शेल्टर होम स्कैंडलः सिर्फ आरा-छपरा या पटना ही नहीं, 7 मनोवैज्ञानिकों की रिपोर्ट से हिल गया पूरा बिहार

नई दिल्ली/पटना/मुजफ्फरपुर। भोजपुरी का एक गाना बहुत चर्चित रहा है, ‘आरा हिले…छपरा हिले…, पटना हिले ला…’. एक प्रेमी ने अपनी माशूका के लिए यह गाना लिखा था. लेकिन हम आज बात कर रहे हैं उस रिपोर्ट की, जिसे लिखने वालों ने पूरा बिहार हिला दिया. जी हां, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) के 7 युवा मनोवैज्ञानिकों की टीम ने बिहार के 110 शेल्टर होम की जांच के बाद जो रिपोर्ट लिखी, उससे आरा-छपरा या राजधानी पटना ही नहीं, बल्कि पूरा बिहार (आप बिहार की जगह देश को भी रख सकते हैं) हिल गया. इस टीम की अगुवाई करने वाले मो. तारिक ने अंग्रेजी अखबार इकोनॉमिक टाइम्स से कहा, ‘मुजफ्फरपुर शेल्टर होम स्कैंडल प्रकरण के बारे में अध्ययन शुरू करने से पहले न तो हमें और न ही बिहार सरकार को ये अनुमान था कि हम यौन उत्पीड़न की कैसी खौफनाक कहानियों का पर्दाफाश करने जा रहे हैं. लेकिन हमने बच्चों से बात की, उनमें आत्मविश्वास जगाया और इस अमानवीय करतूत को दुनिया के सामने ला पाए.’

7 महीने में 38 जिलों की यात्रा
बिहार सरकार ने पिछले साल जुलाई में TISS से आग्रह किया था कि वह प्रदेश के विभिन्न जिलों में सरकार और गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा चलाए जा रहे पुनर्वास गृहों, अल्पावास गृह, ओल्ड-एज होम, एडॉप्शन-सेंटर आदि का सोशल ऑडिट करे. TISS की 7 मनोवैज्ञानिकों की टीम ने इसके बाद अगले सात महीनों तक बिहार के सभी 38 जिलों में चल रहे 110 शेल्टर होम की जांच-पड़ताल की. टीम में शामिल तीन महिलाओं में से हर एक ने कम से कम 30-30 बच्चियों से बात की, जिससे यौन उत्पीड़न की कहानियां बाहर आ पाईं. मो. तारिक ने इकोनॉमिक टाइम्स के साथ बातचीत में सोशल ऑडिट कराने के लिए बिहार सरकार की तारीफ की. उन्होंने कहा, ‘पुनर्वास गृहों का सोशल ऑडिट कराने की हिम्मत दिखाने के लिए बिहार सरकार की सराहना जानी चाहिए. साथ ही इसे हर राज्य के लिए अनिवार्य बनाया जाना चाहिए. क्योंकि हमें इन जगहों को बच्चों के लिए सुरक्षित बनाना होगा. TISS की रिपोर्ट के मद्देनजर ऐसे शेल्टर होम के खिलाफ जल्द से जल्द कड़ी कार्रवाई होना चाहिए.’

