सुप्रीम कोर्ट ने रेप विक्टिम को नहीं दी प्रेगनेंसी टर्मिनेट करने की इजाजत

नई दिल्ली। रेप के बाद प्रेगनेंट हुई एक HIV पीड़ित महिला को सुप्रीम कोर्ट से अबॉर्शन की इजाजत नहीं मिली। सुप्रीम कोर्ट ने एम्स की मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट देखने के बाद कहा कि 26 हफ्ते की प्रेगनेंसी टर्मिनेट नहीं हो सकती। एम्स की मेडिकल रिपोर्ट में कहा गया है कि इस स्टेज पर महिला की प्रेगनेंसी टर्मिनेट करने से उसके जीवन को खतरा हो सकता है। महिला रेप पीड़ित है साथ ही एचआईवी पॉजिटिव भी है। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को निर्देश दिया है कि वह महिला को रेप विक्टिम स्कीम से 3 लाख रुपये का भुगतान करे। महिला के मामले में राज्य सरकार के अथॉरिटी और एजेंसियो द्वारा जो देरी हुई है उसके लिए क्या मुआवजा तय हो, इस पर सुप्रीम कोर्ट अब 9 अगस्त को सुनवाई करेगी।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर एम्स की डॉक्टरों की टीम ने महिला का चेकअप किया और उसके बाद अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी थी। मंगलवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने रिपोर्ट को देखने के बाद कहा कि 26 हफ्ते की प्रेगनेंसी टर्मिनेट नहीं होगी। कोर्ट ने मेडिकल रिपोर्ट देखने के बाद उक्त फैसला दिया। साथ ही राज्य सरकार से कहा है कि वह रेप विक्टिम फंड से 4 हफ्ते के भीतर पीड़िता को 3 लाख रुपये का भुगतान करे।

पीड़िता की वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा था कि इस मामले में राज्य के सरकारी अस्पताल की लापरवाही हुई है। स्टेट एजेंसी प्रेगनेंसी टर्मिनेशन से संबंधित कानून को सही तरह से नहीं समझ पा रही है और यही कारण है कि महिला के इलाज में देरी हुई और पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में प्रेगनेंसी टर्मिनेट नहीं हो सकी। ऐसे में एक गाइडलाइंस की भी जरूरत है ताकि ऐक्ट का सही तरह से अनुपालन हो और राज्य सरकार की एजेंसी की ओर से जो देरी की गई है उसके लिए महिला को मुआवजा मिलना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार की ओर से होने वाली देरी के मामले में क्या मुआवजा राशि होनी चाहिए इस पर कोर्ट बाद में सुनवाई के दौरान विचार करेगी। इस दौरान अब एम्स की ओर से बुधवार को महिला के इलाज का ब्योरा पेश किया जाएगा कि महिला का किस तरह से इलाज कराया जाए ताकि बच्चे को एचआईवी के इन्फेक्शन से बचाया जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि बिहार सरकार महिला के इलाज का खर्च वहन करेगी और इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में महिला का इलाज होगा। बिहार सरकार देरी के मामले में कितना मुआवजा दे इस बारे में पहले पीड़िता की ओर से हलफनामा दायर किया जाएगा और फिर बिहार सरकार इस पर जवाब दाखिल करेगी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट 9 अगस्त को आगे की सुनवाई करेगी। साथ ही महिला को वापस पटना ले जाने की सरकार व्यवस्था करेगी।

महिला को फ्लाइट से पटना से दिल्ली लाया गया था और एम्स में शनिवार को मेडिकल बोर्ड उसकी की जांच की थी। सुप्रीम कोर्ट ने महिला का मेडिकल एग्जामिनेशन करने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि महिला निसहाय है और उसकी जान बचाने की पूरी कोशिश की जाएगी। सड़क पर जीवन-यापन करने वाली महिला के साथ रेप हुआ था और फिर इस कारण वह गर्भवती हुई। महिला की प्रेगनेंसी 26 हफ्ते की हो चुकी है। महिला की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर प्रेगनेंसी टर्मिनेट करने का निर्देश देने की गुहार लगाई गई थी।

महिला की ओर से पेश वरिष्ठ वकील वृंदा ग्रोवर ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि महिला रेप पीड़ित है। जब उसे पता चला कि वह गर्भवती है तो गर्भ 17 हफ्ते का था। लेकिन पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में उसकी प्रेगनेंसी टर्मिनेट इसलिए नहीं की गई कि महिला आई कार्ड नहीं दे पाई। हाई कोर्ट से भी राहत नहीं मिली तो सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है।

वृंदा ग्रोवर ने बताया कि दरअसल ये मामला जनवरी का है। महिला एचआईवी पॉजिटिव है और उसका पति उसे 12 साल पहले ही छोड़ चुका है। महिला सड़क पर जिंदगी गुजारती है इसी दौरान उसके साथ रेप किया गया और महिला गर्भवती हुई। उसे शेल्टर होम ले जाया गया। वहां उसने मार्च में बताया कि वह गर्भवती हो चुकी है और गर्भ रेप के कारण ठहरा है। इसके बाद शेल्टर होम ने वहां रिसर्च करने वाले स्टूडेंट की मदद से महिला को पीएमसीएच ले गई। तब महिला का गर्भ 17 हफ्ते का था। वहां महिला के पिता को बुलाया गया और आई कार्ड मांगा गया। महिला के पास आई कार्ड नहीं था और इस कारण अस्पताल ने प्रेगनेंसी टर्मिनेट करने से मना कर दिया।

पीएमसीएच में प्रेगनेंसी टर्मिनेट न होने के बाद मामला पटना हाई कोर्ट पहुंचा। पटना हाई कोर्ट में जब केस गया तब तक गर्भ 21 हफ्ते का हो चुका था। हाई कोर्ट ने मेडिकल बोर्ड का गठन किया। मेडिकल बोर्ड ने रिपोर्ट दी कि मामले में बड़ी सर्जरी की जरूरत है और इसमें ब्लीडिंग भी हो सकती है। पटना हाई कोर्ट ने मेडिकल रिपोर्ट को देखने के बाद प्रेगनेंसी टर्मनेशन की इजाजत नहीं दी। वृंदा ग्रोवर ने बताया कि प्रेगनेंसी टर्मनेशन ऐक्ट के तहत 20 हफ्ते तक रेप आदि के कारण होने वाली प्रेगनेंसी को टर्मिनेट करने की इजाजत है, इसके बाद के मामले में कोर्ट की इजाजत से टर्मिनेशन हो सकता है।

क्या है कानून
कानूनी जानकार बताते हैं कि अबॉर्शन तभी कराया जा सकता है जब गर्भ के कारण महिला की जिंदगी खतरे में हो। 1971 में एक अलग कानून बनाया गया और इसका नाम रखा गया मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी ऐक्ट, जिसके तहत तमाम प्रावधान किए गए हैं। कानून के तहत 20 हफ्ते तक की प्रिगनेंसी को महिला के वेलफेयर को देखते हुए डॉक्टर की सलाह से टर्मिनेट किया जा सकता है। अगर महिला की जान खतरे में हो तो उसके बाद भी कोर्ट की इजाजत से प्रेगनेंसी टर्मिनेट किया जा सकता है।

 

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