सख्त रवैया न अपनाते तो इस बार कर्नाटक से भी कांग्रेस हो जाती मुक्त

राजेश श्रीवास्तव

कर्नाटक में जो कुछ भी हुआ वह पूरे देश ने देखा। इसे कांग्रेस -जेडीएस की जीत से ज्यादा इस तरह से देखा जा रहा है कि भाजपा ने यही रवैया अपनाकर गोवा, मेघालय व बिहार आदि में सरकार बना ली। अगर कांग्रेस इस बार सख्त रवैया न अपनाती तो इतना तो तय था कि इस बार भी भाजपा कर्नाटक में सरकार बना लेती और संदेश यही दिया जाता कि कर्नाटक से भी कांग्रेस मुक्त हो गयी। मोदी की कांग्रेस मुक्त अभियान की यात्रा में कर्नाटक में जिस तरह ब्रेक लगा है उसने केवल विपक्ष को ही ऊर्जा नहीं दी बल्कि उसके अब तक के जीत पर भी ग्रहण लगा दिया है।

अब जनता को लगने लगा है कि अगर विपक्षी ख्ोमा पहले भी सख्त रवैया अपनाती तो कर्नाटक समेत अन्य पांच राज्यों मंे भी आज भाजपा की सरकार न होती। क्योंकि कर्नाटक में भी तो अमित शाह और मोदी की रणनीति ने विजयश्री हासिल कर ली ही होती। अगर उसे बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन का समय मिल जाता। तो आठ क्या भाजपा 18 विधायकों का इंतजाम कर लेती। वह तो अंतिम समय में सुप्रीम कोर्ट ने बहुमत साबित करने के लिए दो दिन का समय देकर भाजपा के मंसूबों पर पलीता लगा दिया।

2०14 का लोकसभा चुनाव जीतने के बाद चुनाव दर चुनाव जीत कर सियासत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की अजेय होने का तिलस्म कर्नाटक में टूट गया। महज दो सीट हासिल कर मेघालय में तो कांग्रेस से बहुत पीछे होने के बावजूद गोवा में सरकार बनाने का चमत्कार यह जोड़ी कर्नाटक में नहीं दुहरा पाई। वह भी तब जब पार्टी बहुमत के आंकड़े के बेहद करीब थी। दरअसल पूरे मामले में सुप्रीम कोर्ट के दखल, कांग्रेस के समय रहते सचेत होने, येदियुरप्पा को बहुमत साबित करने के लिए ज्यादा समय न मिलने और डीके शिवकुमार की व्यूहरचना ने भाजपा की हर योजना धराशाई कर दी।

बहुमत से महज सात सीट दूर पार्टी नतीजे आने के बाद सरकार बनाने के प्रति आश्वस्त थी। जिस प्रकार कांग्रेस ने नतीजे वाले दिन अचानक जदएस को समर्थन की घोषणा की उससे पार्टी को उम्मीद थी कि इस फैसले के कारण कांग्रेस के कई विधायक नाराज होंगे। इसी बीच जब राज्यपाल ने येदियुरप्पा को बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन का वक्त दिया तो पार्टी पहले से भी ज्यादा निशंर्चत हो गई। मेघालय और गोवा में कांग्रेस को इस मोर्चे पर पटखनी दे चुकी पार्टी कांग्रेस की रणनीति को हलके में लिया। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट के दखल से तस्वीर धीरे धीरे पलटती चली गई। मामला हाथ से जाता देख भाजपा ने विधायकों को साधने के अलावा हर दांव आजमाया मगर उसकी एक भी रणनीति परवान नहीं चढ़ पाई। भाजपा की रणनीति फ़ेल करने में दक्षिणी कर्नाटक में कांग्रेस का चेहरा माने जाने वाले डीके शिवकुमार ने अहम भूमिका निभाई।

गुजरात राज्यसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस विधायकों को अपने गेस्ट हाउस में रखने वाले शिवकुमार ने ही विधायकों को भाजपा के संपर्क से बचाने की रणनीति का जिम्मा संभाला। विधायक जहां जहां रुके, उसका इंतजाम भी शिवकुमार ने ही किया। भले ही येदियुरप्पा बहुमत साबित करने में नाकाम रहे, मगर सोमवार को शपथ लेने वाली कुमारस्वामी सरकार की राह भी आसान नहीं होगी। अब देश के गिने चुने राज्यों में ही कांग्रेस का राज है। ऐसे में कर्नाटक में भाजपा सरकार का कांग्रेस कांग्रेस के लिए किसी राहत से कम नहीं है। दरअसल, कांग्रेस ने यहां गोवा और मणिपुर जैसी गलती नहीं दोहराई। कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की सुस्ती के चलते इन दोनों राज्यों में सबसे बड़ा दल होने के बावजूद भी वे यहां अपनी सरकार नहीं बना पाई थी। कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा के बाद कांग्रेस यहां फूंक-फूंक कर कदम रख रही थी। उसकी यही सख्ती और तल्ख रवैये ने इस बार कांग्रेस के सपनों को पंख लगा दिये और भाजपा के मंसूबों पर पलीता।

 

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