स्वतंत्रता दिवस: कानून मंत्री और CJI के भाषणों से SC-सरकार के मतभेद आए सामने

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच एक बार फिर से मतभेद उभरकर सामने आए हैं. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट परिसर में आयोजित स्वतंत्रता दिवस समारोह में कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच ये मतभेद भाषणों के ज़रिए दिखे. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के भाषण का जवाब देते हुए कहा कि किसी भी संस्थान की आलोचना करना या नष्ट करने की कोशिश करना आसान है, लेकिन संस्थान को आगे ले जाना व अपनी निजी आकांक्षाओं से परे रखना मुश्किल काम है और वो हम करते रहेंगे.

चीफ जस्टिस ने यह भी कहा कि आज जश्न का मौका है, इसलिए इसे मनाया जाए और तय किया जाए कि हम कभी न्याय की देवी की आंखों में आंसू नहीं आने देंगे. दरअसल, बुधवार को सुप्रीम कोर्ट परिसर में हुए समारोह में चीफ जस्टिस ने तिरंगा फहराया. झंडा फहराने के बाद केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि हम PIL का सम्मान करते हैं, मगर कोर्ट को शासन का काम उन लोगों पर छोड़ देना चाहिए, जिन्हें लोगों ने चुनकर भेजा है. कोर्ट को तब दखल देना चाहिए, जब सरकार कुछ गलत कर रही हो.

इतना ही नहीं रविशंकर प्रसाद ने कहा, ‘आज वक्त बदल चुका है. आम नागरिक जानते हैं कि वो किसी भी राजनीतिक पार्टी को सत्ता से हटा सकते हैं. ये भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती है कि एक खालिस्तानी नेता को मैंने देश के टुकड़े करने की बात करते सुना था और बाद में उसे संविधान की शपथ लेते हुए भी सुना.’

उन्होंने कहा कि आज हर व्यक्ति अपने अधिकारों को जानता है. गरिमापूर्ण जीवन को समझता है. सुप्रीम कोर्ट ने हमेशा अधिकारों की रक्षा की है और ये पूरे देश के लिए गर्व की बात है. प्रसाद ने कहा, ‘यहां सुप्रीम कोर्ट की दिक्कतों की बात हुई. मैं कानून मंत्री के तौर पर हर संभव मदद करने को तैयार हूं, लेकिन आज आजादी का समारोह मनाने का दिन है न कि सुप्रीम कोर्ट में बढ़ रही भीड़ का जिक्र करने का.’

इसके जवाब में चीफ जस्टिस ने कहा, ‘मैं कानून मंत्री की बातों से सहमत नहीं हू्ं. जिन लोगों ने आजादी की लडाई लड़ी उन्होंने आपकी प्रशंसा पाने के लिए ये नहीं किया. वो अपने देश और अधिकारों के लिए लड़े. दरअसल, समारोह की शुरुआत में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा, ‘हमारे पास कानून मंत्री के लिए एक लंबी विशलिस्ट है. कोर्ट में भीड़ बढ़ती जा रही है. रोज सुप्रीम कोर्ट के गलियारों में धक्का-मुक्की होती है. कई बार तो लोगों की कोहनियां पेट मे घुसती हैं. महिला वकीलों को ज़्यादा परेशानी होती है.’

उन्होंने कहा, ‘सरकार, जजों और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन को इस बारे में सोचने की ज़रूरत है. सुप्रीम कोर्ट में अहम मुकदमों की लाइव स्ट्रीमिंग पर भी बात हो रही है. कनाडा में तो टेलीकॉन्फ्रेसिंग के ज़रिए ब्रीफिंग लॉयर कोर्ट में केस पेश कर रहे वकील से सलाह मशविरा कर लेते हैं. यहां भी सुप्रीम कोर्ट की बड़ी इमारत और बड़े कोर्ट रूम होने ज़रूरी हैं. अगर इलेक्ट्रिक वाहन हों, तो जब केस आने वाला हो, तो वकील और मुवक्किल कोर्ट रूम तक पहुंच जाएं, लेकिन ये सब बहुत खर्चीला है.

 

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