विकास के अपराध और सियासत के कॉकटेल से कोई भी सियासी दल अछूता नहीं

राजेश श्रीवास्तव

कानपुर के छोटे से गांव बिबरू का विकास दुबे, जिसे आज पूरा देश जान गया है। वह अचानक ही नहीं खड़ा हो गया है। आज भले ही उसे पूरा समाज जान गया हो लेकिन उसने कई बार सत्ता के लिये मुसीबत खड़ी की। पिछली बार भी जब उसने बड़ी घटना को अंजाम दिया तब भी उसने सत्ता को सीधे चुनौती दी थी और भाजपा के राज्य मंत्री को थाने के सामने ताबड़तोड़ गोलियों से छलनी कर दिया था। इस बार भी उसने भारतीय जनता पार्टी के शासन में ही एक ऐसी दुस्साहसिक घटना को अंजाम दे दिया जिसे लंबे समय तक या यूं कहें कि कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। बचपन से ही बड़ा अपराधी बनने का सपना देखने  वाले इस युवा का सपना भी अनोखा था लोग बड़ा आदमी बनना चाहते हैं लेकिन यह विकास अपराधी बनना चाहता था। शायद इसी लिए उसने अपराध और सियासत का ऐसा कॉकटेल बनाया कि कोई भी सियासी दल इसका स्वाद लेने से बच नहीं सका।
19 वर्ष पूर्व भाजपा की ही सरकार में सत्ताधारी दल के दर्ज़ा प्राप्त राज्यमंत्री को थाने में घुसकर मौत के घाट उतारने वाला अपराधी यदि अभी भी छुट्टा घूम रहा है तो यह समझने के लिए काफी है कि बिना राजनीतिक संरक्षण के यह संभव नहीं है। सरकार किसी की भी रही हो, विकास दुबे की बादशाहत हमेशा कायम रही। अपराध की दुनिया में कदम रखने के बाद इसी राजनीतिक संरक्षण का फायदा उठाकर विकास दुबे ने जमीन की सौदेबाजी को अपना मुख्य कारोबार बना लिया। बेशकीमती जमीनों के मालिकों को धमकाकर कम कीमत में खरीद लेना विकास का शगल था। राजनीतिक संरक्षण देने वालों ने भी इस बात का फायदा उठाया। आखिरकार विकास अपने और अपने आकाओं के लिए कुख्यात भू माफिया बन बैठा। बताते हैं कि कानपुर नगर, कानपुर देहात, इटावा, औरैया तक में विकास की बादशाहत कायम है। इन जिलों में कहीं भी कोई कीमती जमीन दिखती तो उसकी सौदेबाजी विकास दुबे और गुर्गों के जरिये ही होती। आसपास के कई जिलों के सफ़ेदपोश प्रॉपर्टी डीलर तक उससे अपना काम निकलवाते थे। महंगी जमीन को सस्ते में खरीदवाकर विकास अपना मोटा कमीशन लेता था। उसकी कमाई का यही असली जरिया था।
बताते हैं कि विकास दुबे की कानपुर, लखनऊ, आगरा समेत प्रदेश के कई शहरों में कीमती जमीनें और मकान हैं, जिनकी कीमत करोड़ों में है। पत्नी और एक बेटा लखनऊ के ही एक मकान में रहते हैं। अपराध और राजनीति में दखल रखने की वजह से विकास के साथ लुकाछिपी का खेल चल रहा था। जब वह सत्ता पक्ष के नेता के करीब होता तो खुलेआम अपनी हनक दिखाता। जब उसे किसी नेता का साथ नहीं मिलता तो वह छिपकर रहता। बीते 2० वर्षों से वह इसी तरह की जिदगी जी रहा है। इन वर्षों में कई मामलों में जेल भी गया और जमानत पर छूटता भी गया। पुलिस से बचने के लिए वह पैसा तो फेंकता ही था, अपने मकान भी बदलता था। यह काम उसके गुर्गे करते थे। ठिकाने बदलने के लिए ही उसने कई शहरों में मकान खरीदे और बेचे। हालांकि ये भी सच है कि उसकी ज्यादातर संपत्तियां उसके खुद के नाम पर नहीं हैं।
विकास की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस बार भी जब उसे गिरफ्तार करने के लिए पुलिस थाने से निकली तो उसके कुछ घंटे पहले ही चौबेपुर थाने के दरोगा ने ही उसको सूचना मुहैया करा दी। यह उसका नेटवर्क था इसी के चलते वह मंत्री हत्याकांड से भी बच निकला और इस बार भी वह अब तक पुलिस की पकड़ से दूर है। लेकिन सवाल यह है कि विकास जैेसे लोग कैसे खड़े हो जाते हैं। बिना राजनीतिक संरक्षण के ऐसे लोग कभी खड़े नहीं हो सकते। जब उसने भाजपा के मंत्री की हत्या