स्वतंत्रता क्या है ? स्वाधीनता या स्वच्छंदता ?

स्वाधीन का अर्थ है— अपने अधीन, आत्म निर्भर
स्वच्छंद का अर्थ है— उन्मुक्त, निरंकुश

स्वाधीनता – सकारात्मक निर्माण की शक्ति है।
स्वच्छंदता – निरंकुश होने को आतुर नकारात्मक शक्ति है।

किनारे का आदर करती नदी अपने प्रवाह में बहने के लिये स्वाधीन है और अपने ही अधीन रह कर अनन्त समुद्र के अपने लक्ष्य तक सफल यात्रा करती है, पुण्य सलिला कहलाती है, सभ्यता संस्कृति को अपनी गोद मे पाल पोस इतिहास बनाती है। अर्थात स्वाधीनता बनाती है। स्वाधीनता निर्माण की यात्रा है।

उसी नदी का जल स्वच्छंद हो, किनारे की परवाह न कर जब उफनता है तो नदी रह ही नहीं जाता, बाढ़, सैलाब, त्रासदी, विभीषिका बन इधर उधर भागता फिरता आवारा बावला सा, कोई जल का टुकड़ा यहाँ कोई वहाँ गड्ढों द्वारा कैद कर लिया जाता और अंततः सड़ जाता, मिट जाता है। कोई इस स्वच्छंद अनन्त जल राशि की इज्जत नहीं करता। यह स्वतन्त्र उफनता उधियाता बे वजह बिना दिशा गंतब्य के बहे जाता परम् वेग युक्त अथाह जल केवल विनाश लाता है, कितनी ही सभ्यताओं को इसने इतिहास बना दिया, कितनो को लील गया। यह कैसी स्वतन्त्रता? कि “परम् स्वतन्त्र न सिर पर कोउ” यह स्वतन्त्रता नहीं स्वेच्छाचारी निरंकुशता का मार्ग है।

मीडिया को समझना होगा स्वतंत्रता और स्वछंदता का अंतर……

दस्तक विशेष में आज हम बात करेंगे स्वतंत्रता और स्वछंदता के अंतर पर………आज जब हम स्वतन्त्रता की ७४वीं वर्षगाँठ का उत्सव मना रहे हैं…..हमारी यह बात भारतीय मीडिया के लिए है ……. यह सही है कि मीडिया के बिना वर्तमान समय में समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती लेकिन, मीडिया को भी स्वतंत्रता और स्वच्छंदता के अंतर को समझना आवश्यक है।

आज भारतीय मीडिया साफ़-साफ़ दो धड़ों में बटा नजर आ रहा है। मीडिया का एक वर्ग अभिव्यक्ति और असहमति की स्वतंत्रता को अपना अधिकार बता रहा है तो दूसरा वर्ग राष्ट्र सर्वोपरि मानकर इसे संतुलित और संयमित रखने की बात कर रहा है। इस विषय में सर्वप्रथम हमें पत्रकारिता को समझना होगा। क्या पत्रकारिता का अर्थ यह होता है कि आप सही और गलत में कोई फर्क न करते हुए दोनों पक्षों का समर्थन करें, अथवा पत्रकारिता का अर्थ यह होता है कि आप सही और गलत में फर्क करते हुए सही का समर्थन करें और गलत को पूर्ण दृढ़ता के साथ गलत कहें। मेरा मानना है कि दूसरा विकल्प ही पत्रकारिता का विशुद्ध रूप है।

आज जब पत्रकारिता व्यवसाय होती जा रही है तो इसे एक मिशन के रूप में लेना सहज नहीं, लेकिन क्या एक पत्रकार ‘भारतीय’ व्यवसायी नहीं हो सकता? क्या एक पत्रकार भारतीय पत्रकार नहीं हो सकता? क्या एक पत्रकार अपने व्यवसाय से पहले देश को नहीं मान सकता? क्या एक पत्रकार अपने व्यवसाय के मिशन के रूप में नहीं ले सकता? क्या एक पत्रकार किसी अन्य देश में जाएगा तो वह भारतीय से पहले पत्रकार होगा? ऐसे कई सवाल हैं जो आज हमारे सामने खड़े हैं।

