सुभाष चंद्र बोस की फाइलों से खुलासा, विमान हादसे में नहीं हुई थी मौत

boseतहलका एक्सप्रेस
नई दिल्ली। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत से जुड़ीं 64 फाइलों को पश्चिम बंगाल सरकार ने सार्वजनिक कर दी है। 130 फाइल केंद्र सरकार के पास हैं, पीएमओ सार्वजनिक करने से मना कर चुका है। पश्चिम बंगाल सरकार ने जो 64 फाइलें सार्वजनिक की हैं, उनमें से एक फाइल नंबर -167Y/22, सीरियल नंबर-3 और तारीख 29 अप्रैल, 1949 बताता है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मौत 1945 के विमान हादसे में नहीं हुई थी।
नेताजी की 1945 में मौत के दो साल बाद भेजी गई खुफिया रिपोर्ट विमान हादसे में उनकी मौत न होने पर सरकारी मुहर है। नेताजी की मौत की जांच करने वाले मुखर्जी आयोग ने भी विमान हादसे की कहानी को सही नहीं माना था। अगर अमेरिकी और ब्रिटिश एजेंसियां मानतीं थीं कि सुभाषचंद्र बोस 1945 के बाद भी जीवित थे, तो क्या उन्हें यह भी पता था कि वो कहां हैं? गुप्त रिपोर्ट में लिखा गया है कि ‘एंग्लो अमेरिकी सूत्र ये लगभग तय कर चुके हैं कि भारतीय नेता रूस में हैं। कथित विमान हादसे में मौत के चार साल बाद भी खुफिया एजेंसी मानतीं थी कि पूर्वी एशिया और पूर्व में हो रहे हर कम्युनिस्ट विद्रोह के पीछे सुभाष चंद्र हैं।
नेताजी के करीबी ने कहा सही समय पर लौट आएंगे नेताजी…
सीक्रेट फाइल में भारतीय खुफिया एजेंसी ने लिखा है कि बोस जीवित हैं और उनके लाल चीन या सोवियत रूस में होने का शक है। एजेंसी ने यह निष्कर्ष हादसे समय नेताजी के साथ रहनेवाले आजाद हिंद फौज के जनरल हबीब उर रहमान के बयानों के आधार पर निकाला था। रिपोर्ट के मुताबिक, हबीब उर रहमान के बयान बाद में विरोधाभासी रहे। एक बार जनरल रहमान ने कहा था कि उन्हें विश्वास है कि नेताजी जिंदा हैं और वो सही वक्त पर लौट आएंगे। खुफिया एजेंसियों को जब इतनी बातें मालूम थी तो क्या भारत सरकार को भी यह पता था कि नेताजी जिंदा हैं। अगर इसका जवाब हां में है तो सरकार ने आज तक जापान में मंदिर में रखे नेताजी के कथित अस्थि कलश को लाने की कोशिश क्यों नहीं की। आइबी की ज्यादा दिलचस्पी नेताजी के भतीजों शिशिर कुमार बोस और अमिय नाथ बोस के बारे में क्यों थी, जो एक वक्त नेताजी के बेहद करीब थे। ब्रिटिश सरकार के समय से शुरू हुई नेताजी की जासूसी को दो दशक तक नेहरू सरकार ने क्यों जारी रखा?
