21वीं सदी के भारत में भुखमरी क्या शर्म की बात नहीं?

रवीश कुमार

अगर आपको यह बताया जाए कि राजधानी दिल्ली में भूख से 3 बच्चे मर गए हैं तब क्या आप थोड़ी देर के लिए भी ठिठक कर जानना चाहेंगे कि दिल्ली में कोई भूख से कैसे मर सकता है. जब भी हम ऐसा भरम पाल लेते हैं तभी कोई ऐसी घटना हमारा भरम तोड़ देती है. दिल्ली मे प्रति व्यक्ति आय 27,424 रुपये है. महीने के हिसाब से बताया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी इस बात की पुष्टि हुई है कि तीनों बच्चियों की मौत भूख से हुई है. पूर्वी दिल्ली के मंडावली इलाके में सोमवार को यह घटना हुई है. हमारे सहयोगी मुकेश सिंह सेंगर ने बताया कि उन तीनों में से शिखा 8 साल की थी, मानसी 4 साल की थी और पारुल 2 साल की थी. तीनों बच्चियों के पिता मंगल रिक्शा चलाते हैं. कुछ दिन पहले उनसे किसी ने रिक्शा छीन ली. मकान मालिक ने घर से निकाल दिया. मंगल काम की तलाश में भटकता रहा, बेटियां भूख से तड़पती रहीं. मर गईं. मंगल पश्चिम बंगाल का रहने वाला है.

लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल में इन तीनों का पोस्टमार्टम हुआ तो पता चला कि भूख से ही मौत हुई है. मां मानसिक रूप से बीमार है. पिता का पता नहीं है इसलिए इनके पास राशन का कार्ड था या नहीं, इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है. ग़रीबों के लिए इतनी योजनाएं हैं, फिर भी ग़रीब भूख से मर जा रहा है. क्या सारे ग़रीब सरकार की योजनाओं के दायरे में नहीं आते हैं, यह मौत यही तो कहती है, रोज भारत के गांवों से लोग शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं मगर शहर आने वाले ग़रीब लोगों के राशन के लिए क्या कोई योजना है. भारत के शहरों में गरीबी पसरी हुई है मगर हम फ्लाईओवर देख देख कर अघाए जा रहे हैं कि यहां रहने वाले ग़रीबों को कोई दिक्कत नहीं है. आप इंटरनेट पर देखिए झारखंड से भूख के कारण होने वाली मौतों की कितनी ख़बरें हैं. झारखंड में जून के पहले हफ्ते में तीन दिन के भीतर दो औरतों की भूख से मौत हो गई. मुख्यमंत्री ने जांच के आदेश दिए. इनमें से एक महिला मीणा मुसहर के बेटे ने बताया था कि उसकी मां ने चार दिनों से कुछ खाना नहीं खाया था. IANS की खबर है. 26 दिसंबर 2017 की ख़बर है कि कोयली देवी की बेटी भूख के कार मर गई. आधार से नहीं जुड़े होने के कारण राशन नहीं मिला था.

ग़रीब जो गांवों में झेल रहे हैं वो शहर आकर भी झेल रहे हैं. आप दिल्ली में सुनते होंगे कि एक ही टिकट पर आप बस में सवारी कर सकते हैं, मेट्रो में चल सकते हैं तो फिर एक ही राशन कार्ड से जो ग़रीब मज़दूर पलायन करते हैं वो एक राज्य से दूसरे राज्य में जाकर राशन क्यों नहीं ले सकते हैं. भूख से होने वाली मौत हम सबके लिए चुनौती है, हम सब फेल होते रहते हैं. लेकिन इसी से संबंधित एक ख़बर ऐसी भी है जो हमारी ग़रीबी का मज़ाक उड़ाती है. वैसे हमारी संस्थाएं भी ग़रीबी का मज़ाक उड़ाती हैं, उनके साथ मज़ाक करती हैं फिर भी यह एक ऐसी घटना है जिसे नोटिस में लिया ही जाना चाहिए.

