गांधी के सत्याग्रह से शेल्टर होम रेप केस के कलंक तक मुजफ्फरपुर की कहानी

अजय सिंह 

18 अप्रैल 1917 को जब महात्मा गांधी को सरकारी निषेधाज्ञा तोड़ने के आरोप में बिहार के मोतिहारी के कोर्ट में पेश किया गया, तो महात्मा गांधी ने कहा कि, ‘मैंने निषेधाज्ञा इसलिए नहीं तोड़ी कि मैं क़ानून का सम्मान नहीं करता. बल्कि मैं ने अंतरात्मा की आवाज़ पर क़ानून तोड़ा.’ ये भारत में गांधी के राजनीतिक सफ़र का आग़ाज़ था. गांधी हमेशा ‘अंतरात्मा की आवाज़’ के दिखाए रास्ते पर चले.

भारत लौटने के बाद अपने पहले सत्याग्रह अभियान के लिए गांधी मोतिहारी और चंपारण (दोनों ही बिहार की तिरहुत प्रमंडल का हिस्सा हैं) बाद में पहुंचे थे. इस से पहले मुजफ्फरपुर स्टेशन पर आचार्य कृपलानी ने महात्मा गांधी का स्वागत किया था. आचार्य कृपलानी उस वक़्त मुजफ्फरपुर के लंगट सिंह कॉलेज में पढ़ाते थे. इस कॉलेज को आज एलएस कॉलेज के नाम से जाना जाता है. कॉलेज में आज भी महात्मा गांधी से जुड़ी यादों और विरासत को सहेज कर रखा गया है.

गांधी का सियासी किरदार यहीं गढ़ा गया

गांधी का सियासी किरदार गढ़ने में पूरे तिरहुत डिवीज़न ने बहुत अहम रोल निभाया था. मुजफ्फरपुर उस वक़्त तिरहुत डिवीज़न का मुख्यालय हुआ करता था. गांधी ने जिन शब्दों में इलाक़े के किसानों-मज़दूरों की तारीफ़ की थी, वो यादगार है. गांधी ने कहा था: ‘याद रखना चाहिए कि चंपारण में मुझे कोई नहीं जानता था. सभी किसान मुझसे अनजान थे. चंपारण से बाहर की दुनिया के बारे में उन्हें पता नहीं था. फिर भी उन्होंने जिस तरह से मेरा स्वागत किया, वो ऐसा था जैसे हम ज़माने पुराने दोस्त हों. मैं ये बात बढ़ा-चढ़ाकर नहीं कह रहा हूं. ये हक़ीक़त है. आज किसानों के साथ इस बैठक में मेरा भगवान, सत्य और अहिंसा से सीधा सामना हुआ.’ कहने का मतलब ये कि गांधी ने अपने आगे के सियासी और आध्यात्मिक सफ़र की कुंजी यहीं से हासिल की थी.

ये बेहद अफ़सोस की बात है कि आज जब हम मुजफ्फरपुर से गांधी के रिश्ते का जिक्र कर रहे हैं, तो इस जगह की छवि पर बदनुमा दाग़ लग चुका है. और ये दाग़ उस वक़्त लगा है, जब कुछ महीने पहले ही महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह की सौवीं सालगिरह मनाई गई थी. आज ये कहना गलत नहीं होगा कि मुजफ्फरपुर आज के भारत के हालात की छोटी सी मिसाल है. बच्चियों का शेल्टर होम चलाने वाला ब्रजेश ठाकुर, जो उनके साथ बलात्कार का आरोपी भी है, वो उस बीमार चरित्रहीनता का प्रतीक है, जो हमारे सामाजिक और राजनैतिक जीवन को लग गई है.

