लखनऊ : सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया) ने ऑनलाइन शिक्षा में हो रहे छात्रों के साथ भेदभाव पर किया प्रदर्शन…

शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 12 (1 ) (ग ) के तहत पिछले वर्षो दाखिला प्राप्त छात्रों को ऑनलाइन कक्षा करने में दिक्कत आ रही हैं।

लखनऊ : शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 12 (1 ) (ग ) के तहत पिछले वर्षो दाखिला प्राप्त छात्रों को ऑनलाइन कक्षा करने में दिक्कत आ रही है। जिससे पढाई में बच्चे पिछड़ रहे हैं। ऑनलाइन कक्षा के चलते बच्चों से निजी स्कूल किसी न किसी कारण से पैसे वसूल रहा हैं. इसके साथ माता – पिता पर  स्मार्ट फोन  लेने पर भी दबाव बनाया जा रहा हैं।

सरकार की तरफ से प्रति बच्चा प्रतिवर्ष किताब, पोशाक हेतु मिलने वाला 5000 रुपये अभी तक  पिछले शैक्षणिक वर्ष का भी नहीं मिला है। ऐसे में माता-पिता बच्चों के लिए स्मार्टफोन खरीद पाने में असमर्थ है।

हमारी मांग है कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 12 (1) (ग ) के तहत दाखिला प्राप्त सरकारी विद्यालयों के सभी बच्चों को सरकार की तरफ से मोबाइल फोन उपलब्ध कराया जाए ताकि यह ऑनलाइन कक्षा में भाग ले सकें। अन्य बच्चों के लिए कोरोना काल शुल्क माफ हो या उसमें रियायत मिलनी चाहिए।

कई माता-पिता के  रोजगार प्रभावित होने के कारण  शुल्क दे पाने में असमर्थ है. लॉटरी में नाम आ जाने के बावजूद भी विद्यालय बेसिक शिक्षा कार्यालय से कोई पत्र प्राप्त ना होने का बहाना बनाकर बच्चों का दाखिला नहीं लेती। प्रवेश शुल्क, परीक्षा शुल्क आदि किसी न किसी नाम पर शुल्क जमा करने के लिए अभिभावकों पर दबाव बनाते हैं जबकि अधिनियम के तहत बच्चों  के लिए शिक्षा मुफ्त होनी चाहिए।

हालांकि शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 12 (1) (ग) के तहत न्यूनतम 25% अलादीन समूह आर्थिक  रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों के दाखिले का प्रावधान है किंतु इस बार भी विद्यालयों द्वारा दाखिले हेतु स्थान निश्चित कर दिए गए थे. जो 25% से कम है और कुछ बच्चों को लॉटरी की प्रक्रिया और  शिक्षा से वंचित कर दिया गया।  जो बच्चों के संविधान प्रदत्त शिक्षा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। जिन बच्चों ने भी इस धारा 12 (1) (ग) के तहत आवेदन किया है उन्हें किसी न किसी विद्यालय में दाखिला दिलाने की जिम्मेदारी सरकार की है क्योंकि अधिनियम के तहत बच्चों  के लिए शिक्षा अनिवार्य है।

शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 12 (1) (ग) के तहत दाखिला प्राप्त बच्चों के साथ भेदभाव बंद होना चाहिए तथा निजी विद्यालयों का राष्ट्रीयकरण करते हुए उनकी मनमानी प्राप्त की जानी चाहिए और समान शिक्षा प्रणाली लागू करनी चाहिए।

जब तक ऐसा ना हो तब तक 2015 के उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल के फैसले की सरकारी वेतन पाने वालों के बच्चों के लिए सरकारी विद्यालय में पढ़ना अनिवार्य हो को लागू करना चाहिए। जिससे सरकारी विद्यालयों की गुणवत्ता में सुधार हो।

 

 

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