पहले आप इन तस्वीरों को देखिए. भारत के ग्रामीण इलाकों के बच्चे और बड़े लोग दिख रहे हैं. ये लोग ग़रीब हैं मगर सामने थाली में कई तरह के व्यंजन परोसे गए हैं. इटली के फोटोग्राफर अलेसियो मेमो की यह तस्वीरें हैं जो ड्रीमिंग फूड सीरीज़ के लिए खींची गई हैं. जब इन तस्वीरों को वर्ल्ड प्रेस फोटो फाउंडेशन ने इंस्टाग्राम पर शेयर किया तब फोटोग्राफर की जमकर आलोचना होने लगी. कहा जाने लगा कि आप ग़रीबी को बेच रहे हैं. मामो ने मंगलवार को ड्रीमिंग फूड सीरीज़ के लिए माफी मांगी है. एक तर्क यह दिया गया था कि लोगों को नींद से जगाने के लिए इस तस्वीर का इस्तेमाल किया गया है. ताकि लोग खाना न बर्बाद करें. मामो ने ये सारी तस्वीरें 2011 में यूपी और मध्यप्रदेश में ली थीं. मामो का कहना है कि हो सकता है कि मैंने गलत तरीके से पेश किया मगर मैंने अपना काम ईमानदारी से किया और मकसद यही था कि लोग इसके बारे में सोचें. मगर दुनिया की जानी मानी संस्था वर्ल्ड प्रेस फोटो ने इन तस्वीरों को पोस्ट करने के बाद हटा लिया है. ndtv.com पर इस रिपोर्ट को विस्तार से पढ़ सकते हैं.

हिंसा के लिए क्या हम बहाने ढूंढ रहे हैं?
डॉक्टरों का कहना है कि अस्पताल में जब मरीज़ के रिश्तेदार डॉक्टरों को मारने लगते हैं तो क्या यह भीड़ की हिंसा नहीं है. बिल्कुल भीड़ की हिंसा है. मंगलवार रात को 8 बजे फरीदाबाद के सेक्टर 7-10 के मार्केट में दो गुटों के बीच मारपीट हो गई. वीडियो में दिख रहा है कि एक आदमी गाड़ी के नीचे गिरा हुआ है और उसे कुछ लोग मार रहे हैं. एक के हाथ में पत्थर तोड़ने वाला हथौड़ा भी है जिससे वह नीचे गिरे व्यक्ति को मार रहा है. बीच शहर में यह सब चल रहा है, वीडियो बन रहा है और उसके बाद टीवी पर चल रहा है.

इस मामले में चार लोग घायल बताए जा रहे हैं. इन्हें फरीदाबाद के अस्पताल मे भरती कराया गया है. घटना यह है कि मछगर गांव के 5 युवक एक कार में जा रहे थे, नवादा गांव के 8-10 लोग उनका पीछा करने लगे. भीड़ में फंसने के कारण आगे वाली कार पर हमला शुरू हो गया. इनके ऊपर लाठी डंडे, हथौड़े और बेलचा से हमला किया गया है. घायल खतरे से बाहर हैं. अब आपको उत्तर प्रदेश से एक रिपोर्ट दिखाते हैं.

हाथरस ज़िले में भैंस को इंजेक्शन देकर मारने के आरोप में युवक की पिटाई हुई है. राशिद को रस्सी से बांधकर मारा गया. भीड़ बेकाबू है और बेख़ौफ़ है. अगर आरोप भी था तो पुलिस ये काम कर सकती थी, जांच कर सकती थी. मगर लगता है कि लोगों ने न्याय की प्रणाली पर भरोसा खो दिया है या फिर उन्हें अपनी राजनीतिक प्रणाली पर इतना भरोसा हो गया है कि वे कुछ भी कर गुज़र रहे हैं. मार खाने वाले युवक ने कहा कि उनके पास मरे जानवर उठाने के लाइसेंस हैं. गांव से उन्हें फोन कर मरी हुई भैंस उठाने के लिए बुलाया गया था. पैसों को लेकर बहस हो गई फिर शोर मचा दिया कि भैंस स्मगलर हैं.

