सरकार ने जस्टिस जोसफ को SC का जज बनाने का कॉलेजियम का प्रस्ताव लौटाया

नई दिल्ली। उत्तराखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस केएम जोसफ को सुप्रीम कोर्ट में जज बनाने की सिफारिश को शुक्रवार को केंद्र सरकार ने पुनर्विचार के लिए कॉलेजियम के पास वापस भेज दिया. जोसफ ने उस बेंच की अध्यक्षता की थी, जिसने 2016 में उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने के नरेंद्र मोदी सरकार के फैसले को निरस्त कर दिया था.

सरकार ने यह कहकर जोसफ के नाम के प्रस्ताव को पुनर्विचार के लिए भेज दिया कि यह प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट के स्टैंडर्ड के मुताबिक नहीं है और सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में केरल के पर्याप्त जज हैं. जस्टिस जोसफ केरल से ही आते हैं. जस्टिस जोसफ इस साल जून में 60 साल के हो जाएंगे. वह जुलाई 2014 से उत्तराखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस हैं. उन्हें 14 अक्बटूर 2004 को केरल हाई कोर्ट में स्थायी जज बनाया गया था. हाई कोर्ट का जज 62 साल में, जबकि सुप्रीम कोर्ट का जज 65 साल में रिटायर होता है.

एनडीए सरकार ने तकरीबन साढ़े तीन महीने बाद जस्टिस जोसफ को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने को लेकर कॉलेजियम की सिफारिश लौटाने का फैसला किया. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम ने 10 जनवरी को जस्टिस जोसफ को शीर्ष अदालत में पदोन्नत करने की सिफारिश सरकार को भेजी थी. तब से कॉलेजियम के सदस्यों ने वरिष्ठ वकील इंदु मल्होत्रा और जस्टिस जोसफ को सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त करने की कॉलेजियम की सिफारिश को सरकार के दबाकर बैठ जाने पर बार-बार चिंता जाहिर की. इसको लेकर में नया पत्र जस्टिस गोगोई और जस्टिस लोकुर ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्ष के महाभियोग प्रस्ताव को राज्यसभा सभापति वेंकैया नायडू के खारिज करने से एक दिन पहले लिखा था.

सुप्रीम कोर्ट में जज के तौर पर पदोन्नत करने के लिए जस्टिस जोसफ के नाम की सिफारिश करते हुए कॉलेजियम ने कहा था, ‘वह अन्य चीफ जस्टिस और हाई कोर्ट के वरिष्ठ जजों की तुलना में सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किए जाने के लिए सभी मामले में कहीं अधिक हकदार और उपयुक्त हैं.’

 

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