राहुल ने RSS की तुलना मुस्लिम ब्रदरहुड से की, लेकिन कांग्रेस ने खुद इसके नेता का किया था इस्‍तकबाल

नई दिल्‍ली। कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने पिछले दिनों अपने यूरोपीय दौरे के दौरान आरएसएस की आलोचना करते हुए इसकी तुलना अरब जगत से ताल्‍लुक रखने वाले मुस्लिम संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड से की. राहुल गांधी ने लंदन में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट आफ स्ट्रेटजिक स्टडीज (आईआईएसएस) के कार्यक्रम में कहा, “हम एक संगठन से संघर्ष कर रहे हैं, जिसका नाम RSS है जो भारत के मूल स्वरूप (नेचर आफ इंडिया) को बदलना चाहता है. भारत में ऐसा कोई दूसरा संगठन नहीं है जो देश के संस्थानों पर कब्जा जमाना चाहता हो.”

कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, “हम जिससे जूझ रहे हैं वह एकदम नया विचार है. यह ऐसा विचार है, जो अरब जगत में मुस्लिम ब्रदरहुड के रूप में पाया जाता है और, यह विचार यह है कि एक खास विचार को हर संस्थान को संचालित करना चाहिए, एक विचार को बाकी सभी विचारों को कुचल देना चाहिए.” राहुल गांधी के इस बयान के बाद भाजपा ने इस पर कड़ी आपत्ति जताते हुए उन्हें अपने बयान पर माफी मांगने के लिए कहा है. लेकिन इन सबके बीच यह भी काबिलेगौर है कि 2013 में जब कांग्रेस के नेतृत्‍व वाली यूपीए-2 सरकार सत्‍ता में थी, तो उस दौरान इस संगठन से जुड़े प्रमुख नेता मोहम्‍मद मोर्सी भारत दौरे पर आए थे. वह उस दौरान मिस्र के राष्‍ट्रपति थे.

अरब क्रांति
उल्‍लेखनीय है कि 2011 में अरब जगत के कई देशों में क्रांति की बयार देखने को मिली. ट्यूनीशिया में लोकतंत्र के समर्थन में उठी क्रांति की गूंज मिस्र से लेकर सीरिया तक सुनाई पड़ी. नतीजतन मिस्र की राजधानी काहिरा के तहरीर स्‍क्‍वायर में इस क्रांति की अनुगूंज सबसे ज्‍यादा सुनाई पड़ी. देखते ही देखते तीन दशक से सत्‍ता में काबिज होस्‍नी मुबारक की सत्‍ता ताश के पत्‍तों की तरह बिखर गई. उसके बाद मुस्लिम ब्रदरहुड से ताल्‍लुक रखने वाले प्रमुख नेता मोहम्‍मद मोर्सी मिस्र के राष्‍ट्रपति बने.

राष्‍ट्रपति बनने के बाद मार्च 2013 में इब्राहीम मोर्सी भारत के दौरे पर आए थे. उनके दौर में भारत-मिस्र संबंधों में नई शुरुआत हुई जोकि होस्‍नी मुबारक के तीन दशकों के शासनकाल में ठंडे पड़े हुए थे. मोहम्‍मद मोर्सी के उस दौरे के दौरान दोनों देशों के बीच रक्षा समेत सात क्षेत्रों में समझौते हुए थे.

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                                          मोहम्‍मद मोर्सी 2012-13 में मिस्र के राष्‍ट्रपति रहे.(फाइल फोटो)

हालांकि इस यात्रा के चंद महीनों के बाद ही मिस्र में आंतरिक अशांति के चलते मोर्सी की सत्‍ता का पतन हो गया और उनकी जगह रक्षा मंत्री अब्‍दुल फतेह अल-सीसी ने ले ली. सत्‍ता में आने के बाद से अल-सीसी 2015 से लेकर अब तक दो बार भारत की यात्रा कर चुके हैं. मोहम्‍मद मोर्सी फिलहाल जेल की सजा भुगत रहे हैं.

मुस्लिम ब्रदरहुड
1. 1928 में मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड की स्‍थापना मिस्र में हुई थी. मिस्र में 2011 की क्रांति के बाद इस संगठन को वैधानिकता मिल गई लेकिन 2014 में मिस्र, रूस, यूएई और सऊदी अरब ने इसको आतंकी संगठन घोषित कर प्रतिबंधित कर दिया. मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड का ही राजनीतिक संगठन फ्रीडम और जस्टिस पार्टी है, जिसके नेता मोहम्‍मद मोर्सी थे. 2011 में वह इसके नेता बने और 2012-13 में राष्‍ट्रपति रहे. उस दौरान उन्‍होंने अरब जगत के नेता बनने का प्रयास किया लेकिन उनके खिलाफ उपजी आंतरिक अशांति के कारण उनको सत्‍ता से हटना पड़ा.