की थी तभी उसे कड़ी सजा दिलायी जा सकती थी लेकिन वह बच निकला और केस भी खत्म हो गया। ऐसे में उसके उत्साह को तामीर तो सत्ता पक्ष के गलियारे से ही कराया गया। उसको ताकत वहीं से मिली। आज भी जब विकास के लखनऊ स्थित आवास की तलाशी ली गयी तो उसके मकान से बीजी सिरीज की सरकार गाड़ी मिली जो उत्तर प्रदेश सरकार के राज्य संपत्ति विभाग की है आखिर ये गाड़ी किसकी मर्जी से वहां तक पहुंची। यानि माना जाए तो विकास इसी सरकारी गाड़ी से आराम से चलहकदमी करता था। यदि ठीक से जांच की जाए तो निश्चित रूप से उसकी सत्ता के साथ साठगांठ जरूर सामने आयेगी। केवल भाजपा ही क्यों उसने बसपा,सपा और कांग्रेस तक से उनकी सरकारों में नजदीकियां बनाये रखीं लेकिन सरकारों को यह समझना होगा कि विकास जैसे लोग होते किसी के नहीं , शायद सियासी लोग यह जानते भी है और इसीलिए वह भी विकास जैसों का इस्तेमाल करते हैं। पूर्वकाल में कहीं अपराध और सियासत की गठजोड़ की कहानी सामने आ चुकी हैं। श्रीप्रकाश शुक्ला को लोग अभी भूले नहीं हैं।
पिता के अपमान का बदला लेने के लिए 199० में डिब्बा निवादा गांव में घुसकर लोगों को मारने वाले लड़के को सत्ता की इतनी सीढ़ियां चढ़ने को मिल गई कि वह दुर्दांत अपराधी बन गया। 1993 से अब तक उसके विरुद्ध 6० मुकदमे दर्ज हुए, इनमें दो मामले में उसे आजीवन कारावास हुई। हालांकि हाईकोर्ट से दोनों मामले में उसे जमानत मिली। सपा, बसपा, कांग्रेस और भाजपा यानी प्रदेश की सभी प्रमुख पार्टियों में गहरी पैठ ही उसकी ताकत रही। बिल्हौर विधानसभा क्षेत्र में तो कोई भी नेता उसका विरोध करने का साहस नहीं जुटा पाता था। यहां तक कि बसपा से जुड़े एक पूर्व मंत्री अब भाजपा से विधायक, और बसपा छोड़ कांग्रेस में गए एक पूर्व सांसद एक मामले में उसे पुलिस की हिरासत से छुड़ाने के लिए धरने पर बैठ गए थे। उन्हेंं भय था कि कहीं विकास का एनकाउंटर न कर दिया जाए। शिवली थाने में राज्यमंत्री दर्ज़ा प्राप्त संतोष शुक्ल हत्याकांड में मुख्य आरोपित होने के बावजूद वह बड़ी आसानी से सरेंडर करने में सफल हो गया था।
सपा, बसपा, कांग्रेस और भाजपा की सरकारों में कई एनकाउंटर हुए और बदमाश मारे गए लेकिन कभी भी विकास दुबे की तरफ आंख नहीं उठाई जा सकी। हालांकि वह कई बार गिरफ्तार हुआ पर वह मार न दिया जाए इसलिए नेता उसकी ढाल बनते रहे। भाजपा से जुड़े एक सांसद, एक-एक पूर्व सांसद, बसपा से भाजपा में आकर विधायक बने एक पूर्व मंत्री, भाजपा की एक पूर्व मंत्री, कांग्रेस व बसपा से सांसद रह चुके एक नेता, जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुके सपा के एक एमएलसी, बसपा से सपा में आए एक पूर्व विधायक और सपा छोड़ चुकीं एक पूर्व मंत्री हमेशा उसका साथ देती रहीं। बताया जा रहा है कि वह रनिया सीट से चुनाव लड?े की तैयारी कर रहा था। 2००2 में बसपा सरकार में विकास का सिक्का बिल्हौर, शिवराजपुर, रनियां, चौबेपुर में इस कदर चला कि अवैध कब्जे बिकरू समेत आसपास के दस से ज्यादा गांवों में अपनी दहशत कायम कर ली। इसी दहशत के चलते विकास 15 वर्ष तक जिला पंचायत सदस्य के पद पर कब्जा किए रहा। वर्ष 1995 से 2००० तक बिकरू से प्रधान रहा। सीट आरक्षित होने पर समर्थक राजकुमार की पत्नी को नि?वरोध प्रधान बनाया और खुद बसपा के समर्थन से जिला पंचायत सदस्य बन गया। इसके बाद अपने भाई अनुराग दुबे को जिपं सदस्य बनवाया। वर्ष 2०15 के चुनाव में पत्नी ऋचा दुबे को घिमऊ से सपा के समर्थन से जिपं सदस्य बनाया। इस चुनाव में बसपा के लोगों ने बहुत खुलकर विरोध भी नहीं किया था।

 

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