सर्जिकल स्ट्राइक: भारत का पलट वार

pakistan1नई दिल्ली। भारत ने आखिरकार 18 सितंबर को उड़ी में हुए उस आतंकी हमले का सैन्य जवाब दे ही दिया जिसमें पाकिस्तानी आतंकियों ने 18 सैनिकों को मार डाला था. जैश-ए-मुहम्मद के चार आतंकियों के इस हमले के ग्यारह दिन बाद 29 सितंबर को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में सेना ने तस्दीक की कि उसने सीमा के साथ सटे कई आतंकी लॉन्चपैड या घुसपैठ के अड्डों पर सर्जिकल स्ट्राइक की. सेना ने यह भी कहा कि यह कार्रवाई पक्की और भरोसेमंद जानकारी मिलने के बाद की गई कि आतंकवादी हमले करने के लिए भारत में घुसपैठ की योजना बना रहे हैं.
डायरेक्टर जनरल मिलिटरी ऑपरेशंस (डीजीएमओ) ले. जनरल रणबीर सिंह ने नई दिल्ली में मीडिया से कहा, ”इन जवाबी आतंक-विरोधी कार्रवाइयों में आतंकियों और उनका समर्थन करने वाले अच्छी-खासी तादाद में हताहत हुए. ” सेना ने कार्रवाई के बारे में विस्तार से नहीं बताया पर सूत्र बताते हैं कि इन हमलों का स्वरूप नियंत्रण रेखा के उस पार बहुत-से ठिकानों पर हमला था. पैराशूट-स्पेशल फोर्सेज की दो रेजीमेंट के कमांडो का इन हमलों में इस्तेमाल किया गया, हालांकि हमलों में शामिल कमांडो की संख्या नहीं बताई गई.

असम राइफल्स के पूर्व डीजी ले. जनरल रामेश्वर रॉय (सेवानिवृत्त) कहते हैं, ”सर्जिकल स्ट्राइक बुनियादी तौर पर पाकिस्तान को एक संदेश देने के लिए थी. यह देश के भीतर बढ़ रहे गुस्से को शांत करने के लिए भी थी. अगर पाकिस्तान को जवाब नहीं दिया जाता, तो इससे उसके हौसले और बुलंद हो जाते. ” 18 सितंबर को उड़ी हमले के बाद, डीजीएमओ ने कहा था कि भारतीय सेना ने जवाब देने के अपने अधिकार को सुरक्षित रखा है, और वह इसे अपने समय और जगह के मुताबिक अंजाम देगी.

हमले के ग्यारह दिन बाद 29 सितंबर को डीजीएमओ ने बहुत नपे-तुले शब्दों में अपनी बात कही. उन्होंने इसे उड़ी का या उससे पहले के आतंकी हमलों का बदला या प्रतिशोध नहीं कहा, बल्कि आतंकियों की घुसपैठ रोकने के लिए एहतियाती कदम बताया. उन्होंने कहा, इन सर्जिकल स्ट्राइक का मकसद उन आतंकियों को रोकना था जो नियंत्रण रेखा के साथ सटे इलाकों में बने अड्डों में मोर्चा संभाल रहे थे ताकि वहां से घुसपैठ को अंजाम दे सकें और जम्मू-कश्मीर के भीतर और विभिन्न मेट्रो शहरों में तथा दूसरे राज्यों में आतंकी हमले कर सकें. उन्होंने कहा, ”इन कार्रवाइयों का फोकस यह पक्का करने पर था कि ये आतंकी तबाही फैलाने और हमारे नागरिकों की जिंदगियों को खतरे में डालने के अपने मंसूबों में कामयाब न हो सकें. ”

भारतीय सेना ने बाद में अपनी कार्रवाई को रोककर तनाव को कम कर दिया, लेकिन सीमावर्ती इलाकों में वह लगातार कड़ी चौकसी रख रही है. ऐसी कार्रवाइयां पहले भी की गई हैं पर सेना ने कभी उन्हें स्वीकार नहीं किया था. इस रोशनी में सरकार के 29 सितंबर के बयान को बेहद अहम माना जा रहा है और इससे दहशतगर्दी के खिलाफ अपनी ओर से आगे रहकर कार्रवाई करने के सरकार के रुख की झलक मिलती है.

ले. जनरल सिंह ने कहा, ”दहशतगर्दों को बेअसर करने के मकसद से की गई कार्रवाई अब खत्म हो चुकी है. इसे आगे जारी रखने का हमारा कोई इरादा नहीं है. हालांकि भारतीय सशस्त्र बल किसी भी नई उभरने वाली आकस्मिक परिस्थिति के लिए पूरी तरह तैयार हैं. ”
सर्जिकल स्ट्राइक से पहले भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कई सारे विकल्प खूब नाप-तौल कर आजमाए थे. इनमें राजनैतिक, आर्थिक और कूटनीतिक विकल्प शामिल थे. 26 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा में पाकिस्तान के ऊपर तीखा हमला बोलते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पड़ोसी मुल्क पर वैश्विक आतंकवाद की आइवी लीग की मेजबानी करने का इल्जाम लगाया था. 26 सितंबर को मोदी सरकार ने ऐलान किया कि वह 1960 की सिंधु जल संधि के प्रावधानों की समीक्षा कर रही है. उसने सरकार की नीति के औजार के तौर पर आतंकवाद का इस्तेमाल करने के लिए इस्लामाबाद के ऊपर वैश्विक दबाव डालने का भी आह्वान किया. इसका असर उस समय दिखा जब बांग्लादेश, भूटान और अफगानिस्तान ने भारत के नक्शेकदम पर चलते हुए नवंबर में इस्लामाबाद में होने वाले सार्क सम्मेलन से अपने हाथ खींच लिए.