2. इस संगठन की स्थापना हसन अल-बन्ना ने 1928 में हुई थी. मुस्लिम ब्रदरहुड मिस्र का सबसे पुराना और सबसे बडा़ संगठन है. इस संगठन को इख्वान अल- मुस्लमीन के नाम से भी पहचाना जाता है. शुरुआती दौर में मुस्लिम ब्रदरहुड की स्थापना इस्लाम के नैतिक मूल्यों के प्रचार प्रसार के लिए हुई थी. लेकिन इसके बाद यह राजनीति में शामिल हो गया. इस संगठन ने मिस्र को ब्रिटेन के औपनिवेशिक निंयत्रण से मुक्ति दिलाने का काम किया. इसके अलावा इसने मुस्लिम देशों को पश्चिमी प्रभाव से निजात दिलाने के लिए काम किया.

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                                           2011 में मुबारक सरकार के खिलाफ ब्रदरहुड के समर्थन से चलाया गया आंदोलन. (फोटो: रॉयटर्स)

3. सन 1928 में हसन अल बन्ना के संगठन बनाने के बाद मुस्लिम ब्रदरहुड की शाखाएं मिस्र में तेजी से फैलीं. शुरुआती कार्य के दम पर इस संगठन को बहुत लोकप्रियता हासिल हुई. खासकर उन लोगों में, जो सरकार से असंतुष्ठ थे. इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1940 तक मिस्र में इस संगठन के सदस्य बढ़कर 20 लाख हो गए. पूरे अरब देशों को इस संगठन ने अपनी विचारधारा से प्रभावित किया. संगठन के संस्थापक बन्ना ने एक हथियार बंद दस्ते का भी गठन किया जिसका मकसद ब्रिटिश शासन के खिलाफ बमबारी और हत्याओं को अंजाम देना था.

4. 1948 में अल-बन्ना की एक अज्ञात हमलावर ने हत्या कर दी. इसी साल मिस्र की सरकार ने इस मुस्लिम ब्रदरहुड को भंग कर दिया. 1952 में सैन्य विद्रोह के साथ ही मिस्र में औपनिवेशिक शासन का अंत हो गया. 1954 में इस संगठन पर सबसे बड़ा संकट तब आया, जब राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासर की हत्या के असफल प्रयास के बाद मुस्लिम ब्रदरहुड को प्रतिबंधित कर दिया गया. हज़ारों कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया. लेकिन इस संगठन के लोग भूमिगत होकर अपनी गतिविधि चलाते रहे. इसके बाद ब्रदरहुड ने 70 के दशक में अनवर अल सादात को अपना समर्थन दे दिया. सादात 1970 में मिस्र के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए. शुरुआती दौर में दोनों के संबंध अच्छे रहे, लेकिन बाद इन दोनों के संबंधों में भी खटास आ गई. 80 के दशक में इस संगठन ने राजनीति की मुख्य धारा में आने की कोशिश की.

5. 1984 के चुनावों में उसने वफाद पार्टी और 1987 में उदारवादी दलों के साथ गठबंधन किया. हालांकि उसे असली कामयाबी मिली 2000 के चुनाव में जाकर. इन चुनावों में मुस्लिम ब्रदरहुड ने 17 सीटें जीतीं और वह मिस्र का प्रमुख विपक्षी दल बन गया. 5 साल बाद मुस्लिम ब्रदरहुड ने अपने प्रदर्शन को और अच्छा किया. निर्दलीय उम्मीदवारों के साथ मिलकर 20 फीसदी सीटें जीत ली. इन चुनाव परिणामों से राष्ट्रपति होस्नी मुबारक को तगड़ा झटका लगा.

मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड की बढ़ती ताकत से मुबारक सरकार परेशान हो गई. उसने ब्रदरहुड के खिलाफ अपना अभियान शुरू कर दिया. इसके कई सदस्यों को गिरफ्तार किया गया. मुस्लिम ब्रदरहुड के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए संविधान भी बदला गया. इसके तहत निर्दलीय उम्मीदवारों के राष्ट्रपति पद के लिए खड़े होने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. इसके अलावा आतंकी गतिविधियों को रोकने के लिए विधेयक लाया गया, इसने सुरक्षा बलों की शक्तियां बढ़ा दी. 2010 के चुनावों को देखते हुए मुबारक की पार्टी ने ब्रदरहुड के प्रभाव को कम करने के लिए कई और कदम उठाए, लेकिन उसके खिलाफ आंदोलन कमजोर होने की बजाए बढ़ता ही गया. इसके बाद 2011 में मुबारक को सत्ता से हटना पड़ा. इस वक्त की अगर बात करें तो मोहम्मद बदी मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड का सबसे बड़ा चेहरा है. हालांकि वह इस समय जेल की हवा खा रहा है. 2013 में मिस्र के राष्ट्रपति बने मोहम्मद मोर्सी भी अभी जेल में ही हैं.

 

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