17 साल से भाई ने किया था कैद, अदालत ने निकलवाया बाहर

17 sall seतहलका एक्सप्रेस, डॉ इब्राहीम जहगीरदार

औरंगाबाद। पिछले 17 साल से औरंगाबाद के एक मकान में कैद व्यक्ति को आखिरकार हाईकोर्ट की दखल के बाद मंगलवार शाम बाहर निकाला गया। 39 वर्षीय इस व्यक्ति को उसके सगे भाई ने मनोरोगी बताते हुए एक अंधेरे कमरे में कैद किया था। फिलहाल इसका इलाज औरंगाबाद के सरकारी हॉस्पिटल में चल रहा है। पुलिस आज इसका बयान दर्ज कर सकती है।

मानसिक रोगी बताकर कैद किया
ग्रामीण पुलिस के उप विभागीय अधिकारी सतीश माने के मुताबिक अर्जुन इंगले (39) नाम के इस युवक को उसके भाई राजेंद्र इंगले ने 1998 से देवलगांव(बाजार) के घर में कैद करके रखा था। अर्जुन ने 1993 में दसवीं की परीक्षा पास और उसके बाद वह नौकरी के लिए नासिक चला गया। 1998 में वह अपने गांव छुट्टियां मनाने आया और अचानक एक दिन उसके भाई ने उसे एक कमरे में कैद कर दिया। राजेंद्र ने यह बात फैला दी कि अर्जुन की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है और वह पास जाने वाले व्यक्ति पर हमला कर रहा है, इसलिए इसे कमरे में बंद करके रखा गया है। भाई की बातों पर लोगों ने विश्वास कर लिया और 17 साल तक किसी ने आवाज नहीं उठाई। ग्रामीणों के अनुसार कमरे की खिड़की से अर्जुन की मां उसे भोजन दिया करती थी।

सत्रह सालों से बंधक बने अर्जुन को जब बाहर निकाला गया तो उसके बाल जटाओं में तब्दील हो गए थे। हाथ और पैर की उंगलियों के नाखून बड़े हो गए थे। उंगलियों में बाल लिपटने से कुछ उंगलियां टूटने की कगार पर पहुंच गई थीं। अर्जुन का यह रूप डराने वाला था। कमरे से बाहर निकालने के बाद अर्जुन को हॉस्पिटल में इलाज के लिए भर्ती करवाया गया है। अर्जुन को देखने के बाद हर कोई उसके परिवार वालों की क्रूरता और बर्बरतापूर्ण व्यवहार पर नाराज है। प्राथमिक उपचार के बाद पुलिस ने अर्जुन से बात करने का प्रयास किया, लेकिन घबराया और मानसिक रूप से अस्वस्थ अर्जुन फिलहाल कुछ भी नहीं बोल रहा है। पुलिस आज फिर एक बार अर्जुन का बयान लेने का प्रयास करेगी।

अदालत ने दिया आदेश
एक व्यक्ति के 17 साल से कमरे में कैद होनी की खबर मीडिया में आने के बाद बंबई हाईकोर्ट की औरंगाबाद खंडपीठ ने स्वतः संज्ञान लेते हुए उसे बाहर निकालने का निर्देश स्थानीय प्रशासन को दिया था। अदालत ने मामले में संज्ञान लेते हुए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका(हेवियस कॉरपस पिटीशन) दायर करने के भी निर्देश दिया है। विशेष पुलिस महानिरीक्षक और पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण) को प्रतिवादी बनाते हुए अदालत ने नोटिस भेजा है। अदालत ने कहा है कि यदि एक व्यक्ति को 17 साल से कमरे में बंद रखा गया है तो यह मानव अधिकार का गंभीर उल्लंघन है।

 

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