2020 तक ‘अवसाद’ हो जाएगी दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी बीमारी

राजेश श्रीवास्तव

क्या हुआ जो हम किसी के जैसे नहीं हम जैसे है , वैसे ही अच्छे हैं हमारी अपनी पहचान है ,क्यों हम किसी की पहचान जैसे बने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने 2०16 में संसद में बताया था कि देश की छह फीसद आबादी मानसिक असंतुलन की शिकार है। दो करोड़ लोग व्यक्तित्व विघटन और पांच करोड़ लोग डिप्रेशन अवसाद से पीड़ित हैं। ध्यान रहे कि यह स्थिति तब है जब भारत में डिपे्रशन से जूझ रहे लोग इसके इलाज के लिए जल्दी अस्पताल नहीं जाते। केवल छह प्रतिशत लोग ही इलाज कराते हैं। यदि छह फीसद का सरकारी आंकड़ा माना जाए तो यह सरकारी आंकड़ा कई गुना बढ़ जाएगा।

अगर सभी प्रभावितों का अनुमान लगाया जाए तो। 2०1० की विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट कहती है कि 2००8 में यह विश्व की चौथी सबसे बड़ी बीमारी थी अैर 2०2० तक यह दुनिया की सबसे बड़ी दूसरी बीमारी बन जाएगी। विश्व में हर साल 85००० मौतें अवसाद के कारण होती हैं। इन गंभीर आंकड़ों के बावजूद भारत सरकार इस पर ध्यान देने को तैयार नहीं जबकि विश्व की लगभग हर देश की सरकार इसके लिए बड़े पैमाने पर कार्यक्रम चला रही है। केंद्र सरकार द्बारा केवल तीन और सभी राज्य सरकारों को जोड़ लें तो केवल 4० संस्थान ऐसे हैं जो डिप्रेशन से जूझ रहे लोगों का इलाज करते हैं।

दिलचस्प यह है कि इनके बारे में प्रचार-प्रसार इतना कम है कि लोग यहां तक पहुंच ही नहीं पाते हैं। इसका फायदा ढोंगी बाबा और साधू-संत व नीम हकीम खूब उठा रहे हैं। आंकड़ा जुटाएं तो हाथ लगता है कि देश में केवल चार हजार मनोचिकित्सक हैं। चिकित्सकों ने पहली बार 1982 में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम चलाया था। हास्यास्पद है कि किसी भी मनोचिकित्सक अस्पताल में एक भी एम्बुलेंस नहीं है। न ही इसके मरीजों को किसी तरह का स्वास्थ्य बीमा होता है। दिल्ली के मौलाना आजाद अस्पताल के एक चिकित्सक कहते हैं कि ओपीडी में आने वाली 4० प्रतिशत लोग अवसाद से पीड़ित होते हैं। अवसाद ने जहां 13.9 फीसद पुरुषों को अपना शिकार बनाया तो 16.3 फीसद महिलाएं भी इसका शिकार हैं। इंडियन साइकियाट्रिस्ट सोसाइटी की वार्षिक रिपोर्ट बताती है कि एकांत अवसाद का प्रमुख कारण है।

आपको शायद न पता हो कि 55 फीसद लोगों की सामाजिक भागीदारी शून्य है। अभी बीते दिनों लोगों का डिप्रेशन दूर करने वाले भय्यू जी महाराज ने भी खुद को गोली मार ली। बीते दिनों 6 जून को मध्य प्रदेश की छठी क्लास की बच्ची ने केवल इसलिए खुद को गोली मार ली कि वह फेल हो गयी थी। डिप्रेशन इस कदर हावी है कि हम कल्पना नहीं कर सकते कि सबको हंसाने वाला चार्ली चैपलिन खुद बेहद दुखी रहता था। हास्य कलाकार कपिल शर्मा खुद इन दिनों डिप्रेशन का शिकार हैं। कभी अमिताभ बच्चन, शाहरुख, दीपिका, अनुष्का, समेत कई बड़े सितारे डिप्रेशन की समस्या से परेशान रहे हैं।

चकाचौंध से भरी इस फिल्म और टीवी की सच्चाई तो ये है कि इसमें काम करने वाले सितारे निजी जिदगी में कई बार इतनी तकलीफ झेलते हैं कि डिप्रेशन तक के शिकार हो जाते हैं। कई स्टार्स तो डिप्रेशन से इतने परेशान हुए की यही उनके मृत्यु का कारण बनी। बॉलीवुड की हसीन अदाकाराओं में से एक परवीन बाबी की मौत की वजह डिप्रेशन रही। बॉलीवुड में कुछ एक फिल्मों का चेहरा बनी एक्ट्रेस जिया खान द्बारा आत्महत्या करने की घटना ने बॉलीवुड को सदमे में डाल दिया था। जिया खान निजी जिदगी में आई परेशानियों के चलते डिप्रेशन में थी इसलिए उन्होंने आत्महत्या को अंजाम दिया।

अपने जमाने के स्टार राजेश खन्ना भी डिप्रेशन में चले जाते थे। दंगल और सीक्रेट सुपरस्टार जैसी फ़िल्मों में हर मुश्किल को जीतने वाली ज़ायरा वसीम ने सोशल मीडिया के ज़रिए एक बड़ा खुलासा किया है। ज़ायरा पिछले कई सालों से डिप्रेशन यानी अवसाद की शिकार हैं। उन्होंने इंस्टाग्राम पर एक लंबा नोट लिखकर अपनी दर्दभरी कहानी बयां की है, जिसे पढ़ने के बाद लगता है कि पिछले कुछ साल से उनकी ज़िंदगी कितने ख़तरनाक दौर से गुज़री है। ज़ायरा ने पूरी तरह ठीक होने के लिए सोशल मीडिया और सोशल लाइफ़ से ब्रेक लेने की बात कही है।

अंत में बस इतना ही कि जिंदगी कीमती है। असफलता सफलता का ही दूसरा रूप है। दूसरी बार आप ज्यादा सफल होते हैं। अगर अमेरिकी राष्ट्रपति पहली बार हार जाते तो कभी राष्टपति नहीं बन पाते। वह जिंदगी की बहुत लड़ाईयां हारे। मन को तरोताजा रखने वाले गाने सुनिये। व्यायाम कीजिये। जिंदगी एक बार मिली है उसे खुल कर कीजिये…असफलता अंतिम सच नहीं है एक बार फिर प्रयास करिये… कौन कहता है कि आंसमा में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबियत से उछालों यारों।

 

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