हार गए तो खिसिया कर युवाओं पर ही गुस्सा निकाल रहे हैं हार्दिक पटेल

अहमदबाद। गुजरात की राजनीति में धूमकेतू की तरह उभरने वाले हार्दिक पटेल अब जुगनुओं से खफा हैं. गुजरात में साम दाम दंड भेद सब कुछ करने के बाद, कांग्रेस को समर्थन देने के बाद भी जब जीत नसीब ना हुई तो हार्दिक की सियासी समझ को गहरी चोट लगी, भीड़ को वोटबैंक समझने की गलती करने वाले हार्दिक अब देश के युवाओं को नसीहत दे रहे हैं, खुद की तुलना भगत सिंह से करने वाले हार्दिक पहले ये समझें कि भगत सिंह क्या थे, केवल गांधी और भगत सिंह की बात करने से ही कोई इनके जैसा नहीं बन जाता है। अश्लील सीडी के केस में फंसे एक शख्स द्वारा खुद की तुलना भगत सिंह से करना अजीब ही नहीं बल्कि अपराध माना जाएगा।

गुजरात हार के बाद से ही हार्दिक पटेल लगातार ये कह रहे हैं कि उनके खिलाफ सरकार सख्त हो रही है, इस में वो हवाला देते हैं कि उनके खिलाफ पटेल आरक्षण आंदोलन के दौरान देशद्रोह का केस लगाया गया था। इस लिए उनको कोर्ट के चक्कर ज्यादा लगाने पड़ रहे हैं। ये कौन सा तर्क हुआ समझ नहीं आता है, हर कोई बड़ी बड़ी बात करके महान नेताओं का जिक्र करते क्रांति करने के लिए निकल पड़ा है, लेकिन जिन महान लोगों की बातें ये करते हैं उसका एक फीसदी भी आत्मसात किया होता जो इस तरह से पहचान का संकट नहीं खड़ा होता। हार्दिक कह रहे हैं कि अगर वो सच में आरोपी होते तो कोर्ट के चक्कर नहीं लगाते बल्कि बीजेपी में होते, कुछ इसी तरह की बात तेजस्वी यादव ने भी कही थी।

तेजस्वी यादव अपने पिता लालू यादव को गरीबों का मसीहा, सामाजिक न्याय के लिए लड़ने वाला बताते हैं तो हंसी आती है, हजारों करोड़ की दौलत कमाने वाले लालू ने गरीबों के लिए क्या किया है, उनके 15 साल के राज में बिहार पाषाण काल में पहुंच गया था। उसी तरह से हार्दिक पटेल भी बोल रहे हैं. इतना ही नहीं हार्दिक तो दे के युवाओं पर ही निशाना साध रहे हैं, उन्होंने कहा कि देश में युवा बस दूर से तमाशा देखते हैं, वो दूसरों की गलती निकालते हैं, लेकिन उसे सही करने की हिम्मत नहीं रखते हैं। अगर गुजरात में हार्दिक और कांग्रेस जीत जाते तो युवा सही लेकिन अब वो गलत हैं। राजनीति में कुछ सॉलिड होना चाहिए, किस बिना पर हार्दिक इतना उछल रहे हैं।

हार्दिक की अब तक की उपलब्धि क्या है, हजारों, लाखों पाटीदार आरक्षण की मांग को लेकर सड़कों पर उतरे तो हार्दिक उनके नेता बन गए, अब वो राजनीति कर रहे हैं, व्यवस्था से असहमत होना अलग बात है लेकिन इस असहमति को क्रांति का नाम देना गलत है. युवाओं को हार्दिक नसीहत देते हैं कि वो दूसरों की गलतियां निकालते हैं, खुद वो क्या कर रहे हैं. जितने भी युवा नेता हाल फिलहाल आए हैं वो गलतियां निकाल कर कमियां बता कर ही चर्चा में आए हैं, किसी के पास भी कुछ बेहतर करने का कोई सुझाव नहीं है। हार्दिक तो खास तौर पर एक समुदाय के लिए आरक्षण की मांग से चर्चा में आए हैं, इसी तरह से अगर हर जाति में हार्दिक निकलने लगे तो फिर क्या होगा इस देश का। इस बारे में नहीं सोचना है क्योंकि सोचेंगे तो समझ आ जाएगा कि वो गलत हैं।

 

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