संसदीय संप्रभुता के लिए झटका है सुप्रीम कोर्ट का फैसलाः रवि शंकर प्रसाद

ravi shankarतहलका एक्सप्रेस

नई दिल्ली। टेलिकॉम मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कहा है कि नैशनल जुडिशल अपॉइंटमेंट्स कमिशन को असंवैधानिक करार देने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला संसदीय संप्रभुता के लिए झटका है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम फैसले में कहा कि जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम सिस्टम ही ठीक है। इस फैसले के साथ ही सरकार के बनाए आयोग को देश की सर्वोच्च अदालत ने खारिज कर दिया।

इस फैसले पर प्रतिक्रिया में प्रसाद ने कहा, ‘हमारे हिसाब से यह कदम 20 साल के गहन विचार-विमर्श के बाद न्यायिक सुधार की प्रक्रिया के तहत उठाया गया था। हम इस फैसले का अध्ययन करेंगे और इस पर अपना विस्तृत जवाब देंगे।’

केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली में सुधार के लिए सुझाव लेने की सुप्रीम कोर्ट की इच्छा दर्शाती है कि इस प्रक्रिया में कुछ गलत है। फैसले के गुण-दोषों में नहीं जाते हुए प्रसाद ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह तीन नवंबर से कॉलेजियम प्रणाली में सुधार के मुद्दे पर सुनवाई करेगा। यह दिखाता है कि कॉलेजियम प्रणाली में कुछ तो गलत है।’

सुप्रीम कोर्ट और देश में 24 उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए बनाया गया कानून खारिज करने के संविधान पीठ के फैसले के संबंध में प्रसाद ने संवाददाताओं से कहा कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम देश में न्यायिक सुधारों का हिस्सा था जिसे पूरी संसद और प्रतिष्ठित विधिवेत्ताओं का समर्थन था। उन्होंने कहा, ‘यह अचानक से नहीं हुआ था। संविधान समीक्षा आयोग, प्रशासनिक सुधार आयोग और संसदीय स्थाई समितियों ने अपनी तीन रिपोर्ट्स में इस तरह के कानून की सिफारिश की थी।’

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जब पिछले साल विधेयक को मंजूरी दी थी और फिर संसद के दोनों सदनों ने इसे पारित किया था, तब प्रसाद कानून मंत्री थे। उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति की दो दशक से अधिक पुरानी कॉलेजियम प्रणाली की जगह लेने के लिये एनजेएसी कानून लाया गया था। प्रसाद ने कहा कि कई रिटायर्ड जजों और प्रतिष्ठित कानूनविदों ने इस बात पर सहमति जताई थी कि कॉलेजियम प्रणाली में बदलाव पर विचार की जरूरत है

कॉलेजियम प्रणाली की जगह लाई गई व्यवस्था के बचाव में उन्होंने कहा कि 1950 से 1993 के बीच जब कार्यपालिका न्यायाधीशों का चुनाव करती थी तो न्यायपालिका में ऐसे कई लोगों की नियुक्ति हुई जिन्होंने संस्था का नाम ऊंचा किया। न्यायपालिका की स्वतंत्रता के सवाल पर प्रसाद ने कहा कि आपातकाल के दौरान बीजेपी नेताओं ने लोगों और प्रेस की आजादी तथा न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया था।

 

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