गुजरात के ऊना मे भी मरी हुई गाय का खाल लाने के लिए बुलाया गया था बाद में उन्हें पकड़ कर पीट दिया गया. जिसके विरोध में कई जगहों पर गाय की खाल उठाना बंद कर दिया गया था. सोशल मीडिया और सत्ता पक्ष के नेताओं की भाषा एक जैसी हो गई है. कोई इसे 2002 से जोड़ रहा है, कोई 1984 से तो कोई मुंबई दंगों से. इस तरह के तर्कों से जोड़ते जोड़ते बहस फिर से उसी हिन्दू मुस्लिम दायरे में पहुंच जाती है जो रोज़ न्यूज़ चैनलों पर चलती रहती है. एक तर्क दिया जा रहा है कि बीफ खाना बंद कर दे, भीड़ द्वारा होने वाली हत्या रुक जाएगी. उसके जवाब में तर्क दिया जा रहा है कि केरल चुनाव में बीजेपी ने बीफ बंद करने का मुद्दा क्यों नहीं उठाया. गोवा में उसका राज है, वहां बीफ क्यों नहीं बंद किया है. पूर्वोत्तर के राज्यों में बीफ बंद का मसला क्यों नहीं उठाया.

भीड़ की हिंसा को लेकर सुप्रीम कोर्ट गंभीर है, मगर यूपी के मुख्यमंत्री इसे बेवजह तूल देना मानते हैं. पूर्व सासंद शाहिद सिद्दीकी लगातार ट्वीट कर रहे हैं कि हैरान करने वाली बात ये है कि सोशल मीडिया पर गाय के नाम पर होने वाली हत्या को पढ़े लिखे लोग भी उचित ठहरा रहे हैं.

उज्जैन के महाकाल क्षेत्र में 18 जुलाई को पुलिस ने मवेशियों की खाल तस्करी का मामला पकड़ा है. एक ट्रक से 2 हज़ार खालें बरामद की गई हैं. इस बात की जांच हो रही है कि यह खालें गाय की हैं या नहीं. ट्रक में 500 खालें गोवंश की बताई जा रही हैं.

अनुराग द्वारी ने बताया कि ड्राईवर नरेंद्र प्रजापति, क्लीनर उमेश प्रजापति से पूछताछ से पता चला कि वे कानपुर से मध्य प्रदेश के महू आए थे, किराना सामान लेकर लेकिन वहां कुछ तस्करों ने ट्रक में खालें डाल दीं. बाकी एक हज़ार खालें लेने के लिए भैरवगढ़ के रातड़िया में रवि प्रजापत के पास आए थे. यहां से खाल गाड़ी में रखकर कोलकाता की चमड़ा फैक्ट्री में ले जा रहे थे. पुलिस ने रवि प्रजापत को भी गिरफ्तार कर लिया है जो उज्जैन के ही जासापुरा का रहने वाला है.

सोचिए भीड़ को पता चल जाता तो रवि, नरेंद्र और उमेश के साथ क्या हो सकता था. गायों की हालत पर एक सर्वे की ज़रूरत है. गौशालाओं की ज़मीनों पर जो कब्ज़ा हुआ है उसे ही छुड़ा लें तो बड़ी सेवा हो जाएगी. 17 जून की घटना का एक वीडियो है जो देर से दिल्ली पहुंच रहा है. छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में नेशनल हाईवे पर एक गाय सड़क पर बैठी थी. पुलिस की गाड़ी ने उसे कुचल दिया. इस वीडियो में दिखाई दे रहा है कि पुलिस वाले चाहते तो गाय को बचा सकते थे. पर क्या हुआ होगा, कहा नहीं जा सकता है. पर दुर्घटना के बाद पुलिस वाले गाय को लात मार कर देख रहे हैं कि गाय ज़िंदा है या नहीं. दोनों आरोपी पुलिस वालों को पशु क्रूरता अधिनियम के तहत गिरफ्तार भी किया गया था मगर तुरंत ज़मानत मिल गई. एक दिन भी जेल में नहीं रहे. ऐसा नहीं है कि गाय को लेकर हर बात में भीड़ गुस्से में आ जाती है. शायद और सरकार देखती है कि गाय के मामले में आरोपी कौन है, उसका मज़हब क्या है, वगैरह वगैरह.