एक अहम बात यह भी है कि 29 सितंबर को सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम देने के कुछ ही घंटों पहले अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सूज़न ई राइस ने अपने भारतीय समकक्ष अजित डोभाल को फोन किया और उड़ी के आतंकी हमले की कड़े लफ्जों में निंदा की और हताहत सैनिकों और उनके परिवारों के प्रति संवेदना जताई. उन्होंने जोर दिया कि अमेरिका उम्मीद करता है कि पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र के आतंकी घोषित किए गए लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मुहम्मद और उनसे जुड़े अन्य संगठनों को गैरकानूनी बनाने और उनका मुकाबला करने के लिए प्रभावी कदम उठाएगा.

ले. जनरल सिंह ने कहा कि वे पाकिस्तानी सेना के डीजीएमओ के संपर्क में थे और उन्हें इस कार्रवाई के बारे में जानकारी दे दी थी. उन्होंने जनवरी 2004 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ की उस प्रतिबद्धता की याद दिलाई, जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत के खिलाफ हमलों के लिए पाकिस्तान की जमीन का इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं दी जाएगी. यह वादा ऑपरेशन पराक्रम के बाद किया गया था. ऑपरेशन पराक्रम 13 दिसंबर को जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों के भारतीय संसद पर हमले के बाद शुरू किया गया था, जिसके तहत पाकिस्तान पर दबाव डालने के लिए सीमा पर 11 महीने तक सेना तैनात कर दी गई थी. उन्होंने कहा, ”हम पाकिस्तानी सेना से उम्मीद करते हैं कि वह इस क्षेत्र से आतंकवाद का खतरा पूरी तरह मिटाने में हमारा सहयोग करे. ”

पाकिस्तान ने भारत के इस कथन का मजबूती से खंडन किया है. उसका कहना है कि भारतीय गोलीबारी में उसके दो सैनिक मारे गए हैं और नौ घायल हुए हैं. सेना ने अपने बयान में कहा, ”आतंकवादियों के कथित ठिकानों पर सर्जिकल हमले की बात महज एक छलावा है, जिसे भारत की ओर से जानबूझकर गढ़ा जा रहा है ताकि झूठा प्रचार किया जा सके. ” उसका कहना है कि पाकिस्तानी सेना ने भी भारत की ओर से अकारण शुरू की गई गोलीबारी का जवाब दिया.

सरकार इस बात से इनकार नहीं कर रही है कि पाकिस्तान जवाबी हमले की तैयारी कर सकता है. सरकार ने जिस दिन इस बात की घोषणा की कि उसने पीओके में सर्जिकल हमला किया है, उसी दिन गृह मंत्रालय ने पंजाब सरकार को शाम तक भारत-पाकिस्तान सीमा से 10 किमी के भीतर स्थित गांवों को खाली कराने का निर्देश दे दिया. पाकिस्तान के साथ पंजाब की 553 किमी लंबी सीमा लगती है.
इस बीच सेना के तीनों अंग और अर्धसैनिक  बल हाइ अलर्ट पर आ चुके हैं. ले. जनरल रॉय कहते हैं, ”हमें पूरी तरह सतर्क रहने की जरूरत है. हम किसी तरह की ढिलाई नहीं बरतनी चाहिए.

” वे बताते हैं कि पाकिस्तानी सेना आतंकवादियों का इस्तेमाल एक सामरिक हथियार के तौर पर करती है. वह हम पर हमला करने के लिए एक बार फिर उनका इस्तेमाल कर सकती है. वे कहते हैं, ”इसके अलावा यह डर भी बना हुआ है कि पाकिस्तानी सेना ऑपरेशन जिब्राल्टर जैसा एक और हमला कर सकती है, जैसा उन्होंने 1965 में किया था.

हमें चौकन्ना रहने की जरूरत है. ” ऑपरेशन जिब्राल्टर की योजना पाकिस्तान ने 1965 में शुरू की थी, जिसका मकसद जम्मू-कश्मीर में बगावत भड़काना था और जिसके बाद पाकिस्तानी सेना सीमा पार करके घाटी में प्रवेश कर जाती, जहां उसकी उम्मीद के मुताबिक घाटी के लोग उसका स्वागत करते. लेकिन उनकी यह योजना विफल हो गई क्योंकि पाकिस्तान को वहां लोगों का समर्थन हासिल नहीं था.

अगर देखें तो साफ तौर पर ये वे चेतावनियां हैं जिन्हें पाकिस्तान के साथ मौजूदा टकराव के समय भारत को पूरी तरह ध्यान में रखने की जरूरत है.

 

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