सेना बनाम सरकार पर पाक मीडिया बंटी, नवाज सरकार के दिन पूरे?

nawaz-raheel-sharifइस्लामाबाद। पाकिस्तानी सेना के वरिष्ठ अधिकारियों ने नवाज शरीफ सरकार के लिए चेतावनी की घंटी बजा दी है। 14 अक्टूबर को हुए कॉर्प्स कमांडर बैठक में नवाज और उनकी टीम के प्रति सेना का बैर साफतौर पर दिख रहा था। इस बैठक के बाद जारी किए गए संक्षिप्त बयान में साफ संकेत था कि ‘द डॉन’ अखबार को लीक हुई जानकारी के लिए सेना प्रधानमंत्री कार्यालय को जिम्मेदारा मानती है। उन्होंने कहा कि डॉन में छपी खबर राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनजर खतरनाक है। इसके साथ ही, पत्रकार सिरिल अलमिदा द्वारा दी गई इस खबर को ‘गलत और मनगढ़ंत’ भी बताया गया।

हालांकि बयान में यह साफ नहीं किया गया था कि एक गलत और मनगढ़ंत खबर राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए किस तरह खतरनाक साबित हो सकती है। 3 अक्टूबर को हुई अहम बैठक से जुड़ी जानकारी अलमिदा को कैसे मिली, इसका पता लगाने के लिए सेना ने शरीफ सरकार को 5 दिनों का समय दिया है। अलमिदा की खबर में बैठक की मिनटों का ब्योरा भी था। बाद में डॉन के संपादक ने इसका समर्थन करते हुए कहा कि तथ्यों की कई बार जांच और पुष्टि की गई। सेना द्वारा दी गई 5 दिनों की डेडलाइन में नवाज शरीफ के दफ्तर ने पहले तो अलमिदा के देश छोड़कर जाने पर प्रतिबंध लगाया और फिर यह प्रतिबंध वापस ले लिया। फिर PMO ने आंतरिक मामलों के मंत्री चौधरी निसार को अपना पक्ष बताने के लिए कहा।

दूसरी तरफ, अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में लगभग सभी लोग अलमिदा और प्रेस की आजादी का समर्थन कर रहे हैं। अलमिदा के खबर पर गौर करें, तो जिसने भी इसकी जानकारी दी वह चाहता था कि नवाज शरीफ और उनके भाई व पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री शाहबाज शरीफ की एक बहादुर छवि कायम हो, जो कि आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई कर उन्हें जेल की सलाखों के पीछे डालना चाहते हैं। लेकिन सेना उनकी कोशिशों में रुकावट पैदा कर रही है। एक टीवी शो के दौरान बोलते हुए एक पत्रकार ने कहा, ‘इनकी काबिलियत छोटू गैंग को पकड़ने की नहीं, ये कहां से जैश को पकड़ेंगे? जिस गुलु बट्ट के पास एक बंदूक थी, उसको तो ये पकड़ नहीं सके और इन्हें सेना बुलानी पड़ी।’ यह टिप्पणी पाकिस्तान के उन छोटे गिरोहों की है, जो कि सरकार से बिल्कुल नहीं डरते हैं। डॉन की खबर में इस बात का खास जिक्र था कि किस तरह बैठक में शाहबाज शरीफ ने वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के सामने खड़े होकर यह कहा कि सेना उन आतंकियों को बचा रही है जिनके खिलाफ वह और नवाज कार्रवाई करना चाहते हैं।
उधर टीवी कॉमेंटेटर्स का कहना है कि असल में हुआ यह कि उत्तरी वजीरिस्तान में तालिबान और सिंध में सैन्य कार्रवाई की सफलता के बाद सेना पंजाब प्रांत में भी इसी तरह की कार्रवाई को अंजाम देना चाहती है। पिछले 7-8 सालों से नवाज और शाहबाज शरीफ पंजाब का नेतृत्व कर रहे हैं। इस हिस्से में अव्यवस्था बहुत ज्यादा है। यहां आपराधिक तत्वों की गतिविधियां बहुत ज्यादा हावी हैं। इन तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करने वाले की काफी पीठ थपथपाई जाएगी और जनता से भी उसे काफी समर्थन मिलेगा।

अगर पाकिस्तानी सेना के प्रमुख राहिल शरीफ जल्द पंजाब में ऐसी कोई कार्रवाई शुरू करने का इरादा रखते हैं, तो इसका मतलब है कि वह अभी रिटायर होने के मूड में नहीं हैं। दो महीने बाद वह इतना अहम मिशन नए सैन्य प्रमुख को सौंपकर नहीं जाना चाहेंगे। राहिल शरीफ की छवि चमकाने के लिए बढ़-चढ़कर कर किए जा रहे अभियानों को देखकर तो नहीं लगता कि वह जल्द अपनी गद्दी छोड़ने वाले हैं। उधर नवाज शरीफ भी अगले सैन्य प्रमुख के चुनाव को लेकर काफी संशय में हैं। नवाज की यह परेशानी काफी पुरानी है। नवाज का अपना परिवार पनामा लीक्स की जद में आ गया है। नवाज के परिवार को लगता है कि उनके खिलाफ ये जानकारियां सैन्य मुख्यालय की ओर से लीक की गईं हैं।

