सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई ने भी सीओ जिऊल हक़ के मामले में नहीं किया सही तरीके से जांच

नयी दिल्ली/लखनऊ। 2 मार्च 2014 को उत्तर प्रदेश के कुंडा जिले में हुई एक घटना ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया था। यहां के हथिगवा थानाक्षेत्र में आने वाले बलिपुर गांव में उत्तर प्रदेश पुलिस के सीओ जियाउल हक की हत्या कर दी गई थी। ये हत्या तब की गई थी जब वो दल-बल के साथ बलिपुर गांव में प्रधान की हत्या में जरूरी कार्रवाई लिए पहुंचे थे। सीओ लेवल के अधिकारी की हत्या की खबर सुनकर यूपी की सपा सरकार सकते में आ गई थी। सीओ की पत्नी परवीन आजाद ने इस हत्या के पीछे उस समय सपा सरकार के कारागार मंत्री रहे रघुराज प्रताप सिंह उर्फ़ राजा भैया का हाथ बताया था।

आनन-फानन में घटना की पुलिस जांच शुरू कराई गई। लेकिन मृतक जियाउल हक की परिवार के लोग उस पुलिस जांच से संतुष्ट नहीं थे। शहीद सीओ की पत्नी परवीन आजाद ने अपने एफआईआर में जियाऊल हक की हत्या के लिए राजा भैया और उनके करीबी और कुंडा के चेयरमैन गुलशन यादव, गुड्डू सिंह, रोहित सिंह व हरिओम श्रीवास्तव को जिम्मेदार ठहराया था। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए सरकार ने इस घटना की जांच सीबीआई को सौंप दी। हालांकि सीबीआई ने अपने शुरूआती जांच में ही राजा भैया को निर्दोष करार दे दिया और राजा भैया फिर से यूपी के कैबिनेट में शामिल हो गए।

इस मामले में सीबीआई ने प्रधान के परिवार समेत अन्य 8 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर किया। जबकि गुलशन यादव, गुड्डु सिंह, रोहित सिंह, और हरिओम श्री वास्तव को भी क्लीनचीट दे दिया गया। लेकिन अदालत ने सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट को नहीं माना और सीबीआई की जांच पर सवालिया निशान लगा दिया।

कोबरापोस्ट की टीम ने जब सीबीआई जांच की छानबीन की और साथ ही उस घटना से जुड़े लोगों को पूछताछ की तो कई चौंकने वाले खुलासे हुए। ऐसे खुलासे जिसे सुनकर सीबीआई की जांच भी शक के दायरे में आ रही है। लेकिन चूंकी ये मामला अभी न्यायालय में विचाराधीन है इसलिए हमारा किसी भी ठोस नतीजे पर पहुंचना अदालत की अवमामना होगी।

हमारे खुलासे में ये साबित हो रहा था इस मामले में सीबीआई ने अपना काम ठीक तरह से नहीं किया। हमने अपनी छानबीन में इस घटना के समय शहीद सीओ के गनर इमरान सिद्दकी, तब के नवाबगंज के एसएचओ अरविंद कुमार सिंह, इंस्पेक्टर के ड्राइवर सुरेश सिंह, आरक्षक शौकत खान, महबूब आलम, विपिन कुमार पांडे, शक्ति दत्त दुबे, गुलाम चंद्र मिश्रा और उस समय इंस्पेक्टर सर्वेश मिश्रा के हमराही रहे हबीब सिद्दकी से संपर्क साधा। 

हमारी जांच में जो सामने आया उसे जानकर आप भी हैरान जाएंगे। आप हैरान रह जाएंगे जब आप ये जनेंगे कि देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी ने भी किस तरह से इस घटना की जांच में ढुलमुल रवैया अपनाया। इतना ही नहीं, हमने जब खुफ़िया कैमरे पर इस घटना से जुड़े लोगों से बात की तो हमने पाया कि सीबीआई ने केस को कमजोर करने के लिए जानबूझकर उन लोगों के बयान ही नहीं लिये जो इस केस की अहम कड़ी थे। 

1- हमने आपनी जांच में पाया कि पूरे घटनाक्रम में शहीद सीओ के साथ रहे इंस्पेक्टर सर्वेश मिश्रा की भूमिका सबसे संदिग्ध है।

