सत्ता से बाहर रहने का खौफ क्या होता है? अब दिखने लगा है

YOGESH KISLAY @yogesh.kislay

सत्ता से बाहर रहने का खौफ कैसा होता है अब दिखने लगा है। जिस समाजवादी पार्टी के गुर्गे मायावती का शीलभंग करने की हद तक चले गए थे, आज वे साथ हो गए।

जिस राष्ट्रवादी कांग्रेस ने सोनिया के नेतृत्व के खिलाफ कांग्रेस से अलग पार्टी बना ली ,वही केसरिया के खिलाफ एकजुट हो गए। जिस ममता ने कांग्रेस से अलग होकर तृणमूल कांग्रेस बनाया ताकि वामपंथियों से मुकाबला कर सके वह कांग्रेस और वामपंथियों दोनों से गलबहियां किए हुए है।

जिस कांग्रेस के खिलाफ एक विचारधारा उभरी और उसमे आरजेडी जैसी पार्टियां बनी वे कांग्रेस के ही पीछे दुम हिला रहे हैं।

दरअसल यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि राजनैतिक पार्टियां आज महज व्यावसायिक संगठन बन गए हैं। उन्हें अपने संगठन के फलने फूलने से भर मतलब है। जब एक ही दल पूरे देश में राज करेगा तो दर्जनों बाकी दलों को खाने पकाने का रोजगार बंद हो जाएगा।

वामपंथियों का इतिहास भारत में यह है कि वे जब सत्ता में आते हैं तो उनका कैडर मालामाल हो जाता है। कांग्रेस इतने समय तक सत्ता में रही कि उनके सदस्यों को आर्थिक स्वावलंबी बनने का पूरा मौका मिला । मुलायम के परिवार करोड़पति समाजवादी बन गए। बहनजी दलितों के नाम पर अरबपति हैं। लालू ने पिछड़ों के नाम पर राज भोगा।

इस तरह सभी पार्टियों ने अपना टारगेट वोटर बनाया और चांदी काटी। अब देश के केसरिया होते ही बाकी दलों को चिंता सताने लगी है। यही खौफ सभी दलों में तारी है। अब उनके रोजगार पर खतरा पैदा हो गया है । सत्ता से बाहर रहकर वे समाजसेवा करेंगे यह भूल जाइए ।

सिर्फ इतना होगा कि ठेका पट्टा, ट्रांसफर पोस्टिंग, चंदा चकारी बंद रहेगा। यह राजनैतिक दलों का संक्रांति काल होता है। इस मामले में कुछ वामपंथी दलों को अपवाद कहा जा सकता है। जैसे भाकपा माले के सदस्यों का विधान सभाओं में नगण्य संख्या होने के बाद भी वे जन सरोकारों से मतलब रखते हैं । बीजेपी का पैतृक संगठन आरएसएस भी सालो भर सामाजिक सरोकारों से जुड़ा होता है जिसका फायदा बीजेपी को मिलता है।

बहरहाल अभी सत्ता से बाहर हुए क्षेत्रीय और मौकापरस्त राजनीतिक पार्टियों से ज्यादा उम्मीद ना रखे। वे अपनी आर्थिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं और इसके लिए उन्हें दुश्मनों से , अपने पोंगा सिद्धांतो से , अपने समर्थकों की भावनाओ से समझौता करना पड़े तो वह भी मंजूर है।

यहां पर आप नीति नैतिकता की उम्मीद तो बिल्कुल नहीं रखिएगा। सच तो यह है कि अगर अधिक दिनों तक सत्ता से बाहर रहे तो ये लोग अप्रासंगिक हो जाएंगे। सत्ता में रहते हुए किए गए अपने गुनाहों से बचने के लिए भी ये हाथ पांव मार रहे हैं। ईश्वर इन्हे सद्बुद्धि दे। जनता की उम्मीदें टूटी और उनकी हाय लगी तो इस जीवन में क्या जीवन के बाद भी उन्हें मुक्ति नहीं मिलेगी ।

(वरिष्ठ पत्रकार योगेश किसलय के फेसबुक वॉल से साभार, ये लेखक के निजी विचार हैं)
 

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