सड़ा-गला सामाजिक माहौल और दुष्चरित्र ताकत

मुजफ्फरपुर बहुत छोटा सा लेकिन बहुत पुराना शहर है. ये वैशाली नाम की एक जगह से जुड़ा हुआ है. वैशाली का भारत के इतिहास में बहुत अहम स्थान है. प्राचीन भारत में ये एक गणराज्य का केंद्र हुआ करता था. हमारी सभ्यता से इसका ताल्लुक आज के हालात के बिल्कुल उलट है. आज इस इलाक़े को घोर अपराधीकरण, भ्रष्टाचार जैसी बहुत बुरी बीमारियां लग चुकी हैं. ब्रजेश ठाकुर, बच्चियों के शेल्टर होम की आड़ में कई एनजीओ चलाता था. उसके नाम से कई अखबार छपते थे. वो ऐसे ही सड़े-गले सियासी-सामाजिक माहौल में खूब फल-फूल रहा था. ये असंभव सी बात है कि लोग उसकी करतूतों से वाकिफ न हों. लेकिन, हो सकता है कि उसकी आपराधिक प्रवृति और उसकी दुष्चरित्रता को ही लोग उसकी ताकत समझते रहे हों.

ब्रजेश ठाकुर

                                                ब्रजेश ठाकुर

इस वक्त तिरहुत इलाक़े में जो सियासी माहौल है, उसमें ब्रजेश ठाकुर कोई अपवाद नहीं है. उसकी तरह की कई मिसालें उस इलाक़े के नेताओं के बीच मिलती हैं. जैसे आनंद मोहन सिंह, रामा सिंह. हक़ीक़त ये है कि आपराधिक छवि वालों को किसी पेशेवर तजुर्बेकार नेता पर तरज़ीह मिलती है. इस बात की मिसाल खुद ब्रजेश ठाकुर है, जो हाल के तमाम मुख्यमंत्रियों के क़रीबी के तौर पर देखा गया. इनमें मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी शामिल हैं. ब्रजेश ठाकुर को लालू प्रसाद यादव का बेहद करीबी माना जाता था. एक बार जब वो आनंद मोहन सिंह की पार्टी से चुनाव लड़ा तो बहुत ही कम वोटों से चुनाव हारा था.

अब शर्मिंदा और सदमें में होने का नहीं अंतरात्मा में झांकने का वक्त है

अखबार के प्रकाशक के तौर पर उसे ये अधिकार था कि वो पत्रकारों को राजकीय मान्यता प्राप्त पत्रकार का दर्जा दे या न दे. इस बात पर भी विश्वास नहीं होता कि पत्रकारों को उसका असली चरित्र नहीं मालूम था. सच तो ये है कि ब्रजेश ठाकुर न केवल राजनेताओ, बल्कि मीडिया, अफसरशाही, एनजीओ और पूरे समाज का चहेता था. वो धूर्त अपनी आपराधिक गतिविधियों को बड़े आराम से समाजसेवा की आड़ में चला रहा था. लोग ‘अंतरात्मा की आवाज’ पर चलने के बजाय ब्रजेश ठाकुर से धोखा खाने को तैयार थे.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद को गांधीवादी विचारधारा पर चलने वाला नेता बताते हैं. उनका ये कहना बिल्कुल सही है कि वो मुजफ्फरपुर की घटना से सदमे में हैं और शर्मिंदा हैं. लेकिन मुजफ्फरपुर जो हुआ उस पर सिर्फ ‘सदमा और शर्मिंदगी’ वाली प्रतिक्रिया नाकाफी है. आज जरूरत अंतरात्मा में झांकने की है. नीतीश कुमार जैसे नेताओं, अफसरशाही, मीडिया, न्यायपालिका और पूरे समाज में अगर कानून को लेकर सम्मान है, तो उन सबको अपने भीतर झांक कर ‘अंतरात्मा की आवाज़’ सुननी चाहिए. ठीक उसी तरह जैसे पड़ोस के चंपारण ज़िले में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुन कर आगे का सफ़र तय किया था.

शायद वो कम से कम ये तो कर सकते हैं कि मुजफ्फरपुर को पूरी तरह से पतन के रास्ते पर जाने से रोक लें. मुजफ्फरपुर ने महात्मा गांधी से लेकर बदनाम माफिया मुन्ना शुक्ला तक आने में पतन का लंबा रास्ता तय किया है.

 

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