2- इंस्पेक्टर सर्वेश मिश्रा को हथिगवां थाने के एसओ मनोज शुक्ला ने घटना स्थल पर जाने से मना किया था उसके बावजूद इंस्पेक्टर सर्वेश मिश्रा, सीओ जियाउलहक को लेकर प्रधान के घर गए।

3- इंस्पेक्टर सर्वेश मिश्रा के साथ चार आरक्षक भी थे जिसे सर्वेश मिश्रा ने अपने साथ नहीं लिया।

4- इंस्पेक्टर के साथ रहे आरक्षक ने आगाह किया था कि प्रधान का भाई हिस्ट्रीसीटर है, इसलिए फोर्स आने के बाद ही प्रधान के घर चलें तो बेहतर होगा। लेकिन इंस्पेक्टर सर्वेश मिश्रा फ़ोर्स के बगैर ही सीओ जियाउल हक को लेकर गांव में चले गए।

5- गोली चलने के बाद जब सर्वेश मिश्रा, गांव के बाहर पुलिस टीम से मिला तो उसने कहा कि सीओ के साथ साथ सब सेफ हैं।

6- इंस्पेक्टर सर्वेश मिश्रा ने अपने सीनियर होने का फायदा उठाते हुए थानाध्यक्ष और फोर्स को कम से कम 2 घंटे तक गांव में नहीं जाने दिया।

7- सीओ के बॉर्डीगार्ड का कहना है कि जैसे ही वो लोग पहुंचे गांव वालों ने पुलिस पर हमला कर दिया। जबकि उससे पहले पुलिस के साथ गुस्से वाली कोई बात नहीं थी।

8- सीओ के गनर इमरान ने हमें बताया कि जब भीड़ मारने के लिए पुलिस टीम के ऊपर टूटी, तब इंस्पेक्टर सर्वेश मिश्रा वहां मौजूद था, लेकिन कुछ ही देर बाद देखा तो वो वहां पर नहीं थे।

9- इंस्पेक्टर सर्वेश मिश्रा के चालक सुरेश सिंह और आरक्षक महबूब आलम ने हमारे खुफिया कैमरे पर स्वीकार किया कि गुलशन यादव (जिस पर जियाउल हक के घर वालों ने आरोप लगाया था) भी घटना के समय मौके पर मौजूद था। लेकिन सीबीआई की जांच में उसकी मौजूदगी के बारे में कुछ नहीं कहा गया है।

10- सीबीआई को दिए गए बयान में गांव के अंदर मौजूद पुलिस टीम और गांव के बाहर मौजूद टीम के बयान में भी अंतर हैं।

11- गांव के अंदर मौजूद टीम के अनुसार 5-6 फायर हुए, जबकि गांव के बाहर मौजूद टीम के अनुसार 2-3 फायर हुए।

12- आरक्षक शक्ति दत्त दूबे ने खुफ़िया कैमरे पर हमें बताया कि वो घटना स्थल पर एडिशनल एसपी के बाद पहुंचे थे जबकि सीबीआई के बयान में वो मनोज शुक्ला के साथ ही थे।

13- हमारी इंवेस्टिगेशन में ये बात भी समने आई कि तब नवाबगंज के थानेदार रहे अरविंद सिंह ने खुद सीबीआई की टीम के लिए दारू और मुर्गे का इंतजाम किया था।

हमारी छानबीन में सीबीआई की जांच रिपोर्ट पर भी कई सवाल खड़े नजर आए। जैसे

1- इंस्पेक्टर सर्वेश मिश्रा की संदिग्ध भूमिका के बावजूद सीबीआई की टीम ने उनका बयान रिकॉर्ड नही किया।

2- इसके अलावा घटनाक्षेत्र के एसओ मनोज शुक्ला और घटना स्थल पर मौजूद एसआई विनय कुमार का भी सीबीआई ने बयान रिकॉर्ड नहीं किया।

3- गनर इमरान ने कहा था कि सीओ साहब उसके पीछे थे और जब उसने पीछे मुड़कर देखा तो गायब हो गए थे। जबकि सीओ की लाश उसी जगह के पास मिली जहां से इमरान गायब होने की बात कर रहा था। आखिर ऐसा कैसे हो सकता है?

4- पुलिस गांव में घुसी, लोगों ने फायर किया और इंस्पेक्टर सर्वेश मिश्रा भागकर गांव से बाहर हो गए, पूरी घटना 5 मिनट के अंदर ही हो गई। आखिर ये कैसे मुमकिन है?

सभार: कोबरा पोस्ट 

 

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