राहुल बाबा हा मैं भागीदार हूं, मैं देश के गरीबों के दुखों का भागीदार हूं

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के एक कार्यक्रम में आज बोलेते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की ‘भागीदार’ वाली हालिया टिप्पणी पर पलटवार करते हुए कहा कि वह इस इल्जाम को ‘इनाम‘ मानते हैं और उन्हें देश के गरीबों के दुख का भागीदार होने पर गर्व है.

प्रधानमंत्री ने यहां स्मार्ट सिटी, अमृत तथा प्रधानमंत्री आवास योजनाओं की तीसरी वर्षगांठ पर आयोजित कार्यक्रम में राहुल गांधी द्वारा पिछले दिनों संसद में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान लगाये गये ‘भागीदार’ सम्बन्धी आरोप का जवाब देते हुए कहा, ‘‘इन दिनों मुझ पर एक इल्जाम लगाया गया है कि मैं चौकीदार नहीं, भागीदार हूं…. लेकिन देशवासियों मैं इस इल्जाम को इनाम मानता हूं.’’

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे गर्व है कि मैं भागीदार हूं. मैं देश के गरीबों के दुखों का भागीदार हूं. मेहनतकश मजदूरों के दुखों और हर दुखियारी मां की तकलीफों का भागीदार हूं. मैं उस हर मां के दर्द का भागीदार हूं जो लकड़ियां बीनकर घर का चूल्हा जलाती है. मैं उस किसान के दर्द का भागीदार हूं जिसकी फसल सूखे या पानी में बर्बाद हो जाती है. मैं भागीदार हूं, उन जवानों के जुनून का, जो हड्डी गलाने वाली सर्दी और झुलसाने वाली गर्मी में देश की रक्षा करते हैं.’’

मोदी ने कहा कि वह गरीबों के सिर पर छत दिलाने, बच्चों को शिक्षा दिलाने, युवाओं को रोजगार दिलाने, हवाई चप्पल पहनने वालों को हवाई यात्रा कराने की हर कोशिश के भागीदार हैं, उन्होंने गांधी पर कटाक्ष करते हुए कहा, ‘‘गरीबी की मार ने मुझे जीना सिखाया है. गरीबी का दर्द मैंने करीब से देखा है. मगर जिसके पांव फटे ना बिवाई, वह क्या जाने पीर पराई’’

प्रधानमंत्री ने कहा,‘‘ इससे पहले, मुझ पर यह भी इल्जाम लगाया गया कि चाय वाला देश का प्रधान सेवक कैसे हो सकता है. यह निर्णय वे लोग नहीं ले सकते, बल्कि देश की सवा सौ करोड़ जनता लेती है. शहरों की समस्याओं में उसी सोच की बू आ रही है. स्मार्ट सिटी के लिये हमारे पास प्ररेणा और पुरुषार्थ करने वाले लोग भी थे, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति और सम्पूर्णता की सोच के अभाव ने बड़ा नुकसान किया।’’

देश के बेतरतीब शहरीकरण के लिये कांग्रेस को दोषी ठहराते हुए मोदी ने कहा कि आजादी के बाद जब राष्ट्र निर्माण की बारी थी, तब आबादी का इतना दबाव भी नहीं था. अगर उसी वक्त योजना बनाकर काम किया होता तो वैसी दिक्कतें नहीं होती जैसी आज हैं. आबादी को बेतरतीब फैलने दिया गया, कंक्रीट का जंगल बनने दिया. आज इसका परिणाम पूरा देश भुगत रहा है.

प्रधानमंत्री ने कहा कि आबादी का वह हिस्सा जिसकी जीडीपी में 65 प्रतिशत हिस्सेदारी है, अगर वह अव्यवस्थित रहे तो उससे होने वाली कठिनाइयों का अंदाजा हम लगा सकते हैं. ये समस्याएं 21वीं सदी के भारत को परिभाषित नहीं कर सकतीं. इसके लिये देश के 100 शहरों को चुना गया।.दो लाख करोड़ के निवेश से इन्हें विकसित किया जाएगा. विकास भी ऐसा कि जहां शरीर नया हो, मगर आत्मा वही हो.

 

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