमा सिंह और बेटे आनंत विक्रम सिंह बीजेपी का दामन थामा. गरिमा सिंह फिलहाल अमेठी से विधायक हैं. मंगलावर को कांग्रेसी नेता जंग बहादुर सिंह ने भी बीजेपी का दामन थाम लिया.

विधानसभा चुनाव के दौरान सपा के मयंश्वर शरण सिंह बीजेपी में चले गए और तिलोई से उन्होंने जीत भी दर्ज की. इसी तरह सलोन के बीएसपी नेता रहे दलबहादुर कोरी ने भी चुनाव के दौरान बीजेपी में घर वापसी की और सलोन विधानसभा से विधायक हैं. साफ है कि इन नेताओं को अब कांग्रेस में अपना भविष्य नहीं दिखाई दे रहा है. सवाल उठता है कि जब जमीन के ये कार्यकर्ता ही पार्टी से नाता तोड़ रहे हैं तो राहुल कैसे और किसके बूते अपने इस सियासी दुर्ग को बचा पाएंगे.

 

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