2019 चुनाव से पहले देख लें ब्लैक मनी पर मोदी सरकार का रिपोर्ट कार्ड

नई दिल्ली। साल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी का सबसे बड़ा वादा यही था कि उनकी सरकार आई तो वह विदेशी बैंकों में जमा पूरा काला धन वापस लेकर आएंगे. उन्होंने कहा था कि अगर यह धन वापस आ जाए तो गरीबों को वैसे ही 15-15 लाख मिल जाएंगे.

नरेंद्र मोदी ने कहा था, ‘हम विदेशी बैंकों में जमा एक-एक रुपया वापस लेकर आएंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि इसका इस्तेमाल गरीबों की बेहतरी के लिए किया जाए.’

करीब 1.14 लाख करोड़ रुपये के काले धन का खुलासा

अब जब एक साल के भीतर देश फिर से चुनावों का सामना करने जा रहा है, अब यह जांच करने का समय आ गया है कि मोदी सरकार काले धन के वादे पर कितना खरा उतरी है. असल में कुल मिलाकर देखें तो पिछले चार साल में करीब 1.14 लाख करोड़ रुपये के काले धन का पता चला है. आइए देखते हैं मोदी सरकार ने काले धन पर अंकुश के लिए पिछले चाल साल में क्या कदम उठाए और अलग-अलग मामलों में क्या हैं आंकड़े…

टैक्स देकर काला धन जाहिर करने की योजना

सरकार की स्वैच्छ‍िक आय घोषणा योजना (IDS) और काला धन एवं टैक्स आरोपण एक्ट (BMIT Act) के तहत कुल 69,350 करोड़ रुपये की वसूली हुई है. इसके अलावा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (PMGKY) के तहत 5,000 करोड़ रुपये और आए हैं. BMIT एक्ट को सरकार ने 2015 में लागू किया था. इसके तहत विदेश में संपत्त‍ि रखने वाले लोगों को एक बार में एकमुश्त टैक्स देकर अपने काला धन को सफेद करने का मौका मिला था. 1 जुलाई से 30 सितंबर 2015 के ही दौरान इस योजना के तहत करीब 650 लोगों ने विदेशी बैंकों में जमा अपनी कुल 4,100 करोड़ रुपये की संपत्त‍ि का खुलासा किया.

इसके बाद सरकार ने दो और ऐसे तरीके मुहैया कराए. पहली थी साल 2016 की आय घोषणा योजना (IDS). इस योजना के तहत पिछले आकलन वर्ष तक जिन लोगों ने ईमानदारी से अपनी आय या संपत्त‍ि की घोषणा नहीं की थी, उन्हें इसका खुलासा करने का मौका दिया गया. इसके बदले उनकी आय पर 45 फीसदी का एकमुश्त टैक्स लगाने का प्रावधान था. आईडीएस के तहत 64,275 लोगों ने 65,250 करोड़ रुपये के एसेट का खुलासा किया.

इसके बाद दिसंबर, 2016 में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना शुरू की गई. इसके तहत किसी अघोषित आय पर 50 फीसदी जुर्माना देकर गोपनीय तरीके से इसकी जानकारी सरकार को दी जा सकती है और किसी तरह की कार्रवाई से बचा जा सकता है. यही नहीं, अघोषित आय के अन्य 25 फीसदी हिस्सा को निवेश करने का भी विकल्प है, जो चार साल के बाद बिना ब्याज के वापस हो जाएगी.

नोटबंदी

नोटबंदी से कोई ठोस नतीजा नहीं मिला है, इसे आमतौर पर विफल माना जा रहा है. नवंबर 2016 में सरकार ने 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया. पूरे करेंसी सर्कुलेशन में इन नोटों का हिस्सा करीब 86 फीसदी था. इसके पीछे सोच बैंकिंग सिस्टम से बाहर हो चुके धन को वापस लाने की थी. सरकार को लगता था कि इससे बैंकिंग सिस्टम में 10 से 11 लाख करोड़ मूल्य के नोट वापस आ जाएंगे. नोटबंदी के समय 500 और 1000 के कुल 15.44 लाख करोड़ रुपये मूल्य के नोट अवैध घोषित किए गए थे. इनमें से सिर्फ 16,000 करोड़ रुपये ही वापस नहीं आए.

नोटबंदी के दौरान नए नोटों की छपाई और एटीएम को दुरुस्त करने आदि पर रिजर्व बैंक के करीब 21,000 करोड़ रुपये खर्च हो गए. हालांकि नोटबंदी के दौरान कुल कितनी रकम बैंकों में वापस आई अभी इसका अंतिम आंकड़ा रिजर्व बैंक बताने को तैयार नहीं है. इस तरह नोटबंदी से सरकार का यह लक्ष्य पूरा नहीं हुआ कि अर्थव्यवस्था से काला धन बाहर निकल आएगा.

बेनामी एक्ट में संशोधन

मोदी सरकार ने बेनामी लेनदेन पर अंकुश लगाने के लिहाज से बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम 1988 में साल 2016 में संशोधन किया. इसके तहत इनकम टैक्स विभाग ने देश भर में 24 बेनामी प्रॉहिबिशन यूनिट स्थापित किए. वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ला के मुताबिक 30 जून, 2018 तक 4,300 करोड़ रुपये मूल्य के 1600 से ज्यादा बेनामी लेनदेन की प्रॉविजनल तौर पर कुर्की की गई.