स्वतंत्रता किसी भी तरह की निरपेक्ष स्वच्छंदता का पर्याय नहीं हो सकती है। यदि ऐसा होता तो वह देश आदर्श होते जहां पर प्रजातंत्र आया जरुर लेकिन अधिक दिनों तक ठहर नहीं सका। स्वतंत्रता और स्वच्छंदता को अक्सर एक मानने की भूल कर दी जाती है और इसी का परिणाम है कि स्वतंत्रता के नाम पर कई बार अतार्किक मांग उठायी जाती है। ऐसे में स्वतंत्रता की मात्रा का सीमांकन जरुरी हो जाता है। स्वतंत्रता पर युक्तियुक्त प्रतिबन्ध जरुरी है ताकि गौरवशाली स्वतंत्रता मूर्खतापूर्ण स्वच्छन्दता में न बदल जाए।

जेएनयू की घटना याद करें ……..भारत को टुकड़े करने की बात वाले नारों को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की श्रेणी में कैसे लाया जा सकता है,  भारत तेरी बर्बादी तक जंग रहेगी…जंग रहेगी…जैसे नारों को मीडिया का एक वर्ग अभिव्यक्ति और असहमति की स्वतंत्रता बता रहा था, तो दूसरा वर्ग इसे राष्ट्रद्रोह की संज्ञा दे रहा था। इस देश का दुर्भाग्य है कि इस देश में कुछ लोगों को इस बात पर शर्म आती है कि हमारे लोकतांत्रिक मंदिर, यानी संसद पर हमला करके इस देश की अस्मिता पर प्रहार करने वाले अफजल गुरु नाम के आतंकी को फांसी पर लटका दिया जाता है। और इससे भी बड़ा दुर्भाग्य यह है कि लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ भी बंट चुका है।

निश्चित ही विचारों को व्यक्त करने की आजादी संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है, लेकिन संविधान के ही तहत इस आजादी पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाने का राज्य को अधिकार भी दिया गया है। अदालत ने भी यह माना कि स्वतंत्रता को स्वच्छंदता में तब्दील होने की छूट नहीं दी जा सकती है। इसलिए संसद को कानून बनाकर इस बारे में स्थिति स्पष्ट करनी होगी। खासकर देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा, सामाजिक चेतना जैसे संवेदनशील पहलुओं को देखते हुए तकनीकी प्रसार को रोकने के बजाय इसे बेकाबू होने से रोकने के उपाय करना वक्त की मांग है।

आज समय आ गया है कि आजादी के 73 साल के बाद हम थोड़ा सा पीछे मुड़ कर देखें और अपनी खामियों को चिन्हित कर उन्हें मिटाने का प्रयास करें। आज जरुरत है वैल्यु की, जो आज कल प्राइस में परिवर्तित होती जा रही है।

एक ऐतिहासिक प्रसंग के माध्यम से इस विषय को स्पष्ट करना चाहूंगा। विभीषण रावण के राज्य में रहने वाला एक ऐसा व्यक्ति था जिसके सहयोग के बिना श्रीराम को सीता नहीं मिलतीं, जिनके सहयोग के बिना लक्ष्मण जीवित नहीं बचते, जिसके सहयोग के बिना रावण के राज्य की गोपनीय बातें हनुमान-श्रीराम को पता नहीं लगतीं। एक लाइन में कहें तो ‘श्रीराम का आदर्श भक्त’… इतना कुछ होते हुए भी आज उस घटना के हजारों सालों के बाद भी किसी पिता ने अपने बेटे का नाम ‘विभीषण’ नहीं रखा। जानते हैं क्यों?

क्योंकि इस संस्कृति में आप राम भक्ति करें या ना करें कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन अगर राष्ट्रभक्ति नहीं की तो कभी माफ नहीं किए जाएंगे। आज एक सामान्य व्यक्ति से अधिक आवश्यक मीडिया के लिए है कि वह अधिकारों के साथ-साथ दायित्व को भी समझे। आज आवश्यक है कि मीडिया समाज, राष्ट्र और मानवीयता के प्रति अपनी जिम्मेदारी स्वयं सुनिश्चित करे। आज आवश्यक है कि मीडिया समाज को स्वतंत्रता और स्वछंदता के बीच के अंतर के विषय में जानकारी दे।

 

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