सर्जिकल स्ट्राइक पर राजनीति: कांग्रेस ने भी उठाया था बांग्लादेश युद्ध का चुनावी लाभ

सुरेन्द्र किशोर

कांग्रेस के प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने आरोप लगाया है कि मोदी सरकार सर्जिकल स्ट्राइक के नाम पर वोट पाने के लिए ‘जय जवान, जय किसान’ नारे का दोहन कर रही है. पर, सुरजेवाला को शायद यह याद नहीं कि यही काम बांग्लादेश देश युद्ध के बाद कांग्रेस ने भी किया था.

ऐसा करके न तो तब कांग्रेस ने कोई गलत काम किया था और न ही आज बीजेपी कोई अनोखा काम कर रही है. युद्ध में जीत का लाभ हर जगह सत्ता दल को मिलता है और हार का नुकसान भी उठाना पड़ता है. चाहे कोई दल उसका प्रचार करे या नहीं. भारत में भी ऐसा हो चुका है.

1962 में चीन के हाथों पराजय का नुकसान 1963 के लोक सभा उप चुनावों में कांग्रेस को हुआ था. कांग्रेस उम्मीदवारों को हरा कर जे.बी.कृपलानी, डा. राम मनोहर लोहिया और मीनू मसानी लोक सभा में पहुंच गए. हां, जब 1965 में लाल बहादुर शास्त्री की सरकार ने पाकिस्तान से युद्ध जीत लिया तो 1967 के आम चुनाव में कांग्रेस की हालत सुधर गई. फिर भी लोकसभा में 1962 की अपेक्षा उसका बहुमत कम हो गया. साथ ही नौ राज्य से कांग्रेस की सत्ता उखड़ गई थी.

1972 में देश के कई राज्यों में एक साथ विधान सभाओं के चुनाव हुए थे. उस चुनाव से ठीक पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मतदाताओं के नाम अलग से एक चिट्ठी प्रसारित की थी. वह कई भाषाओं में अनुदित की गई. उस चिट्ठी में लिखा गया था कि ‘देशवासियों की एकता और उच्च आदर्शों के प्रति निष्ठा ने हमें युद्ध में जिताया. अब उसी लगन से हमें गरीबी हटानी है. इसके लिए हमें विभिन्न प्रदेशों में ऐसी स्थाई सरकारों की जरूरत है, जिनकी साझेदारी केंद्रीय सरकार के साथ हो सके.’

1972 के मार्च में एक साप्ताहिक पत्रिका ने इस संबंध में लिखा था कि ‘जहां तक कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र का संबंध है, उसने यह बात छिपाने की कोशिश बहुत नहीं की है कि भारत -पाक युद्ध में भारत की विजय श्रीमती इंदिरा गांधी के सफल नेतृत्व का प्रतीक है और श्रीमती गांधी के हाथ मजबूत करने के लिए विभिन्न प्रदेशों में अब कांग्रेस की ही सरकार होनी चाहिए.’

इधर 21 महीने पहले जब भारतीय सेना ने सर्जिकल स्ट्राइक की तो कांग्रेस ने उसका सबूत मांगा था. एक कांग्रेस नेता ने तो उस सर्जिकल स्ट्राइक को फर्जी तक बता दिया था. अब जब सबूत सामने आ गया तो कांग्रेस आरोप लगा रही है कि ऐसा चुनावी लाभ के लिए हो रहा है. अब जरा कांग्रेस अपना ही पिछला इतिहास देख ले.

Indira Gandhi

                                                   इंदिरा गांधी

इंदिरा गांधी ने उत्तर प्रदेश और बिहार में समय से पहले यानी 1972 में विधान सभा के चुनाव करवा दिए थे. ऐसा 1971 के भारत पाक युद्ध में विजय का चुनावी लाभ उठाने के लिए किया गया था. याद रहे कि इन राज्यों में 1969 में मध्यावधि चुनाव कराने पड़े थे. अगला चुनाव 1974 में होना था. पर युद्ध में विजय का चुनावी लाभ शायद दो साल बाद कांग्रेस को नहीं मिल पाता.

याद रहे कि 1974 में तो जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में ऐसा आंदोलन शुरू हो गया था कि 1977 में पहली बार केंद्र की सत्ता से कांग्रेस का सफाया ही हो गया. इंदिरा सरकार के खिलाफ जन असंतोष के कारण आंदोलन शुरू हुआ था. यानी तीन साल भी बांग्लादेश युद्ध का पुण्य कायम नहीं रह सका.

इंदिरा गांधी ने यह पहले ही भांप लिया था. इसीलिए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेंद्र कुमारी वाजपेयी के विरोध के बावजूद उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव करवा दिया गया. श्रीमती वाजपेयी ने तो सार्वजनिक रूप से यह कह दिया था कि ‘चुनाव आवश्यक प्रतीत नहीं होता.’

बिहार में 1969 के बाद कई मंत्रिमंडल बने और बिगड़े. वहां राजनीतिक अस्थिरता थी. हालांकि वहां भी कांग्रेस के भोला पासवान शास्त्री के नेतृत्व में मिलीजुली सरकार चल रही थी. फिर भी बिहार में समय से पहले चुनाव का फैसला एक हद तक सही था. पर उत्तर प्रदेश विधान सभा में तो कांग्रेस के तब 230 विधायक थे. कमलापति जी पूर्ण बहुमत वाली सरकार अप्रैल, 1971 से ही चला रहे थे.

युद्ध के कारण बांग्लादेश के उदय के बाद आंध्र प्रदेश से कांग्रेस के एक सांसद ने इंदिरा गांधी को ‘दुर्गा’ की उपाधि दे दी थी. कांग्रेस के किसी नेता ने इस उपाधि का कभी विरोध भी नहीं किया. हालांकि इस उपाधि के साथ अनेक लोगों की धार्मिक भावना के साथ खेला गया था. उसका भी कांग्रेस को चुनावी लाभ मिला था. कांग्रेस ने खुशी-खुशी उन दिनों वह लाभ भी बटोरा.

 

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