बैंकों का करोड़ों गबन कर एंटीगा पहुंचा चौकसी
भारत की बातें हो गईं अब हम आपको एंटीगुआ की बातें बताते हैं. एंटीगुआ कैरिबियन द्वीप का हिस्सा है. वेस्टइंडीज़ की टीम के कई खिलाड़ी एंटीगुआ से आते हैं. कर्टली एम्ब्रोस. एक समय में कर्टली एम्ब्रोस जैसे खिलाड़ी के कारण ही वेस्ट इंडीज़ की टीम का ख़ौफ होता था. पंजाब नेशनल बैंक को 13,500 करोड़ का चूना लगाकर भारत से भागे मेहुल चौकसी एंटीगुआ के नागरिक हो गए हैं.

एंटीगुआ के आकार और आबादी पर मत जाइये, इसके खूबसूरत बीच को देख कर आहें भरिए. मेहुल चौकसी यहीं के नागरिक हो गए हैं. अब उनके पास एंटीगुआ का पासपोर्ट है जिसे लेकर वे 132 देशों में आराम से आ जा सकेंगे. ऐसी जगह पर क्या होलीडे मन रही होगी बंदे की, सोच कर ही आपको अफसोस हो रहा होगा. पर कोई नहीं. मेहुल चौकसी ने गबन भी तो 13,500 करोड़ का किया है. उसे भारत में हो रही भीड़ द्वारा हत्याओं से डर लग रहा है, ऐसी मानसिक स्थिति में उन्होंने बिल्कुल ही एक अच्छे वतन का चुनाव किया है जहां वे तरोताज़ा महसूस कर सकें. मेहुल के वकील ने ही कोर्ट को बताया है कि ऐसी ख़बरों के डर से भारत नहीं आ रहे हैं. बताइये कितनी ग़लत बात हुई. मेहुल और नीरव मोदी के साथ 13,500 करोड़ रुपये दांव पर हैं. उसे लोन देने वाले मामूली बैंकर जेल गए, जांच एजेंसियों का सामना किया मगर उसे लोन दिलाने वाले इस खेल से बच गए. इस मुल्क की खूबी ये है कि अगर आपने किसी मुल्क में टैक्स चोरी की है तो यहां आइये, इसके नेशनल डेवलपमेंट फंड में डेढ़ दो करोड़ जमा कीजिए और इसका नागरिक बन जाइये. मेहुल चौकसी ने यही किया. बताइये ईडी वालों को कितना बुरा लगता होगा वे जिस अपराधी को पकड़ना चाहते हैं वो एंटीगुआ में होलीडे मना रहा है. बल्कि अब तो भारतीय भी नहीं रहा. जो भी है, ठीक जगह पर गए हैं मेहुल भाई. भारत का भगोड़ा है, ऐसी वैसी जगह पर जाते तो भारत की बदनामी हो जाती. यहां जब यॉट पर ऐश फरमाते हुए सागरीय पवन का लुत्फ लेंगे तो इसकी ठंडक भारत में पहुंचेगी. इसलिए हम आपको भी एंटीगुआ की ही तस्वीर दिखाते रहे. अंत में आप इन मेहुल चौकसी को देख लीजिए. इन्हें तो प्राइम टाइम के लिए घंटों काम नहीं करना पड़ता है, फिर ये इतने वज़नदार क्यों हो गए हैं. क्या ये कामदार नहीं हैं. क्या इन्हें चौकीदार का डर नहीं है. मेहुल वाकई हीरा हैं हीरा. सदा के लिए. एंटीगुआ के लिए.

