सेना प्रमुख की नियुक्ति पर विवाद: सरकार ने बताया क्यों दी गई ले.ज. बिपिन रावत को तरजीह

bipinनई दिल्ली। नए आर्मी चीफ की नियुक्ति में कांग्रेस और लेफ्ट की ओर से सवाल उठाए जाने पर सरकार ने जरूरी प्रक्रियाओं का पालन होने का दावा किया है। केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा है कि इस फैसले के लिए 10 जनपथ (कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का निवास) से इजाजत लेने की जरूरत नहीं है। अब पारदर्शिता से काम हो रहे हैं। आर्मी चीफ के पद पर ले.ज. बिपिन रावत की नियुक्ति दो अफसरों की वरिष्ठता को दरकिनार कर की गई है। पूर्वी कमान के प्रमुख ले.ज. प्रवीण बख्शी और दक्षिणी कमान के प्रमुख ले.ज. पी. एम. हैरिज इस वक्त ले. ज. रावत से सीनियर हैं। इस पर कांग्रेस और लेफ्ट ने सवाल उठाए हैं।

कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा कि ऐसा क्यों किया गया, क्या बाकी लोग काबिल नहीं थे। वहीं, सीपीआई नेता डी. राजा ने कहा है कि आर्मी में नियुक्तियां विवादास्पद हो गई हैं, जो दुर्भाग्यपूर्ण हैं। सरकारी सूत्रों ने कहा है कि मौजूदा फैसला सुरक्षा हालात और उसकी जरूरतों के मुताबिक किया गया है। आर्मी चीफ की नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया में चार से पांच महीने का समय लगता है। रक्षा मंत्रालय सभी योग्य लेफ्टिनेंट जनरलों के आंकड़े और प्रोफाइल देखता है। ऑपरेशनल अनुभव, उपलब्धियों समेत सभी ब्यौरों को रक्षा मुख्यालय ही मंत्रालय को मुहैया कराता है।

 मंत्रालय इसे देखता है और फिर रक्षा मंत्री के जरिये इन्हें विचार और चयन के लिए कैबिनेट की नियुक्ति समिति के पास भेजा जाता है। राष्ट्रीय सुरक्षा के रणनीतिक प्रबंधन की इस जिम्मेदारी के लिए कमिटी ही फैसला लेती है, जो रक्षा मंत्रालय और सेना मुख्यालय के इनपुट और अन्य जरूरी सूचनाओं के आधार पर होता है। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने भी रविवार को इस बात पर जोर दिया कि आर्मी की उभरती चुनौतियों का सामना करने में ले.ज. बिपिन रावत आर्मी चीफ के पद के लिए सबसे उचित व्यक्ति हैं।

सूत्रों ने कहा कि उन्होंने कई क्षेत्रों ने ऑपरेशनल जिम्मेदारियों को संभाला है। इनमें पाकिस्तान से लगे एलओसी, चीन से लगे एलएसी और नॉर्थ ईस्ट के इलाके शामिल हैं। एक अफसर का कहना है कि ले.ज.बख्शी और ले.ज. हैरिज का करियर रिकॉर्ड अच्छा है, लेकिन ले.ज. रावत को एलओसी, कश्मीर, उत्तर-पूर्व में ऑपरेशनल जिम्मेदारियों का ज्यादा अनुभव है। ले.ज. रावत को 1 सितंबर को ही वाइस चीफ बना दिया गया था। इससे भी संकेत साफ हो जाने चाहिए थे। बीजेपी नेता श्रीकांत शर्मा का कहना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे गंभीर विषय पर सेना को राजनीति में घसीटना कांग्रेस की मानसिक विकलांगता का परिचायक है।

‘आर्मी में सिर्फ सीनियर होना काफी नहीं’
आर्मी चीफ के पद पर ले.ज. विपिन रावत की नियुक्ति के ऐलान के बाद सियासत और सोशल मीडिया में वरिष्ठता के मुद्दे पर बहस हो रही है। खास बात यह है कि रिटायर्ड सैनिक सरकार के बचाव में आ गए हैं। रिटायर्ड सैनिकों का मानना है कि नियुक्ति में सिर्फ वरिष्ठता का पहलू नहीं देखा जा सकता है। मेजर जनरल (रिटायर्ड) गगनदीप बख्शी का मानना है कि विपिन रावत को जम्मू-कश्मीर का कॉम्बैट एक्सपीरियंस है, इसलिए उन्हें तरजीह दी गई। पाकिस्तान में भी सेना प्रमुख उसे बनाया गया, जो कश्मीर मामले में अनुभवी था। हालांकि सरकार चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का पद बनाकर विवाद से बच सकती थी। यह लग रहा था कि प्रवीण बख्शी को इस पद पर लाने का विचार हो रहा है। तीनों सेनाओं में समन्वय और ऑपरेशनल नजरिये से यह पद जरूरी है।

जाने-माने रक्षा जानकार ब्रह्मा चेलानी ने भी कहा है कि मिलिट्री, जुडिशरी और ब्यूरोक्रेसी के प्रमोशन में मेरिट ही देखा जाना चाहिए। गौरव आर्य ने कहा है कि वरिष्ठता कोई पॉलिसी नहीं है और बॉस होने के नाते पीएम को अधिकार है। के. खुराना का कहना है कि क्या कांग्रेस ने कभी जवाब दिया कि उसकी सरकार ने अस्सी के दशक में ले.ज. एसके सिन्हा के मामले में वरिष्ठता को क्यों नजरअंदाज किया।

 

देश-विदेश की ताजा ख़बरों के लिए बस करें एक क्लिक और रहें अपडेट 

हमारे यू-टयूब चैनल को सब्सक्राइब करें :

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें :

कृपया हमें ट्विटर पर फॉलो करें:

हमारा ऐप डाउनलोड करें :

हमें ईमेल करें : [email protected]

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button