हाईकोर्ट ने दिए आदेश- उच्च शिक्षा सेवा आयोग के तीन सदस्यों की नियुक्ति रद्द

highocurt_14तहलका एक्सप्रेस
लखनऊ/इलाहाबाद। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण आदेश पारित कर उच्च शिक्षा सेवा आयोग के तीन सदस्यों रामवीर सिंह यादव, राम रूदल यादव व अनिल कुमार सिंह की नियुक्तियों को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने इन सदस्यों की नियुक्ति को गलत व राजनैतिक हस्तक्षेप से युक्त माना है और कहा है कि इस प्रकार की नियुक्तियों में राजनैतिक हस्तक्षेप गलत है। इन तीनों सदस्यों की नियुक्ति को रद्द कर हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह आयोग के सदस्यों की कमेटी गठित करे और नए सदस्यों की नियुक्ति करे। कोर्ट ने कहा कि आयोग के ये तीनों सदस्य न तो महत्वपूर्ण व्यक्ति थे और न ही शिक्षा के क्षेत्र में इनका मूल्यवान योगदान ही रहा।
यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डॉ. डीवाई चंद्रचुड़ व न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खण्डपीठ ने गोरखपुर विश्वविद्यालय एसोसिएटेड टीचर्स एसोसिएशन की जनहित याचिका पर दिया है। याचिका दायर कर इन तीनों सदस्यों को अयोग्य बताकर इनकी नियुक्तियों को रद्द करने कमी भी मांग की गई थी। कहा गया था कि राजनीतिक दबाव के चलते इन तीनों सदस्यों की नियुक्तियां की गई।
जजों ने इन तीनों सदस्यों की नियुक्तियों को रद्द करते हुए कहा कि इस प्रकार की नियुक्तियों में पक्षपातपूर्ण व राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। ये नियुक्तियां ऐसी है जो उच्च शिक्षा देने वाले अध्यापकों का चयन करती है। ऐसे में यदि इस प्रकार की नियुक्तियों में राजनीतिक हस्तक्षेप होगा तो इससे शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चों के जीवन पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। कोर्ट ने कहा कि ये सभी सदस्य टीचर्स है और उनका इस क्षेत्र में अनुभव भी है, लेकिन इसका मायने यह नहीं है कि वे महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं और शिक्षा के क्षेत्र में इनका मूल्यवान योगदान रहा।
कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार की नियुक्तियों के लिए प्रदेश में कोई प्रक्रिया नहीं है। इसका मतलब यह नहीं कि सरकार किसी को सदस्य बना दे। अदालत ने कहा कि इस प्रकार की नियुक्तियों के लिए एक सर्च कमेटी होनी चाहिए और इसमें वरिष्ठ आईएएस बतौर सदस्य होना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि रामवीर सिंह यादव अनुभवी टीचर तो हो सकते हैं, लेकिन महत्वपूर्ण नहीं है और न ही शिक्षा के क्षेत्र में उनका योगदान ही है। इसी प्रकार डॉ. रूदल यादव का टीचर का ही अनुभव है और एके सिंह पहले असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और बाद में प्रधानाचार्य बने थे। ये तीनों ही सदस्य पद के योग्य नहीं थे।
 

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