क्या एंटीगुआ ने मेहुल चौकसी को नागरिकता देकर भारत को चुनौती नहीं दी है. क्या एंटीगुआ अब अपने इस नए नागरिक को उसके पूर्व देश के हवाले करेगा. एंटीगुआ के लिए मेहुल चौकसी एंटी इंडिया हो गए यह ठीक नहीं किया. यह क्या मात्र संयोग है कि राफेल खरीदने का सौदा किया और उसके लिए दस दिन पहले कंपनी बन गई. उधर इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस में कागज़ों पर मौजूद जियो इंस्टीट्यूट शामिल हो गया.

राहुल गांधी ने रिलायंस डिफ़ेंस के क़रार पर उठाए सवाल
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जो ट्वीट किया है वो ज़्यादा अहम है. भारत के राजनेता कुछ उद्योगपतियों को लेकर सतर्क रहते हैं. उन पर कभी भी सीधा हमला नहीं करते हैं और लगातार हमला तो बिल्कुल नहीं करते हैं. मगर राहुल गांधी ने इस ट्वीट में बाकायदा उद्योगपति अनिल अंबानी की तस्वीर का इस्तेमाल किया है. राहुल ने प्रधानमंत्री को मिस्टर 56 लिखा है. कहा है कि मिस्टर 56 उसे पसंद करते हैं जो सूट पहनता हो, जिसके ऊपर 45,000 करोड़ का कर्ज़ा हो, जिसकी कंपनी दस दिन पुरानी हो, जिसने जीवन में कभी हवाई जहाज़ नहीं बनाया हो, अगर आप इस क्राइटेरिया को पूरा करते हैं तो चार अरब डालर के कांट्रेक्ट का इनाम मिलेगा. दरअसल यह ख़बर नेशनल हेराल्ड ने की है. इसी को ट्वीट करते हुए राहुल ने लिखा है. मगर ट्वीट में अनिल अंबानी की तस्वीर क्या राहुल गांधी के किसी नए इरादे को पेश कर रही है, क्या वे खुलकर अब कुछ ऐसे उद्योगपतियों के बारे में बोलेंगे जिन्हें लेकर मीडिया में चुप्पी रही है, मीडिया से ज्यादा खुद कांग्रेस कभी खुलकर लाइन नहीं लेती है.

नेशनल हैरल्ड के विश्वदीपक ने कारपोरेट अफेयर्स की वेबसाइट पर मौजूद सरकारी आंकड़ों के हवाले से राफेल विमान पर रिपोर्ट की है. इसके मुताबिक राफेल डील से मात्र दस दिन पहले अनिल अंबानी ने रिलायंस डिफेंस लिमिटेड कंपनी खोली. जिसकी कुल अधिकृत पूंजी 4 लाख रुपये है. यानी कंपनी अपने शेयरधारकों को इससे ज्यादा रुपये के शेयर भी जारी नहीं कर सकती है. 2015 में जब प्रधानमंत्री मोदी फ्रांस गए तो पहले ही दिन राफेल पर करार किया था और अनिल अंबानी की कंपनी को हज़ारों करोड़ का सौदा मिल गया. दस दिन पहले बनी कंपनी को हज़ारों करोड़ का सौदा मिलता है, जिसके पास विमान बनाने का कोई अनुभव नहीं है, जिसकी पूंजी मात्र 5 लाख की है. अब देखना ये है कि राहुल गांधी के इस ट्वीट के बाद अनिल अंबानी क्या ट्वीट करते हैं, क्या जवाब देते हैं लेकिन मैं नहीं चाहता कि इस खबर से एंटीगुआ की नागरिकता ले चुके मेहुल चौकसी किसी भी तरह से देखें और उन्हें भारत की नागरिकता छोड़ने का अफसोस हो. वे जहां हैं ठीक से रहें. भारत में कोई न्यूज़ चैनल शायद ही डिबेट करेगा. अभी चैनलों के लिए हिन्दू मुस्लिम से बड़ा कोई टॉपिक नहीं है देश में. यकीन न हो शाम चार बजे से रात के आठ बजे के बीच होने वाली बहसों को देख लीजिएगा.

( NDTV से जुड़ें चर्चित वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार के फेसबुक वॉल से )

 

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