ममता बनर्जी को बांग्लादेशी अपनी मौसी समझते इसीलिए वे बंगाल में आते हैं: भाजपा

कोलकाता। असम में जारी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के मुद्दे पर बंगाल में राजनीतिक घमासान तेज हो गया है। बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी द्वारा एनआरसी का विरोध किए जाने के बाद भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव व बंगाल के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने उनपर बड़ा हमला बोला है। उन्होंने एनआरसी के बहाने बांग्लादेशी घुसपैठिए का मुद्दा उठाते हुए कहा कि ममता बनर्जी को बांग्लादेशी नागरिक अपनी मौसी समझते हैं इसीलिए वे बंगाल में आ जाते हैं।

भाजपा नेता ने आगे कहा, हमलोग छुट्टी मनाने मामा के घर जाते हैं और 15 दिन में लौट आते हैं, लेकिन बांग्लादेश के आतंकवादी और जाली नोट चलाने वाले वहां से अपनी मौसी यानी ममता बनर्जी के घर आ रहे हैं। कोलकाता में कम पैसे में बांग्लादेश के मजदूर मिल जाते हैं। साथ ही यहां उन लोगों ने मजदूरों की आय घटा दी है।

भाजपा नेता ने कहा, असम में 40 लाख लोगों ने नागरिकता का प्रमाण पत्र नहीं दिया जिसके चलते एनआरसी ने उनका नाम हटा दिया गया। परंतु, ममता दीदी घुसपैठिए के बचाव में बोलकर उन्हें संरक्षण देना चाहती है। उन्होंने इशारा करते हुए कहा कि असम के बाद अब बंगाल की ही बारी है। बंगाल में भाजपा की सरकार बनने पर अवैध प्रवासियों की पहचान करने के लिए इसी तरह का कदम उठाया जाएगा। भाजपा महासचिव ने दावा किया कि अगर असम में एनआरसी के फाइनल ड्राफ्ट में 40 लाख लोग अवैध पाए गए हैं तो बंगाल में इनकी संख्या करोड़ों में होगी।

इसके साथ ही उन्होंने दावा किया कि पश्चिम बंगाल के युवा बांग्लादेश के अवैध प्रवासियों की पहचान करना चाहते हैं क्योंकि उनकी वजह से उन्हें बेरोजगारी और कानून व्यवस्था जैसी तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ता है। भाजपा उनकी मांग का समर्थन करती है।

बता दें कि असम में एनआरसी के अंतिम ड्राफ्ट में 40 लाख लोगों को अवैध घोषित किए जाने को लेकर ममता ने भाजपा पर निशाना साधते हुए इसे वोट पॉलिटिक्स करार दिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरनेम के आधार पर सूची से लोगों का नाम हटाया गया है।

 

देश-विदेश की ताजा ख़बरों के लिए बस करें एक क्लिक और रहें अपडेट 

हमारे यू-टयूब चैनल को सब्सक्राइब करें :

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें :

कृपया हमें ट्विटर पर फॉलो करें:

हमारा ऐप डाउनलोड करें :

हमें ईमेल करें : [email protected]

Related Articles

Back to top button