लाल चीन का पाला नए भारत से पड़ा है

के विक्रम राव

ब्रिटेन के प्रथम प्रधानमंत्री सर राबर्ट वालपोल (1721-1742) ने कहा था : “चीन एक सुषुप्त हाथी है| उसकी तन्द्रा मत तोड़ना|” इसीलिए भारत के अंग्रेज साम्राज्यवादी बाराबंकी और नीमच आदि से अफीम निर्यात करते थे| वहां की आबादी व्यसनी हो गई| मदमस्त रहती थी| एकदम क्लीव| मगर शिन्हाई इन्कलाब (1912) ने अंतिम क्विंग सम्राट को उखाड़ फेंका| देशभक्त कोमितांग (अब निर्वासित होकर ताईवान में बसे) के संस्थापक डॉ. सन यात सेन ने साम्राज्य को गणराज्य बनाया| प्रथम राष्ट्रपति बने| इसे समाजवादी चिन्तक कुलपति आचार्य नरेंद्र देव ने अपनी भाषण-श्रृंखला (लखनऊ विश्वविद्यालय) में “एशिया के नवजागरण” की शुरुआत बताया था| यह क्रांति जन्मी थी वूहान से| वही स्थल जहां 107 वर्षों बाद कोरोना विषाणु जन्मा है और पूरे जगत को त्रस्त कर दिया है| यहीं प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने शी जिनपिंग से दूसरी शीर्षवार्ता (29 नवम्बर 2019) झील तट पर की थी| पहली महाबलीपुरम (तमिलनाडु) में थी| वूहान के रात्रिभोज पर चीनी संगीतकारों ने फ़िल्मी धुन बजाई थी: “तू है वही, दिल ने जिसे अपना कहा|” (फिल्म “ये वादा रहा” से) मगर शी जिनपिंग ने कहा था उन्हें “दंगल” फिल्म बहुत पसंद है| गत वर्ष आमिर खान अभिनीत उन्होंने यह फिल्म देखी भी थी| दोनों राष्ट्रनायकों ने प्रण किया कि डोकलाम जैसी झड़प नहीं होगी| मोदी ने शी जिनपिंग को जून 2020 में भारत फिर आने को कहा| न जाने चीन के राष्ट्रपति ने क्या समझा? अपनी जनमुक्ति सेना इसी जून में गलवान घाटी भेज दी|

चीन के नवऔपनिवेशिक साजिशों में पूर्वी एशिया प्राथमिक था| उसका मानना रहा है कि सब चपटी नाक वालों (मंगोल नस्ल के) पर चीन का नैसर्गिक वर्चस्व है| गमनीय है कि इतिहास में कभी भी भारत तथा चीन के बीच भू-सीमा नहीं रही| यात्रा मार्ग अन्य देश-प्रदेशों से थे| भारत के भौगोलिक दुर्भाग्य की शुरुआत हुई जब नवम्बर 1950 में जनमुक्ति सेना ने ल्हासा पर कब्ज़ा किया| तब नवचीन के कम्युनिस्ट प्रधान मंत्री झाऊ एनलाई ने जवाहरलाल नेहरु को पत्र लिखा कि : “तिब्बत को आजाद करा लिया है|” भारत के प्रधान मंत्री का प्रतिप्रश्न था : “किससे?” क्योंकि 1914 में शिमला त्रिपक्षीय वार्ता में तिब्बत और भारत में संधि हो गई कि मैकमोहन रेखा ही सीमा होगी| चीन ने हस्ताक्षर नहीं किया था| तबसे 1950 तक राजधानी ल्हासा में भारतीय दूतावास रहा था| चीन का आधिपत्य (suzerainity) था, सार्वभौम अधिकार नहीं तिब्बत पर| यह बौद्ध राष्ट्र स्वाधीन था|
सेनाध्यक्ष रहे जनरल जे. जे. सिंह, जो अरुणांचल के राज्यपाल भी रह चुके हैं, ने अपनी दस्तावेजी किताब “मैकमोहन लाइन: सेंचुरु ऑफ़ डिस्कार्ड” (हार्पर कालिंस प्रकाशन) में लिखा कि नेहरु एकमात्र कारण रहे भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में भौगोलिक त्रासदी के|

