4 साल, 6 बवाल: ऐसे दलितों के मुद्दे पर बैकफुट पर आई मोदी सरकार

नई दिल्ली। SC/ST एक्ट में बदलावों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद पूरे देश में गुस्सा है. कई दलित संगठनों ने सोमवार को भारत बंद बुलाया, इस दौरान पूरे देश में कई जगह हिंसा की तस्वीरें सामने आई हैं. मेरठ, बाड़मेर समेत देश के कई इलाकों में बस फूंकीं, दुकानों में आग लगा दी. हिंसा में कई लोग घायल भी हुए हैं. इस पूरी प्रक्रिया में मोदी सरकार विलेन बन रही है. पिछले काफी समय से मोदी सरकार के प्रति दलितों का गुस्सा उभर कर आया है.

पिछले चार साल में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनके कारण मोदी सरकार दलितों से जुड़े मुद्दों पर बैकफुट पर है. वो चाहे ऊना का मामला हो या फिर रोहित वेमुला का मामला. पढ़ें ऐसे ही कुछ मामले…

1. पुणे में दलित-मराठा संघर्ष, पूरे महाराष्ट्र में असर

अभी हाल ही में महाराष्ट्र के पुणे में भीमा-कोरेगांव की ऐतिहासिक लड़ाई की 200वीं सालगिरह पर 1 जनवरी को कुछ दलित समूहों द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान कथित तौर पर हिंदुवादी संगठनों द्वारा हिंसक हमले किए गए थे. कार्यक्रम में आए दलितों की गाड़ियां जला दी गईं और उन्हें मारापीटा गया. इस हमले में काफी लोग घायल हुए थे तो कुछ लोगों की मौत भी हुई थी.

दलित नेता प्रकाश अंबेडकर की अगुवाई में महाराष्ट्र बंद बुलाया गया था, जिसका असर काफी बड़ा पड़ा था. हालांकि, ये प्रदर्शन हिंसक भी हो गया था, जिसके बाद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मिलने के बाद उन्होंने अपना आंदोलन वापिस ले लिया था.

2. जब ऊना में दलितों को पीटने की घटना आई थी सामने

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृहराज्य गुजरात में ऊना की घटना ने देश को शर्मसार कर दिया था. 11 जुलाई 2016 को गुजरात के ऊना में कुछ दलित युवकों को मृत गाय की चमड़ी निकालने की वजह से गौ रक्षक समिति का सदस्य बताने वाले लोगों ने सड़क पर बुरी तरह पीटा था. दलितों की पिटाई का वीडियो भी जारी किया था.

ऊना की घटना के बाद प्रदेश के दलित समाज के युवा सड़क पर उतरे और मरी हुई गायों को उठाने से मना कर दिया था. ऊना की घटना को लेकर दलित नेता जिग्नेश मेवाणी ने आंदोलन किया और उन्हें दलितों के साथ मुस्लिमों का भी सहयोग मिला. इस घटना की आवाज संसद में गूंजी तो मोदी सरकार बैकफुट में नजर आई. गुजरात चुनाव में जिग्नेश मेवाणी ने बीजेपी के खिलाफ प्रचार किया. चुनाव लड़ा और जीत कर विधानसभा पहुंचे हैं.

3. सहारनपुर में राजपूत-दलित संघर्ष

उत्तर प्रदेश की सत्ता पर योगी आदित्यनाथ के विराजमान होने के एक महीने बाद ही सहारनपुर के शब्बीरपुर में राजपूत-दलितों के बीच खूनी संघर्ष हुआ. पहले 14 अप्रैल अंबेडकर जयंती के दौरान सहारनपुर के सड़क दुधली गांव में शोभायात्रा निकालने के दौरान दो गुटों में संघर्ष हुआ. इसके बाद 5 मई को महाराणा प्रताप जयंती के मौके पर शब्बीरपुर के पास गांव सिमराना में महारणा प्रताप की जयंती पर कार्यक्रम का आयोजन था. सिमराना गांव जाने के लिए शब्बीरपुर गांव के ठाकुरों ने महाराणा प्रताप शोभायात्रा और जुलूस निकाला.

दलित समाज के लोगों ने विरोध किया और जुलूस निकलने नहीं दिया. यहीं से बात बिगड़ी और शब्बीरपुर में दलितों और ठाकुरों के बीच हुई तनातनी ने उग्र रूप धारण कर लिया, जिसके चलते दोनों पक्षों के बीच पथराव, गोलीबारी और आगजनी भी हुई. क्षत्रिय समाज के लोगों ने दलितों के घरों को तहस नहस कर दिया. इस मामले में करीब 17 लोग गिरफ्तार हुए. दलित नेता चंद्रशेखर रावण मुख्य आरोपी के तौर पर अभी भी जेल में हैं.

4. रोहित वेमुला की आत्महत्या

हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे दलित छात्र रोहित वेमुला ने 17 जनवरी 2016 को आत्महत्या कर ली थी. हैदराबाद विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद ने नवंबर 2015 में पांच छात्रों को हॉस्टल से निलंबित कर दिया था, जिनके बारे में कहा गया था कि ये सभी दलित समुदाय से थे. कहा गया था कि कॉलेज प्रशासन की ओर से की गई कार्रवाई की वजह से रोहित वेमुला ने आत्महत्या कर ली थी. इसके बाद देश भर में दलित सुमदाय के लोगों ने और छात्रों ने रोहित की आत्महत्या को लेकर विरोध प्रदर्शन किया और बीजेपी सरकार को कठघरे में खड़ा किया.

5. हरियाणा में दलितों के घर में लगाई आग

हरियाणा दलित उत्पीड़न के मामले में काफी आगे है. फरीदाबाद के सुनपेड़ गांव में एक दलित परिवार को जिंदा जला दिया गया. इस घटना में दो बच्चों की मौत हो गई थी और कई लोग गंभीर रूप से जख्मी हुए थे. बता दें कि सुनपेड़ गांव में करीब 20 फीसदी आबादी दलितों की है और 60 फीसदी सवर्ण हैं. कहा जाता है कि सवर्ण परिवार के लड़के दलित परिवार को परेशान कर रहे थे. एक पुरानी रंजिश के मामले में गांव के सवर्ण जाति के लोग दलित जितेंद्र के घर दाखिल हुए और पेट्रोल डालकर पूरे परिवार को जिंदा जला दिया. इसमें दो बच्चों की मौत हो गई और बाकी परिवार के लोग आग में झुलस गए.

6. और जब गुस्से में मायावती ने दे दिया था इस्तीफा

बीते साल बसपा प्रमुख मायावती ने राज्यसभा से गुस्से में आकर इस्तीफा दे दिया था. मायावती ने आरोप लगाया था कि सदन में उन्हें बोलने नहीं दिया जा रहा है, उनकी आवाज़ को दबाया जा रहा है. मायावती उस दौरान सहारनपुर हिंसा पर बोलने जा रही थीं लेकिन बोलने नहीं दिया गया था. इसी कारण मायावती ने 18 जुलाई को लिखित रूप से राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया था.

 

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