स्वामी रामदेव : ये संतों वाला काम है क्या ?

प्रभात डबराल

आज तक पर बाबा/लाला रामदेव का वो इंटरव्यू जिसके बाद चैनल ने पुण्य प्रसून बाजपेयी को नौकरी से निकाल दिया था, मैंने देखा है. इंटरव्यू कैसा था कैसा नहीं और पुण्य प्रसून को निकालना कितना गलत था, ये पोस्ट इस बारे में नहीं है. इसमें चर्चा होगी उन सवालों की जो पुण्य प्रसून ने इंटरव्यू में उठाने की कोशिश की थी और बाबा नाराज़ हो गए थे. इनमे से एक मुद्दा आयकर से सम्बंधित है. बाबा ने इस बारे में जो कुछ कहा उसके आधार पर अपने जेहन में जो तस्वीर बनती है, वो इस प्रकार है।

— बाबा की कंपनियां, वो संस्थाए जो पतंजलि उत्पाद बनाती और बेचती हैं, इनकम टैक्स नहीं देतीं. उनका सैकड़ों करोड़ का मुनाफा पतंजलि के ट्रस्टों में जाता है और इन ट्रस्टों को इनकम टैक्स से छूट मिली हुयी है.
—इनकम टैक्स से छूट इसलिए मिली है क्योंकि ये ट्रस्ट योग के प्रचार प्रसार और शिक्षा का कार्य करते हैं.
अपन ने इस बिंदु पर छान बीन करने की कोशिश की. पता चला कि २००६ में इनकम टैक्स विभाग ने योग शिक्षा के आधार पर इनकम टैक्स से छूट देने से मना कर दिया था. मामला ट्रिब्यूनल तक पहुंचा और २०१४ में दिल्ली के अपीलेट ट्रिब्यूनल ने बाबा के पक्ष में फैसला दे दिया. बाबा के संगठन कोई आई आई टी टाइप इंजीनियरिंग कॉलेज या एम्स टाइप अस्पताल/ शोध संसथान चलाते हों, ऐसा नहीं है. बाबा करोड़ों रुपये इनकम टैक्स बचाकर इस पैसे से पब्लिक के लिए हाईवे या दूसरा कोई इंफ्रास्ट्रक्चर भी नहीं बनाते.

हाँ, इसमें कोई शक नहीं कि योग और आयुर्वेद के क्षेत्र में बाबा खूब पैसा लगाते हैं. पंचकर्म,मसाज और डेटोक्सिकेशन आदि के कई फाइव स्टार केंद्र बाबा ने खोले हैं. अब सौ करोड़ से अधिक की लागत का एक नया केंद्र बनकर करीब करीब तैयार हो गया है जो, खुद बालकिशन जी के शब्दों में नरेंद्र नगर के आनन्दा रिसोर्ट को भी मात दे देगा. बताते हैं कि इसका पैकेज कम से कम बीस हज़ार रुपये प्रतिदिन होगा. इनकम टैक्स का पैसा बचाकर नया व्यापार शुरू किया जा रहा है. और वहां भी इनकम टैक्स नहीं देना होगा. अद्भुत बिजनेस मॉडल है. ये फेल हो ही नहीं सकता. इसमें लाभ ही लाभ है. वाक़ई बाब्बे दा जबाब नहीं.

ये भी ज़ोर देकर कहा जाना चाहिए नए नए व्यापार शुरू करके बाबा की कंपनियां जो अकूत मुनाफा कमाती हैं वो किसी की अय्याशी पर खर्च नहीं होता. बाबा का जीवन सादगी का अप्रतिम उदहारण है. उनका भोजन, रहन सहन सब कुछ सन्यासियों जैसा सादा है. बालकिशन जी के पास करोड़ से ऊपर वाली एसयूवी हैं पर बाबा ज़्यादातर स्कॉर्पियो पर ही चलते हैं. उनके पास अपना विमान भी नहीं है – ज़रुरत पड़ने पर किराये में ले लिया जाता है.

अपन कई मामलों में बाबा के मुरीद हैं – खासकर उनकी सादगी, भलमनसाहत और खुलेपन के. लेकिन जब व्यापार कर रहे हैं तो इनकम टैक्स तो देना ही चाहिए. इसी इंटरव्यू में बाबा ने कहा कि इनकम टैक्स जमा किया तो उस पैसे में से ज़्यादातर का दुरुपयोग हो सकता है, हमारे ट्रस्ट में वो जन कल्याण में खर्च होता है. बाबा का मुरीद होने के वावजूद ये बात अपन को कुछ पची नहीं. और फिर चैनल मालिक से सवाल पूछने वाले पत्रकार की शिकायत – ये संतों वाला काम है क्या?

(वरिष्ठ पत्रकार प्रभात डबराल के फेसबुक वॉल से)
 

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