तिब्बत पर चीनी सेना के कब्जे पर सरदार वल्लभभाई पटेल ने (7 नवम्बर 1950) जवाहरलाल नेहरु को पत्र लिखा था कि पूर्वोत्तर भारत पर खतरा मंडरा रहा है| इस चेतावनी को नजरंदाज कर नेहरु ने बजाय तिब्बत मुक्त कराने के, उपप्रधान मंत्री को उनके विभाग से ही मुक्त कर दिया| तब “भाई-भाई” का जुनून जो सवार था| भारत पहला गैरकम्युनिस्ट राष्ट्र था जिसने कम्युनिस्ट चीन को मान्यता दी| संयुक्त राष्ट्र संघ में सदस्यता हेतु समर्थन दिया| तब चीन को अस्वीकार करने का कारण विश्व के लोकतान्त्रिक देश बता रहे थे कि बीजिंग की माओ सरकार मतपेटी से नहीं, वरन गोली से बनी है| माओ कह चुके थे कि सत्ता का स्रोत तो बन्दूक की नली होती है|

विडंबना यह है कि विस्तारवादी चीन केवल अपने दक्षिण (भारत) की ओर ही साम्राज्य को नहीं बढ़ा रहा है वरन चारों दिशाओं में तथा थल के अलावा नभ और जल में भी लाल पताकाएं फहरा रहा है | दक्षिण चीन सागर पर अब तक उसका राज हो जाता| मगर डोनाल्ड ट्रम्प ने वहां अपनी नवसेना को तैनात कर दिया है| उसके बमवर्षक जहाज चीन के नाविकों के सामने निनाद करके आवाज भरते हैं| आखिर अपने पुराने मित्रों जापान, दक्षिण कोरिया, वियतनाम, फिलिपींस, थाईलैंड आदि को जो बचाना है| उधर ताईवान पर चीन की कुदृष्टि दशकों से है| वहां की पुनर्निर्वाचित राष्ट्रपति श्रीमती त्सायी इंगवेन ने कहा कि स्वाधीनता हेतु हर नागरिक प्राणोत्सर्ग के लिए तत्पर है| मगर शी जिनपिंग कह चुके हैं कि “एक चीन” के प्रण को पूरा करने के लिए ताईवान को चीन में सम्मिलित करना ही होगा|” चीन मानता है कि हांगकांग की भांति ताइवान भी देर-सबेर शिकंजे में आएगा ही|

हाल ही में हिमालय के दक्षिण में चीनी लाल सेना के अपराधी घुसपैठ से भारत में जनजागृति तो हुई है| तिब्बत और कश्मीर को जोड़कर चीन अब उइगर (शिनजियांग) के तुर्की मुसलमानों का दमन दुगुना कर रहा है| ग्यारह लाख मुसलमानों को प्रशिक्षण के नाम पर शिविर में कैद कर रखा है| उन्हें नमाज नहीं अता करने दिया जाता है| मस्जिदें बंद हैं| जबरन घेंटे का गोश्त खिलाया जाता है| यह सब इस्लामी पाकिस्तान की जानकारी में है| कराची से राजधानी काशगार तक बस चलती है| पाक मुसलमान स्वयं देखते हैं कि उइगर के बिरादरों पर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी क्या सितम ढा रही है|
सबसे मजबूत विरोधी कम्युनिस्ट वियतनाम है जिसने चीन के नाकों दम कर रखा है| वह चीन को अपने भूभाग से खदेड़ भी चुका है| वियतनाम में भारत के तेल और प्राकृतिक गैस आयोग (ONGC) ने उत्पादन केंद्र बनाए हैं| वियतनामी राजदूत फाम सान्ह चाऊ ने नई दिल्ली में बताया कि चीनी नौसेना वहां हमला करने आई थी| इसीलिए भारतीय अन्तरिक्षअनुसन्धान संगठन (इसरो) ने वियतनाम में सुरक्षा यंत्र लगा दिया| भारत वियतनाम को प्रक्षेपास्त्र भी दे रहा है|

नरेंद्र मोदी ने गत सप्ताह अपनी लेह यात्रा पर हिमालयी ऊँचाई पर से उदघोष किया था कि, “ चीन विस्तारवादी है| उससे अब टकराव बनाम लेनदेन का फ़ॉर्मूला नहीं चलेगा|” वे नेहरु की “हिंदी-चीनी भाई-भाई” के फरेब को तोड़कर, अब सार्वभौम राष्ट्रवादी भारतीय अस्मिता को जगाना चाहते हैं|
जवाब भारतवासियों से चाहिए|
अतः पूर्वोत्तर भारत, विशेषकर लद्दाख, गिलगित और बाल्टिस्तान की सुरक्षा हेतु भारत को नए सिरे से सोचना होगा|

 

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