सजा तो दूर, नोटिस तक रिसीव नहीं करवा पाई नीतीश सरकार

इसका फायदा उन्हें यह हुआ कि ज्यादातर मामलों में जमानत मिल गई व 37 गंभीर अपराधिक मुकदमों में ट्रॉयल ही नहीं हो सका। इस वजह से शहाबुद्दीन जल्द ही जेल से बाहर आने वाले हैं। ‘ईनाडु इंडिया’ आपको बताएगा कि कैसे चंद लोग शहाबुद्दीन को जेल से बाहर निकालने की जुगत में है।

नीतीश के साथ आने के बाद लालू ने बिहार में अपनी खोयी जमीन को हासिल किया है। इसे बरकार रखने के लिए शहाबुद्दीन जैसे लोगों की जरुरत लालू यादव को महसूस होती रहती है। शहाबुद्दीन को मुख्यधारा की राजनीति में वापस लाने के लिए लालू ने सियासी बिसात बिछा दी है। जेल में रहते हुए भी उन्होंने आरजेडी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शहाबुद्दीन को शामिल कर लिया है।

शहाबुद्दीन के पास पैसे नहीं हैं
आरजेडी नेता शहाबुद्दीन के पास केस लड़ने के लिए पैसे भी नहीं है। इस बात की जानकारी उन्होंने न्यायलय में दी है। इनके खिलाफ 50 से अधिक मुकदमें दर्ज हैं। तमाम केसों का स्पीडी ट्रॉयल हो, इसके लिए हाईकोर्ट में अपील दायर की है। हाईकोर्ट ने मामले कि गंभीरता को देखते हुए सीवान में एक स्पेशल कोर्ट का गठन किया, जो सिर्फ शहाबुद्दीन के मामले की सुनवाई करेगा।

इसी बीच 2012 में शहाबुद्दीन ने सीवान कोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने कहा कि हमारे पास वकील रखने के लिए पैसे नहीं हैं। सरकार मुझे वकील मुहैया कराये। शहाबुद्दीन की मांग पर न्यायिक-व्यवस्था में यह प्रावधान है कि कोई अभियुक्त जिसके पास अपना वकील रखने का पैसा नहीं है वैसे अभियुक्तों को वकील मुहैया कराया जाता है। शहाबुद्दीन ने इस मामले को लेकर एडीजे-3 की अदालत में याचिका दायर की है। जिसमें कहा गया है कि पूरी सरकार मेरे पीछे पड़ी हुई है, ऐसे में मुझे बड़े वकील रखने कि अनुमति दी जाए और उसका फीस सरकार वहन करे।

वरिष्ठ अधिवक्ता जे पी सिंह ने बताया कि कैम्प जेल कोर्ट सीवान ने शहाबुद्दीन की याचिका को स्वीकार करते हुए सरकार ने इन्हें वकील मुहैया कराने का आदेश दिया है। शहाबुद्दीन की मांग के मुताबिक कोर्ट ने अभय सिंह राजन को बतौर वकील  मुहैया कराने का आदेश दे दिया है। कोर्ट के फैसले के खिलाफ सीवान के स्पेशल पीपी ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर किया और हाइकोर्ट ने निचले न्यायलय के फैसले पर रोक लगाते हुए कहा कि केस लिस्ट पर तभी लाया जाये, जब अभियुक्त को हाइकोर्ट में हाजिर कराया जाये।

कोर्ट के इस आदेश के बाद 37 ऐसे अपराधिक मामले हैं, जिसकी अलग-अलग कोर्ट में सुनवाई हो रही थी वो रुक गई। इसमें कई ऐसे मामले भी थे जिसमें सिर्फ बचाव पक्ष का दलील बाकी रह गया था। जानकार बताते हैं कि इन 37 मामलों में 20 ऐसे मामले हैं, जिसमें शहाबुद्दीन को सजा मिलनी तय थी।

चार सालों से रिसीव नहीं किया है नोटिस
सीवान कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सरकार हाईकोर्ट गई। हाईकोर्ट ने सरकार की दलील सुनने के बाद सीवान कोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी और शहाबुद्दीन को नोटिस जारी कर दिया। लेकिन उस नोटिस को चार वर्ष बाद भी शहाबुद्दीन ने रिसीव नहीं किया है, जिसके कारण पूरा मामला अभी भी लम्बित है।

ट्रॉयल पूरा नहीं होने पर जमानत ले सकता है

इसके दूसरे पहलू को समझिए इन 37 मामलों का ट्रायल पूरा नहीं होने के आधार पर अभियुक्त जमानत याचिका दायर सकता है। शहाबुद्दीन ने भी इसी आधार पर हाईकोर्ट तक जमानत के लिए याचिका दायर कर दी। इन चार वर्षों के दौरान उन सभी 37 मामले में शहाबुद्दीन को जमानत मिल गई, जिसमें ट्रॉयल पूरी होने पर सजा भी हो सकती थी।

पूरे घटनाक्रम से कई सवाल खड़े हो रहे हैं। आखिर वह कौन लोग हैं जो शहाबुद्दीन को बचाना चाहते थे और किन परिस्थितियों में शहाबुद्दीन को नोटिस पहुंचाने में 4 साल का वक्त लग गया। जेल में बंद होने के बावजूद शहाबुद्दीन तक कोर्ट की नोटिस कैसे नहीं पहुंची। तमाम सवाल ऐसे हैं जो सरकार की मंशा पर सवाल खड़ा करते हैं।

 

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