सरकार को नहीं पता ‘हिंदू’ का मतलब!

hindu2तहलका एक्सप्रेस, नई दिल्ली/इंदौर। भारतीय संविधान और कानूनों की रोशनी में ‘हिंदू’ शब्द के आशय और परिभाषा के बारे में केंद्र सरकार सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी उपलब्ध नहीं करा सकी है।

मध्य प्रदेश के नीमच के रहने वाले सोशल वर्कर चंद्रशेखर गौर ने बताया कि उन्होंने आरटीआई के तहत अर्जी दायर कर पूछा था कि भारतीय संविधान और कानूनों के अनुसार ‘हिंदू’ शब्द का मतलब और परिभाषा क्या है।

 उन्होंने कहा, ‘मेरी आरटीआई अर्जी पर भारत सरकार के गृह मंत्रालय की ओर से 31 जुलाई को भेजे गए जवाब में कहा गया कि केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी (सीपीआईओ) के पास अपेक्षित सूचना उपलब्ध नहीं है।’

गौर ने अपने आरटीआई आवेदन में सरकार से यह भी जानना चाहा था कि देश में किन आधारों पर किसी समुदाय को हिंदू माना जाता है और हिंदुओं को बहुसंख्यकों की तरह देखा जाता है। लेकिन इन सवालों पर यही जवाब दोहरा दिया गया कि अपेक्षित सूचना सीपीआईओ के पास उपलब्ध नहीं है।

गौर ने कहा, ‘मेरी आरटीआई अर्जी पर सरकार का जवाब हैरान करने वाला है। अगर सरकार को यह पता ही नहीं है कि हिंदू शब्द का आशय और परिभाषा क्या है, तो हिंदू विवाह अधिनियम सरीखे कानून आखिर किस आधार पर बना दिए गए।’

गौर ने कहा, ‘सरकार को यह भी बताना चाहिए कि वह अलग-अलग शासकीय फॉर्म भरवाते वक्त नागरिकों से उनकी मजहबी पहचान क्यों पूछती है और जनसंख्या के आंकड़े धार्मिक आधार पर क्यों जारी किए जाते हैं।’

मशहूर विचारक केएन गोविंदाचार्य ने ‘हिंदू’ शब्द को लेकर दायर आरटीआई अर्जी पर सरकारी जवाब के बारे में पूछे जाने पर कहा, ‘हिंदुस्तान में सरकार की अवधारणा वर्ष 1935 के भारत शासन अधिनियम के जरिए सामने आई, जबकि हिंदुत्व का विषय हजारों साल पुराना है। हिंदुत्व सरीखे दर्शन को समझने के लिए सरकारों को और कवायद करनी चाहिए।’

बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय महासचिव ने अपने चिर-परिचित अंदाज में कहा, ‘भारतीय समाज केवल राजसत्ता से संचालित नहीं होता है। यह समाज राजसत्ता के साथ धर्मसत्ता, समाजसत्ता और अल्पसत्ता से भी चलता है। राजसत्ता को इस बात से वाकिफ होने की जरूरत है।’

 

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