मॉरीशस के रास्ते आने वाले काले धन पर अंकुश

भारत सरकार ने मनी लॉन्ड्रिंग को रोकने के लिए मॉरीशस के साथ दोहरा कर आरोपण बचाव समझौता (DTAA) किया था. इसके अलावा जनरल एंटी अवाइडेंस रूल्स (GAAR) भी लाया गया, जो 1 अप्रैल, 2017 से लागू हुआ. GAAR से भी टैक्स चोरी के लिए दूसरे देशों के द्वारा आने वाले लेनदेन पर रोक लगती है. 10 मई, 2016 को मॉरीशस के साथ होने वाले दोहरा कर आरापेण बचाव समझौते में संशोधन किया गया. अब सरकार किसी मॉरीशस के निवासी के स्वामित्व वाली भारतीय कंपनी के शेयरों से की बिक्री या ट्रांसफर से होने वाले कैपिटल गेन्स पर टैक्स लगा सकती है. मॉरीशस से आने वाले काले धन को रोकने की दिशा में यह प्रभावी कदम है.

स्विस बैंकों से समझौता

स्विट्जरलैंड का राष्ट्रीय बैंक इस बात के लिए तैयार हुआ है कि वह भारतीय खातेदारों के बारे में जानकारी सितंबर, 2019 से भारत सरकार के साथ साझा करेगा. इस बारे में 22 नवंबर, 2016 को स्विस नेशनल बैंक से सरकार ने एक समझौता किया है. इसके तहत भारतीय खातेदार का अकाउंट नंबर, नाम, पता, जन्म तिथि, टैक्स पहचान नंबर, ब्याज, डिविडेंट, खाते में रकम आदि की जानकारी दी जाएगी.

स्विस बैंकों में काले धन के बारे में परस्पर विरोधी दावे आए हैं. पहले यह आंकड़ा आया कि 2017 में स्विस बैंकों में भारतीयों के काले धन में 50 फीसदी की बढ़त हुई है. इसके बाद केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने दावा किया कि 2017 में स्विस बैंक खातों में भारतीयों के नॉन-बैंक लोन और डिपॉजिट में 35 फीसदी की गिरावट आई है. सरकार के मुताबिक, साल 2017 में इन बैंकों में भारतीयों का नॉन बैंक डिपॉजिट 52.4 करोड़ डॉलर तक रह गया है. साल 2014 में इस तरह के जमा की रकम 2.23 अरब डॉलर थी. लेकिन सवाल यह है कि क्या भारतीयों ने विदेश में काला धन भेजना बंद कर दिया है? अगर नहीं, तो उनका पैसा कहां जा रहा है?

टैक्सपेयर्स की संख्या में बढ़ोतरी

पिछले चार साल में इनकम टैक्स देने वालों की संख्या डबल हो गई है और इस दौरान कर संग्रह में 50 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. मोदी सरकार के प्रयासों से ही इनकम टैक्स देने वालों का दायरा बढ़ा है और कर संग्रह भी. साल 2013-14 में भारत में सिर्फ 3.79 करोड़ टैक्सपेयर्स थे, जो 2017-18 तक बढ़कर 6.84 करोड़ हो चुके हैं. इस दौरान सकल कर संग्रह भी 2014-15 के 12.44 लाख करोड़ के मुकाबले 2016-17 में बढ़कर 17.15 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया. बजट अनुमानों के मुताबिक यह 2017-18 में 19.11 लाख करोड़ रुपये का हो सकता है.

इनकम टैक्स जैसे अप्रत्यक्ष कर का संग्रह 30 नवंबर, 2017 तक के वित्त वर्ष में 7.35 लाख करोड़ रुपये का हुआ था. पूरे साल के लिए इसका लक्ष्य 9.27 लाख करोड़ रुपये का था. साल 2014-15 में अप्रत्यक्ष कर का संग्रह 5.46 लाख करोड़ रुपये का था. नोटबंदी के बाद प्रत्यक्ष कर में वृद्धि की दर वित्त वर्ष 2015-16 के 0.6 गुना से बढ़कर 1.3 गुना तक पहुंच गया.

आयकर विभाग की त्वरित कार्रवाई

मोदी सरकार ने इनकम टैक्स एक्ट 2017 में ऐसा बदलाव किया जिससे आयकर अधिकारियों को सर्च या सर्वे ऑपरेशन करने में आसानी हुई. हाथ में ज्यादा अधिकार मिलने के बाद आयकर विभाग ने वित्त वर्ष 2016-17 में कुल 12,526 सर्वे किए और करीब 13,376 करोड़ रुपये के काले धन का पता लगाया.

तो पीएम मोदी काला धन वापस लाने के अपने वादे को पूरी तरह से भले पूरी न कर पाए हों, लेकिन उनकी नीतियों का निश्चित रूप से असर हुआ है.

आईडीएस और पीएमजीकेवाई से कारोबारियों में डर कायम हुआ है जिसकी वजह से करीब 70,250 करोड़ रुपये की अघोषित आय का पता चला है. इनकम टैक्स विभाग के सर्च और सर्वे ऑपरेशंस से करीब 35,460 करोड़ रुपये का काला धन मिला है. करीब 4,100 करोड़ रुपये की बेनामी संपत्ति का पता चला है. BMIT एक्ट के तहत करीब 650 लोगों ने विदेशी बैंकों में जमा अपनी कुल 4,100 करोड़ रुपये की संपत्त‍ि का खुलासा किया. इस तरह करीब 1.14 लाख करोड़ रुपये के काले धन का पता लगा.

(www.businesstoday.in से साभार)

 

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