किसी शेल्टर होम में न चाय पी, न नाश्ता किया
7 मनोवैज्ञानिकों की टीम के अगुवा मो. तारिक ने बताया कि शेल्टर होम में रहने वालों से बात करना, उनके अनुभव को जानना आसान नहीं था. हमें एक-एक बच्चे से बात करनी थी. बच्चे आमतौर पर किसी भी अंजान व्यक्ति के साथ आसानी से खुलकर बातचीत नहीं कर पाते हैं. खासकर लड़कियां. मो. तारिक ने इकोनॉमिक टाइम्स को बताया, ‘बिहार के कई शेल्टर होम का माहौल ऐसा है कि बच्चे खुलकर बात करने की सोच ही नहीं सकते. हमारी टीम के साथ अपने अनुभव बांटने के दौरान शेल्टर होम में रहने वाली कई लड़कियां इतनी डरी हुई रहती थीं कि अपनी आपबीती को भी दूसरी लड़कियों का नाम लेकर बता पाती थी.’ मो. तारिक ने बताया कि शेल्टर होम में रहने वाले बच्चे, TISS की टीम के सदस्यों के साथ ठीक से बात कर सकें, इसके लिए भी टीम ने पूरी तैयारी की थी. तारिक ने उदाहरण देते हुए समझाया कि मान लीजिए आप शेल्टर होम के अधीक्षक के कमरे में बैठे हैं और वहां रहने वाले किसी बच्चे ने आपको चाय लाकर दी. यह बात बच्चों को खटक सकती थी. उनके मन में TISS की टीम के प्रति संदेह पैदा कर सकती थी. इसलिए टीम के सदस्यों ने किसी भी शेल्टर होम में न तो चाय पी और न ही नाश्ता स्वीकार किया.

हर बच्चे से अलग-अलग बातचीत करती थी टीम
मो. तारिक ने इकोनॉमिक टाइम्स के साथ बातचीत में बताया कि बच्चों के अनुभव जानने के लिए उनकी टीम के हर सदस्य ने एक-एक बच्चे से निजी तौर पर बातचीत की. उन्होंने बताया, ‘जिस कमरे में या जिस जगह पर TISS की टीम का कोई सदस्य किसी बच्चे से बात करता था, उस दौरान शेल्टर होम के किसी अधिकारी या कर्मचारी को वहां आने की इजाजत नहीं होती थी. हम लोगों ने शेल्टर होम के कर्मियों को इसके लिए सख्त ताकीद की थी. यह चेतावनी भी दी थी कि अगर किसी ने बात नहीं मानी तो उसकी शिकायत सरकार से की जाएगी.’ मो. तारिक ने कहा कि अलग-अलग बातचीत का ही नतीजा था कि हमें रूह तक को कंपा देने वाली कहानियां मिलीं, रोंगटे खड़े कर देने वाले अनुभवों से हमारा सामना हुआ. हम लोगों ने बच्चों को कोई आश्वासन नहीं दिया और न ही झूठे सपने दिखाए. हमने उनसे सिर्फ इतना कहा कि बच्चे हमें जो बताएंगे, उसे हम सरकार तक पहुंचाएंगे ताकि उनके साथ भविष्य में बुरा न हो.

हर राज्य में कराया जाए सोशल ऑडिट
बिहार के 110 शेल्टर होम से जो हौलनाक कहानियां सामने आई हैं, उसके आधार पर TISS की टीम ने बिहार सरकार को कई सुझाव भी दिए हैं. साथ ही टीम ने अपनी रिपोर्ट में सोशल ऑडिट को हर राज्य में अपनाए जाने की सिफारिश की है. मो. तारिक ने इकोनॉमिक टाइम्स के साथ बातचीत में कहा, ‘कई शेल्टर होम में कागजों पर सब कुछ व्यवस्थित दिखाए जाने का प्रयास किया जाता है. बिहार के भी कई शेल्टर होम में ऐसी स्थिति दिखी. एक शेल्टर होम में चिल्ड्रन कमेटी गठित की गई है, जिसके बैठकों के रजिस्टर बकायदा अपडेट किए जाते हैं. एक चिल्ड्रेन कमेटी की बैठक का रजिस्टर हमने देखा, जिसमें बैठक का पूरा विवरण दिया गया था. लेकिन जब कमेटी के सदस्य बच्चे से हमने बात की तो हकीकत बिल्कुल उलट थी. हमारी टीम के सदस्य ने बच्चे से पूछा कि आपने बैठक में क्या निर्णय लिया, तो उसे कुछ मालूम ही नहीं था. बच्चे को चिल्ड्रेन कमेटी की बैठक के बारे में भी कोई जानकारी नहीं थी.’ तारिक ने कहा कि बिहार के शेल्टर होम जैसी स्थिति आगे देखने को नहीं मिले, इसके लिए सोशल ऑडिट कराया जाना जरूरी है.

 

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