2014 में रोड हादसों में देश ने खोए 75000 यूथ!

Accidentतहलका एक्सप्रेस

नई दिल्ली। भारत में सड़क हादसों में मारे गए आंकड़े वाकई बहुत डरावने हैं। बात सिर्फ युवाओं की करें तो पिछले साल ही देश भर में 15 से 34 साल के आयु वर्ग के 75,000 लोगों ने विभिन्न सड़क हादसों में अपनी जान गंवाई है, जिनमें 82% पुरुष थे। ये भयावह आंकड़े सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की ओर से तैयार साल 2014 के रोड ऐक्सिडेंट रिपोर्ट में सामने आए हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘पिछले साल सड़क हादसों में मारे गए लोगों के आयु वर्ग के हिसाब से 15 से 34 साल के लोगों की तादाद सड़क हादसों में हुईं कुल मौतों यानी करीब 1 लाख 40 हजार का 53.8 प्रतिशत है। इसके बाद बारी 35 से 64 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों की आती है, जिनका प्रतिशत 35.7 है।’ विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का ताजा अनुमान है कि दुनिया भर में 15 साल से 29 साल के बीच के लोगों की सबसे ज्यादा मौत सड़क हादसों में ही होती है। इसके मुताबिक, इस आयु वर्ग के करीब 3,40,000 लोग हर साल रोड ऐक्सिडेंट में अपनी जान गंवा देते हैं।

 इन आंकड़ों का हवाला देते हुए रोड सेफ्टी ऐक्सपर्ट रोहित बलूजा कहते हैं, ‘इससे पता चलता है कि रोड सेफ्टी के मुद्दों को लेकर युवाओं को और ज्यादा जागरूक करने के प्रति ध्यान देने की कितनी ज्यादा जरूरत है। इनमें परिवारों की जिम्मेदारी ज्यादा बड़ी है। परिवार के लोग युवाओं को रोड सेफ्टी के प्रति ज्यादा संवेदनशील बना सकते हैं। यह बहुत बड़ी क्षति है और इससे हुए सामाजिक नुकसान का आकलन करने पर पता चलेगा कि सच में यह कितना बड़ा नुकसान है।’

मंत्रालय के ट्रांसपोर्ट रिसर्च विंग (टीआरडब्ल्यू) द्वारा तैयार रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2013 में सड़क हादसों में मौतों की तादाद 4 लाख 86 हजार थी, जो डेढ़ फीसदी के इजाफे के साथ साल 2014 में 4 लाख 89 हजार हो गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल मौतों का 83.2% उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, बिहार, पंजाब और हरियाणा यानी कुल 13 राज्यों के हिस्से आता है। वहीं, सड़क हादसों में गंभीर रूप से घायल लोगों की तादाद में दक्षिण भारत के दो राज्य कर्नाटक और केरल टॉप पर हैं, जिसके बाद महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश का नंबर आता है।

जेनेवा स्थित इंटरनैशनल रोड फेडरेशन के चीफ के. के. कपिल कहते हैं, ‘इन पीड़ितों में कई तो हमेशा के लिए अपाहिज हो गए। यह उनके परिवारों पर बड़ा बोझ है। एशियन डिवेलपमेंट बैंक की स्टडीज में यह बात सामने आई है कि सड़क हादसों में मारे जाने या गंभीर रूप से जख्मी होने वाले लोगों के परिवार किस तरह गरीबी के दलदल में फंसने को मजबूर हो गए।’

बहरहाल, रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल मौतों का 12 प्रतिशत उन 50 शहरों के हिस्से आता है जहां की आबादी दस लाख से ज्यादा है। इस लिस्ट में दिल्ली 1,671 जबकि चेन्नै 1,118 मौतों के साथ पहले और दूसरे स्थान पर है। हालांकि, सड़क हादसों में मरने की ज्यादा आशंका वाले शहरों में लुधियाना (पंजाब), धनबाद (झारखंड), अमृतसर (पंजाब), वाराणसी (यूपी), कानपुर (यूपी) और पटना (बिहार) शामिल हैं। पिछले साल लुधियाना में हुए 475 सड़क हादसों में 318 लोगों की मौत हुई, वहीं धनबाद में हुई सड़क हादसों की 106 घटनाओं में 63 लोगों की जानें गईं। सिखों के पवित्र शहर अमृतसर में 165 हादसों में 94 लोग काल के गाल में समा गए।

टीआरडब्ल्यू के एक अधिकारी ने बताया, ‘जिन राज्यों में ज्यादा मौतें होती हैं, हम वहां का दौरा करते रहते हैं और हमने पाया है कि सड़कों को सुरक्षित रखने के दिशा में वहां के लोग ज्यादा संवेदनशील हुए हैं। राज्य सरकारें इसी मुद्दे को समर्पित महत्वपूर्ण एजेंसियां स्थापित कर रही हैं।’ इधर, मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि एक ऐसे नैशनल अथॉरिटी की स्थापना की बहुत जरूरत है, जिसे सड़क हादसों में होने वाली मौतों के लिए जिम्मेदार ठहाराय जा सके, जैसा कि अमेरिका और यूके जैसे विकसित देशों में होता है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ की बात में युवाओं के परिवारों से इस मुद्दे को लेकर अपील कर चुके हैं।

 

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