पाकिस्तान में सबकुछ एक साजिश जैसा होता है। इसके अलावा इमरान खान की ओर से मिल रही राजनैतिक चुनौती का अलग दबाव है। 30 अक्टूबर को उन्होंने विशाल धरना दिया। उन्होंने कहा है कि शरीफ के अलावा वह किसी भी और को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं। इससे उन अफवाहों को हवा मिली है जिनमें कहा जा रहा है कि शाहबाज इमरान के विरोधी हो सकते हैं क्योंकि पूरे शरीफ परिवार में अकेले शाहबाज ही हैं जिनका नाम पनामा पेपर्स में नहीं है। लेकिन इसका एक और पहलू भी है। शाहबाज की सास का नाम इस लिस्ट में है।

इस्लामाबाद इस समय मुश्किल दौर से गुजर रहा है। 2014 में तख्तापलट की एक कमजोर कोशिश हुई थी। राहिल शरीफ ने विदेश मंत्रालय और सुरक्षा मामलों की बागडोर अपने हाथों में ले ली थी, लेकिन बाकी सारा प्रभार नवाज के हाथों में रहने दिया। अब प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख के बीच की दूरियां इतनी चौड़ी हो गई हैं कि उन्हें पाटना मुमकिन नहीं लगता। राहिल 30 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं। उनका कार्यकाल बढ़ाया जाएगा या नहीं, इसे लेकर भी कयास लगाए जा रहे हैं। हालांकि सच यह है कि जब तक सेना प्रमुख रिटायर नहीं हो जाते, तब तक उनका प्रभाव कायम रहेगा। पाकिस्तान में तो सेना प्रमुख का कद हमेशा से काफी बड़ा रहा है। नवाज ने सोचा था कि राहिल कमजोर हैं और उनकी ओर से कोई चुनौती नहीं आएगी, लेकिन उनका अंदाजा पूरी तरह से गलत निकला। राहिल अब एक जख्मी शेर हैं और ऐसे में नवाज के लिए खतरा और ज्यादा बढ़ जाता है।

पाकिस्तानी प्रिंट मीडिया हालांकि अभी भी डॉन का समर्थन कर रहा है। मीडिया सेना के मुकाबले सरकार को तवज्जो दे रहा है। वहीं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और उर्दू मीडिया सेना के पक्ष में जाती दिख रही है। टीवी चैनलों पर पाकिस्तान के दुनियाभर में अलग-थलग हो जाने का दोष नवाज के सिर पर मढ़ने की बातें शुरू हो चुकी हैं। बिलावल भुट्टो द्वारा दिए गए नारे, ‘मोदी का जो यार है, गद्दार है गद्दार है’ को लगभग सभी चैनलों पर बार-बार दिखाया जा रहा है। हालांकि बिलावल ने बाद में अपने इस बयान से दूरी बना ली थी।

वरिष्ठ पाकिस्तानी पत्रकार सवाल पूछ रहे हैं कि नवाज ने संयुक्त राष्ट्र जनरल असेंबली में गिरफ्तार किए गए कथित रॉ एजेंट कुलभूषण यादव का मुद्दा क्यों नहीं उठाया। एक विशेषज्ञ ने तो घोषणा कर दी कि अगर कोई भी शख्स नवाज शरीफ के मुंह से कुलभूषण का नाम निकलवा लेता है, तो उसे वह नगद इनाम देंगे। ऐसे में अब नवाज ना केवल सेना-विरोधी ठहराए जा रहे हैं, बल्कि उन्हें भारत-समर्थक भी बताया जा रहा है। सत्ता के गलियारों और बाजारों में कहा जा रहा है कि नवाज के दिन पूरे हो गए हैं। हालांकि नवाज के आस्तीन में कुछ और दांव बचे हो सकते हैं। सरकार बनाम सेना की इस लड़ाई के वह पुराने खिलाड़ी हैं। मुशर्रफ द्वारा सत्ता से बेदखल कर दिए जाने के बाद अब जो वह सत्ता में आए हैं, तो उम्मीद है कि यकीनन कुछ निर्णायक ब्रह्मास्त्र साथ लेकर आए होंगे।

 

देश-विदेश की ताजा ख़बरों के लिए बस करें एक क्लिक और रहें अपडेट 

हमारे यू-टयूब चैनल को सब्सक्राइब करें :

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें :

कृपया हमें ट्विटर पर फॉलो करें:

हमारा ऐप डाउनलोड करें :

हमें ईमेल करें : [email protected]

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button