अन्ना का मजाक भले उड़ा लीजिए लेकिन उनकी मांगें देश के लिए बेहद जरूरी हैं
समाजसेवी अन्ना हजारे एक बार फिर अपनी मांगों को लेकर दिल्ली के रामलीला मैदान में अनशन कर रहे हैं. अन्ना की सात साल बाद रामलीला मैदान में वापसी हुई है. जिन मांगों को लेकर साल 2011 में अन्ना हजारे ने अनशन किया था इस बार भी उनकी कई मांगों में वह भी एक मांग शामिल है.
शुक्रवार को जब अन्ना हजारे ने अनशन शुरू किया तब सोशल मीडिया पर लोगों की दो तरह की प्रतिक्रियाएं आई. कुछ लोग अन्ना के समर्थन में बोल रहे थे, तो कुछ ने अन्ना का मजाक भी उड़ाया. लोगों ने अन्ना के इस अनशन पर तंज कसते हुए यह भी लिखा कि एक और केजरीवाल भारतीय राजनीति में आने की तैयारी कर रहा है.
इस बात से समझा जा सकता है कि अन्ना के साल 2011 के आंदोलन से निकल कर राजनीति का रास्ता अख्तियार करने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री लोगों की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे. जिस आंदोलन ने उनको जन्म दिया उसी की मूल बातों को भूल कर आज वो माफी-माफी खेल रहे हैं.
अरविंद केजरीवाल या उनकी सरकार जिस रास्ते पर चल रही है उसके लिए अन्ना को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. हां, ये जरूर है कि केजरीवाल अन्ना के मंच और आंदोलन का इस्तेमाल कर दिल्ली के मुख्यमंत्री जरूर बन गए.
2011 का अन्ना आंदोलन एक बड़े बदलाव की गवाही थी
2011 में अन्ना हजारे ने जनलोकपाल के लिए आंदोलन किया था. उस समय देश में रोज नए-नए घोटाले सामने आ रहे थे. लोगों में गुस्सा था. भ्रष्टाचार से जनता त्रस्त हो गई थी. यही कारण रहा कि अन्ना के जनलोकपाल के लिए किए गए आंदोलन में देश के हर तबके ने साथ दिया और देखते ही देखते आंदोलन ने इतना बड़ा रूप ले लिया कि उस समय की मनमोहन सरकार के लिए यह एक चुनौती बन गया.
अगर यह कहा जाए कि अन्ना के आंदोलन का असर 2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजों पर पड़ा, तो कुछ गलत नहीं होगा.
अन्ना हजारे के 2011 वाले अनशन की तरह इस अनशन को लेकर न तो मीडिया में चर्चा हो रही है और न ही आम जनता इस पर बात कर रही है. जिस तरह से 2011 का आंदोलन मीडिया के लिए उस समय का सबसे बड़ा मुद्दा था, वही आज के मीडिया के लिए कोई खबर नहीं है.
उस आंदोलन ने लोगों की भावनाओं को छुआ था और देश के मध्य वर्ग ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहा था. साथ ही साथ चाय के नुक्कड़ से लेकर ट्रेन की यात्रा तक में लोग इस पर बात कर रहे थे और उन्हें उम्मीद थी कि अन्ना का आंदोलन देश में बदलाव लेकर आएगा, लेकिन ऐसा हो न सका.
अन्ना के आंदोलन से निकले केजरीवाल लोगों के उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे
अन्ना के आंदोलन से निकले अरविंद केजरीवाल एक उम्मीद थे. जब वो राजनीति में आए तो लोगों को को लगा कि जरूर कुछ बदलाव करेंगे लेकिन केजरीवाल भी उसी रास्ते पर चले जिस पर देश की राजनीति चलती आई है. उनके इस तरीके से लोगों में गलत संदेश गया. हो सकता है कि अन्ना के इस आंदोलन में भीड़ कम होने का एक कारण यह भी हो.
