विधानसभा चुनाव में जनता करेगी तय नोटबंदी सही या गलत?

dillimodiनई दिल्ली। चुनाव आयोग ने बुधवार को 5 राज्यों की विधानसभाओं के लिए चुनाव की तारीख घोषित कर दी है। इन चुनावों को ‘मिनी आम चुनाव’ माना जा रहा है। 8 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को बैन करने की घोषणा के बाद होने वाले इन चुनावों को राजनीतिक विश्लेषक बीजेपी के लिए नोटबंदी पर जनमत संग्रह के तौर पर देख रहे हैं।

पीएम की नोटबंदी की घोषणा के बाद तमाम विपक्षी दल इसका विरोध करने लगे। यहां तक कि संसद का शीतकालीन सत्र नोटबंदी पर हुए हंगामे की भेट चढ़ गया। नोटबंदी के बाद से अबतक गंगा में काफी पानी बह चुका है। हालांकि, 50 दिन बीत जाने के बाद हालात धीरे-धीरे अब सामान्य हो रहे हैं लेकिन विपक्षी दल 50 दिनों तक जनता को हुई असुविधा को मुद्दा बनाकर लगातार केंद्र की मोदी सरकार को घेर रहे हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मनीष तिवारी ने साफ कहा है कि आने वाले विधानसभा चुनावों में नोटबंदी मुख्य मुद्दा होगा। उन्होंने कहा, ‘नोटबंदी से देश की 125 करोड़ की आबादी को काफी असुविधा झेलनी पड़ी है।

तिवारी के इस बयान के बाद मोदी के लिए इन 5 राज्यों का चुनाव खासकर, यूपी का चुनाव नोटबंदी के बाद जनमत संग्रह माना जा रहा है। दरअसल, बीजेपी नोटबंदी के बाद मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा उपचुनाव और चंडीगढ़ नगर निगम का चुनाव जीतकर यह दावा कर चुकी है कि जनता ने नोटबंदी पर मोदी के फैसले का समर्थन किया है। लेकिन, राजनीतिक विश्लेषक मोदी का असल इम्तिहान यूपी चुनाव को मान रहे हैं।

यूपी की 403 विधानसभा सीटों पर कुल 7 चरणों में चुनाव होंगे। माना जा रहा है कि एसपी, बीएसपी और कांग्रेस समेत अन्य राजनातिक दल मोदी द्वारा किए गए नोटबंदी को इस चुनाव में बड़ा मुद्दा बनाएंगे। ऐसे में क्या सूबे की जनता मोदी को लोकसभा चुनावों की तरह विधानसभा चुनाव में भी बहुमत का आशीर्वाद देगी? यह सवाल राजनीतिक विश्लेषक ही नहीं बल्कि बीजेपी के जेहन में भी कौंध रहा होगा।

बीजेपी ने साफ किया है कि यूपी चुनाव में पीएम मोदी ही पार्टी का चेहरा होंगे। यानी चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन बेहतर हो, इसका सारा दारोमदार मोदी के कंधों पर ही टिका हुआ है। मोदी राज्य में कई परिवर्तन रैलियों में जनता को नोटबंदी के समर्थन के लिए धन्यवाद दे चुके हैं। उन्होंने रैलियों में नोटबंदी से हुई परेशानी के लिए जनता से माफी भी मांगी और 50 दिन तक सब्र दिखाने के लिए आभार भी जताया है। एक बार फिर अब सबकुछ जनता जर्नादन के कंधों पर टिका हुआ है।

 

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