सरकारी सिस्टम की बंदिशों में फंस गई कामधेनु

milkतहलका एक्सप्रेस प्रतिनिधि

लखनऊ/हरदोई।  कामधेनु तो सभी की मनोकामना पूरी करती है। इसलिए परिषदीय विद्यालयों के बच्चों को दूध पिलाने की योजना में कामधेनु का सहारा लिया गया। तब लगा कि अब तो बच्चों को दूध मिल ही जाएगा, पर सरकारी सिस्टम की बंदिशों में कामधेनु फंस गई। न कोई इंतजाम किया गया और न ही संसाधन बढ़ाए गए। हालत यह हुई कि सरकार की ‘कामधेनु’ भी विद्यालयों के बच्चों को दूध नहीं पिला सकी।

उत्तर प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में बच्चों को मिड-डे मील के साथ हर बुधवार को 200 ग्राम दूध देने की योजना शुरू की गई है। कहने को 15 जुलाई से योजना को हरी झंडी तो दे दी गई, लेकिन न धनराशि बढ़ाई गई और न ही कोई इंतजाम किया गया। महज बच्चों को दूध पिलाने का शगुन भर हुआ। प्राथमिक विद्यालय में 3.59 रुपये और जूनियर स्कूलों में 5.64 रुपये में भोजन के साथ दूध पिलाना गुरुजी के लिए परेशानी का सबब बन गया। देखा जाए तो जिले के 2,830 प्राथमिक और 1,025 उच्च प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ने वाले पांच लाख 16 हजार 767 बच्चों के लिए हर बुधवार को प्रति बच्चा दो सौ ग्राम दूध की जरूरत है।

एक तो कम रुपये और दूसरी दूध की भारी मांग से व्यवस्था डगमगा गई और यही वजह है कि गांवों में दूध ही नहीं मिल रहा है। योजना को पटरी पर लाने की कोशिश करते हुए डीएम रमेश मिश्रा ने कामधेनु डेयरी का सहारा लिया। उन्होंने न केवल बीएसए को आदेशित किया, बल्कि नौ जुलाई को मध्याह्न्न भोजन प्राधिकरण की निदेशक श्रद्धा मिश्रा को भी इस संबंध में पत्र लिखा था। डीएम ने जिले में संचालित दो बड़ी और 16 मिनी कामधेनु की सूची भेजकर मोबाइल पर प्रधानाध्यापकों के डेयरी संचालकों से संपर्क कर दूध आपूर्ति का इंतजाम कराया, लेकिन यहां पर दूध की कीमत आड़े आ गई। डीएम ने 50 रुपये लीटर के हिसाब से गर्म, चीनी मिला दूध विद्यालयों तक पहुंचाने की व्यवस्था बनाई, लेकिन यह कीमत बच्चों के मिड-डे मील की परिवर्तन लागत से काफी अधिक है।

हालांकि प्राधिकरण की तरफ से एक जुलाई से मिड-डे मील की परिवर्तन लागत बढ़ाई गई, लेकिन वह ऊंट के मुंह में जीरा साबित हुई। प्राथमिक के बच्चों के लिए 3.59 रुपये से बढ़ाकर 3.76 रुपये और उच्च प्राथमिक के बच्चों के लिए 5.38 रुपये से बढ़ाकर 5.64 रुपये कर दी गई। अब कामधेनु का 50 रुपये लीटर के हिसाब से एक बच्चे को 200 ग्राम दूध 10 रुपये का हुआ, जबकि परिवर्तन लागत इससे काफी कम है। इससे न डेयरी संचालकों ने रुचि ली और न ही प्रधानाध्यापक हिम्मत जुटा सके। परिणाम यह हुआ कि पूरी व्यवस्था कागजों पर ही बनकर रह गई है।

प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष शिवशंकर पांडेय कहते हैं कि अगर बच्चों को दूध वितरण कराया जाना है तो इसके लिए अतिरिक्त इंतजाम किया जाए। दूध के लिए अतिरिक्त धन की व्यवस्था हो, नहीं तो कम से कम बुधवार को ही धनराशि बढ़ाई जाए। उच्च प्राथमिक शिक्षक संघ की जिलाध्यक्ष सुनीता त्यागी कहती हैं कि डीएम ने अच्छी पहल की थी, लेकिन दूध की कीमत अधिक है। अब प्रशासन कामधेनु डेयरी संचालकों को बच्चों के दूध के लिए अपने स्तर से मदद करे तभी योजना चल पाएगी।

 

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