भीड़ भले ही उस आंदोलन जैसी नहीं है. मीडिया में जिस तरह 2011 के अनशन को जगह दी जाती थी, इस आंदोलन को नहीं दी जा रही है. यह आंदोलन लोगों के बीच चर्चा का विषय भले ही न बना हो और सोशल मीडिया पर अन्ना हजारे का मजाक उड़ाया जा रहो लेकिन जिन मांगों को लेकर अन्ना अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे हैं वो मांगे निहायत जायज हैं.
आप ये जरूर कह सकते हैं कि सीमा पर जवान मर रहा है लेकिन अन्ना रामलीला मैदान में धरने पर बैठे हैं. आप जरा सोचिए देश का किसान मर रहा है. आंदोलन कर रहा है और कोई उसकी सुन तक नहीं रहा. सरकार कोई भी हो किसानों को हमेशा नजरअंदाज किया गया है और आज भी वही हो रहा है.
जब अन्ना ने 2011 में आंदोलन किया था तब देश में भ्रष्टाचार एक प्रमुख मुद्दा था और कई घोटाले की खबर सामने आ रही थी. आज हालात वैसे नहीं हैं लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि जनलोकपाल और लोकायुक्त की जरूरत खत्म हो गई.
क्या है अन्ना हजारे की मांगें
जनलोकपाल बिल
अन्ना हजारे की पहली मांग वही है जो 2011 में थी यानी जनलोकपाल बिल. अन्ना की मांग है कि सिविल सोसायटी द्वारा ड्राफ्ट किए गए जनलोकपाल बिल को लागू किया जाए. जनलोकपाल एक स्वतंत्र संस्था होगी जो भ्रष्टाचार के मामलों की एक साल के भीतर जांच पूरा कर लेगी.
लोकायुक्त नियुक्ति
अन्ना हजारे की दूसरी मांग राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति को लेकर है. उनका कहना है कि एक बार लोकायुक्त की नियुक्ति होने पर उनका स्थानातंरण नहीं किया जा सकता और नहीं उन्हें पद से हटाया जाएगा. पद से हटाने के लिए विधानसभा से महाभियोग प्रस्ताव को पास कराना होगा.
स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट को लागू करना
अन्ना की तीसरी मांग है कि स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू किया जाए. भारत में हरित क्रांति के जनक प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में नेशनल कमीशन फॉर फारमर्स ने दिसंबर 2004 से अक्टूबर 2006 के बीच में पांच रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी.
इन रिपोर्ट में किसानों से जुड़े तमाम मुद्दों को शामिल किया गया है. साथ ही साथ उसके समाधान के लिए भी बातें सुझाई गई हैं.
अन्ना ने दे दिए हैं सरकार को संकेत
अन्ना ने नरेंद्र मोदी सरकार को 43 बार पत्र लिख कर इन मुद्दों पर चर्चा करने के लिए समय मांगा था लेकिन सरकार के तरफ से कोई जवाब नहीं आया. अन्ना ने कहा कि सरकार के इस रवैये से हार कर अनशन कर रहा हूं. अन्ना के 43 पत्रों का जवाब नहीं देना बताता है कि सरकार इन मुद्दों को लेकर कितनी गंभीर है.
वहीं इस बार अन्ना पिछली की गलतियों से सबक लेते हुए राजनीतिक लोगों को मंच पर जगह नहीं देने की बात कर रहे हैं. अन्ना ने आंदोलन शुरू करते ही सरकार को संकेत दे दिया था कि उनका इरादा क्या है. उन्होंने कहा कि इस उम्र में हार्ट अटैक से मरने की बजाय समाज की सेवा करते हुए मरना पसंद करूंगा.
अन्ना का आंदोलन शुरू हो चुका है. कब तक चलेगा यह कोई नहीं जानता. अगले साल चुनाव होने वाले हैं. पिछले आंदोलन का असर भी इस समय सत्ता सुख ले रही बीजेपी देख चुकी है. अगर आंदोलन को सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया और अन्ना के मांगों पर ठोस निर्णय नहीं हुआ, तो यह आंदोलन सरकार के लिए कहीं दिक्कत न खड़ा कर दे.
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