नेताजी के रिश्तेदारों ने लगाए थे आरोप
मई 2015 में नेताजी की प्रपौत्री राज्यश्री चौधरी ने कहा था कि तत्कालीन सरकार ने रूसी तानाशाह स्टालिन के जरिए साइबेरिया में नेताजी को मरवाया था। उन्होंने कहा कि यह बात तथ्यों पर आधारित है। उन्होंने कहा था कि संसद में मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट बिना संपादित करे रख दी जाए तो सच सामने आ जाएगा। इंग्लैंड के तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लिमेंट एटली और जवाहर लाल नेहरू के बीच हुए एक पत्र से भी राज्यश्री के दावा सच साबित होता है।
आखिर क्या लिखा था पत्र में…
भारत की आजादी के वक्त इंग्लैंड के प्रधानमंत्री क्लिमेंट एटली (जुलाई, 1945- अक्टूबर, 1951) को नेहरूजी ने एक पत्र लिखा था। यह पत्र दिल्ली से 26 दिसंबर, 1945 को लिखा गया। इसमें लिखा गया है, ‘हम मानते हैं कि आपके युद्ध अपराधी सुभाष चंद्र बोस को स्टालिन ने रूस की सीमा में प्रवेश की इजाजत दी है। यह सीधे तौर पर रूस का धोखा है, क्योंकि वह अमेरिका-ब्रिटेन का साथी है। कृपया इस पर संज्ञान लें’ ऐसा समझा जा सकता है कि पत्र को बेहद ही जल्दबाजी में लिखा गया होगा। नेहरूजी के टाइपिस्ट मेरठ के श्याम लाल जैन ने जीडी खोसला कमीशन के सामने माना था कि यह पत्र उन्होंने ही टाइप किया था। आखिर यह जानकारी नेहरूजी को किसने दी? क्यों सिर्फ नेहरूजी तक ही जानकारी पहुंची? क्या उन्होंने कांग्रेस के अन्य नेताओं गांधी और पटेल को यह बताया था।
महात्मा गांधी को नहीं था सुभाष की मौत की खबर पर भरोसा
नेताजी से जुड़ी फाइलों में कुछ ऐसी जानकारी भी है जो दिल्ली के राष्ट्रीय अभिलेखागार की गुप्त सूची से पहले ही हटा दी गई है। 1997 की रिपोर्ट से ऐसी ही एक फाइल सामने आई है। इसके अनुसार 18 अगस्त, 1945 को ताइहोकू के विमान हादसे में बोस की कथित मृत्यु के बाद महात्मा गांधी ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि उन्हें लगता है कि नेताजी जिंदा हैं। बंगाल में एक प्रार्थना सभा में दिए इस वक्तव्य के चार महीने बाद एक लेख छपा था, जिसमें गांधीजी ने माना था कि निराधार बातों पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
गांधीजी ने कहा ये मेरे मन की आवाज
1946 की एक खुफिया फाइल के अनुसार गांधीजी ने अपनी इस भावना को अंतर्मन की आवाज कहा था। इधर कांग्रेसियों को लगता था कि उनके पास हो न हो कुछ गुप्त सूचना है। फाइल में यह भी लिखा है कि एक गुप्त रिपोर्ट कहती है कि नेहरू को बोस की एक चिट्ठी मिली है, जिसमें उन्होंने बताया है कि वह रूस में हैं और भारत लौटना चाहते हैं। हो सकता है कि जब गांधी ने सार्वजनिक तौर पर बोस के जिंदा होने की बात कही थी, उसी दौरान यह चिट्ठी भेजी गई हो। नेताजी के परिवार के सदस्यों का कहना था कि महात्मा गांधी को जरूर कुछ पता था।
गांधीजी ने बोस का श्राद्ध करने से रोका था
महात्मा गांधी ने कहा था कि बोस परिवार को उनका श्राद्ध नहीं करना चाहिए। उनकी मौत पर प्रश्नचिह्न लगा हुआ है। नेताजी के भतीजे डॉ. शिशिर बोस की पत्नी और नेताजी रिसर्च ब्यूरो की प्रमुख कृष्णा बोस ने बताया कि गांधीजी ने पूरा मामला अप्रैल, 1946 के हरिजन जर्नल में समझाया था। इस अंक में गांधी ने लिखा था, ‘कुछ साल पहले अखबारों में नेताजी के मरने की खबर छापी गई थी। मैंने इस रिपोर्ट पर भरोसा कर लिया था। लेकिन, बाद में खबर गलत साबित हुई। इसके बाद मुझे ऐसा लगता रहा है कि जब तक नेताजी का स्वराज का सपना पूरा नहीं हो जाता, वह हमें छोड़कर नहीं जा सकते। इस भावना के पीछे की वजह नेताजी की अपने दुश्मनों को चकमा देने की काबलियत भी है। बस यही सब बातें हैं, जिससे मुझे लगता रहा कि वह अभी भी जिंदा हैं।’
