विदाई भाषण में बोले राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी- समाज में हिंसा की कोई जगह नहीं

नई दिल्ली। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज राष्ट्रपति के तौर पर देश को आखिरी बार संबेधित किया. कल रामनाथ कोविंद संसद भवन के सेंट्रल हॉल में देश के 14वें राष्ट्रपति के तौर पर शपथ लेंगे. अपने आखिरी संबोधन में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा कि सभ्य समाज में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है.

अहिंसक समाज ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया में सभी की भागीदारी सुनिश्चित कर सकता है
राष्ट्रपति मुखर्जी ने कहा, ” सहृदयता और समानुभूति की क्षमता हमारी सभ्यता की सच्ची नींव है. परंतु प्रतिदिन हम अपने आसपास बढ़ती हुई हिंसा देखते हैं. इस हिंसा की जड़ में अज्ञानता, भय और अविश्वास है. हमें अपने जन संवाद को शारीरिक और मौखिक सभी तरह की हिंसा से मुक्त करना होगा. एक अहिंसक समाज ही लोकतांत्रिक प्रक्रिया में लोगों के सभी वर्गों विशेषकर पिछड़ों और वंचितों की भागीदारी सुनिश्चित कर सकता है. हमें एक सहानुभूतिपूर्ण और जिम्मेवार समाज के निर्माण के लिए अहिंसा की शक्ति को पुनर्जाग्रत करना होगा.”

मेरे पास देने के लिए कोई उपदेश नहीं
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा, “जैसे-जैसे व्यक्ति की आयु बढ़ती है, उसकी उपदेश देने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है. परंतु मेरे पास देने के लिए कोई उपदेश नहीं है. पिछले पचास वर्षों के सार्वजनिक जीवन के दौरान, भारत का संविधान मेरा पवित्र ग्रंथ रहा है, भारत की संसद मेरा मंदिर रहा है और भारत की जनता की सेवा मेरी अभिलाषा रहा है.”

गरीब को महसूस होना चाहिए कि वह राष्ट्र हिस्सा है
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा, “मैंने देश को जितना दिया, उससे कहीं अधिक पाया है. इसके लिए, मैं भारत के लोगों के प्रति सदैव ऋणी रहूंगा. एक आधुनिक राष्ट्र का निर्माण कुछ आवश्यक मूल तत्वों – प्रत्येक नागरिक के लिए लोकतंत्र अथवा समान अधिकार, प्रत्येक पंथ के लिए निरपेक्षता अथवा समान स्वतंत्रता, प्रत्येक प्रांत की समानता तथा आर्थिक समता पर होता है. विकास को वास्तविक बनाने के लिए, देश के सबसे गरीब को यह महसूस होना चाहिए कि वह राष्ट्र गाथा का एक भाग है.”

शिक्षा से समाज को पुनर्व्यवस्थित किया जा सकता है
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा, “जैसा कि मैंने राष्ट्रपति का पद ग्रहण करते समय कहा था, कि शिक्षा एक ऐसा माध्यम है जो भारत को अगले स्वर्ण युग में ले जा सकता है. शिक्षा की परिवर्तनकारी शक्ति से समाज को पुनर्व्यवस्थित किया जा सकता है. इसके लिए हमें अपने उच्च संस्थानों को विश्व स्तरीय बनाना होगा. हमारी शिक्षा प्रणाली द्वारा रुकावटों को सामान्य घटना के रूप में स्वीकार करना चाहिए और हमारे विद्यार्थियों को रुकावटों से निपटने और आगे बढ़ने के लिए तैयार करना चाहिए. हमारे विश्वविद्यालयों को रटकर याद करने वाला स्थान नहीं बल्कि जिज्ञासु व्यक्तियों का सभा स्थल बनाया जाना चाहिए.

लोकतंत्र में कोई सम्मान पद नहीं भारत का नागरिक होने में है
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा, “जबकि मैं विदा होने के लिए तैयार हो रहा हूं, मैं 2012 के स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के अपने प्रथम संबोधन में जो कहा था, उसे दोहराता हूं: ‘इस महान पद का सम्मान प्रदान करने के लिए, देशवासियों तथा उनके प्रतिनिधियों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के लिए मेरे पास पर्याप्त शब्द नहीं है, यद्यपि मुझे इस बात का पूरा अहसास है कि लोकतंत्र में सबसे बड़ा सम्मान किसी पद में नहीं बल्कि हमारी मातृभूमि, भारत का नागरिक होने में है. अपनी मां के सामने हम सभी बच्चे समान हैं, और भारत हम में से हर एक से यह अपेक्षा रखता है कि राष्ट्र-निर्माण के इस जटिल कार्य में हम जो भी भूमिका निभा रहे हैं, उसे हम ईमानदारी, समर्पण और हमारे संविधान में स्थापित मूल्यों के प्रति दृढ़ निष्ठा के साथ निभाएं.”

जिस घर में रहे थे कलाम उसी घर में रहेगे प्रणब दा
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 25 जुलाई, 2012 को भारत के 13वें राष्ट्रपति के रूप में पदभार ग्रहण किया था. इससे पहले सरकार में रहकर मुखर्जी विदेश, रक्षा, वाणिज्य और वित्त मंत्रालय जैसे अहम महकमे संभाल चुके हैं. उन्हें 1969 से पांच बार संसद के उच्च सदन (राज्य सभा) के लिए और 2004 से दो बार संसद के निचले सदन (लोक सभा) के लिए चुना गया. 81 वर्षीय प्रणब मुखर्जी अब विशाल राष्ट्रपति भवन छोड़कर 10 राजाजी मार्ग पर रहेंगे. इस दो मंजिला बंगले में पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम भी अपनी सेवानिवृत्ति के बाद से निधन होने तक रहे थे.

 

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