सामने नहीं आया कोई बड़ा सच
नेताजी से जुड़ी जो फाइलें सार्वजिनक की गईं हैं उनमें कोई बड़ा सत्य सामने नहीं आया है। फाइलें शुक्रवार को नेताजी के परिवार को सौंप दी गई। ये फाइलें 1937 से 1947 के बीच की हैं। ये फाइलें अब तक पश्चिम बंगाल पुलिस के पास थीं और अब इन्हें कोलकाता पुलिस म्यूजियम में जनता को देखने के लिए रखा गया है। इन फाइलों में 300 पेज तक की इन फाइलों में सीक्रेट लेटर्स से लेकर हाथों से लिखें ऐसे कई कागजात भी हैं, जो उनके भाई शरत चंद्र बोस और सुभाष चंद्र बोस ने एक-दूसरे को लिखे थे। इनमें से कुछ डॉक्यूमेंट्स ऐसे हैं, जो नेताजी की मौत पर गंभीर सवाल खड़े कर सकते है। इन फाइलों में ऐसे सबूत हैं, जिनसे यह पता चलता है कि नेताजी कम से कम 1964 तक तो जीवित थे। फाइलों में 1960 के दशक में तैयार की गई एक अमेरिकी रिपोर्ट में भी है। इसमें बताया गया है कि नेताजी फरवरी 1964 में भारत लौटे थे।
30 साल बाद गोपनीय फाइलों को किया जायेगा सार्वजनिक
ब्रिटेन में 30 साल बाद गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक करने का नियम है। भारत में ऐसा कोई नियम नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी इसी तर्ज पर पुरानी गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक करने का विचार है। इस मुद्दे पर विचार के लिए छह सदस्यीय समिति बनाई गई है। ममता बनर्जी ने नेताजी से जुड़ी गोपनीय 64 फाइलों को सार्वजनिक कर दिया है, केंद्र पर इस मामले में जल्द कोई नियम बनाने का दबाव बढ़ गया है।
क्या है विमान हादसे का सच
कहा जाता है कि सुभाष चंद्र बोस का निधन 18 अगस्त, 1945 को एक विमान हादसे में हुलाइहोकू एयरपोर्ट (अब ताइपेई) में हुआ था। नेताजी का परिवार, उनके करीबी और शोधकर्ता इस बात को नहीं मानते हैं। नेताजी की पत्नी एमिली और उनके करीबी लेफ्टिनेंट कर्नल हबीब उर रहमान भी इससे इनकार करते रहे। बोस के निजी गनर जगराम ने दावा किया कि नेता जी की विमान दुर्घटना में मौत नहीं हुई थी। उनकी हत्या कराई गई होगी। उनका कहना था कि अगर विमान हादसे में उनकी मौत होती, तो कर्नल हबीब उर रहमान जिंदा कैसे बचते? वह दि न-रात साए तरह नेताजी के साथ रहते थे। साथ ही ताईवान सरकार ने भी उस दिन किसी विमान हादसे की घटना से इनकार किया है। मुखर्जी आयोग रिपोर्ट में इस बात उल्लेख है।
ममता ने खेला दांव
नेताजी की जिंदगी से जुड़ी फाइलें सार्वजनिक करते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि हम सच को क्यों न उजागर करें। सच की जीत होनी चाहिए और सच की जीत होगी। हम सच को नहीं दबा सकते। आज सच उजागर होने की शुरुआत हुई है। अब केंद्र सरकार को भी सच को उजागर करना चाहिए। भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने धमकी दी है कि यदि केंद्र सरकार ने इस वर्ष के अंत तक नेताजी से जुड़ी गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक नहीं किया, तो वह कोर्ट जाएंगे। उन्होंने कहा है कि केंद्र के पास यह अधिकार नहीं है कि वह नेताजी से जुड़ी फाइलों को गोपनीय रखे।
 

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