70 वर्षों से कांग्रेसी दिमक ने खोखला कर दिया है देश के चारों स्तम्भ – न्यायालय भी नहीं बचा पाया ख़ुद को

भारत के लोकतंत्र के चार स्थंभ है कार्यांग, शासकांग, न्यायांग और मीडिया। भारत का दुर्भाग्य है की चारॊं के चारों स्थंभ भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं। इन चारों स्थंभ में भ्रष्टाचार नामक दीमक लगने के कारण आज लॊकतंत्र की अस्मिता खतरे में है। भ्रष्टाचार के मामले में आज ये चारों एक से बढ़कर एक हो गये हैं। प्रामाणिकता, पार्दशिकता और देश के प्रति प्रेम की आस इनसे लगाना मुर्खता होगी।

जब भारत एक जनतांत्रिक देश हुआ तो इन चारों स्थंभॊं मे से केवल न्यायांग ही एक ऐसा स्थंभ था जो संपूर्ण रूप से स्वतंत्र था। वह इसलिए की भारत के कॊने में बसे एक आम नागरिक को भी न्याय मिले। व्यक्ति अमीर हो या गरीब, सत्ताधारी हो या भिखारी सबको एक समान देखा जाए और अपराधी चाहे कॊई भी हो उसको दंड मिले। भारत का प्रत्येक नागरिक न्याय के लिए न्यायालय की ऒर देखता है। आज भी व्यक्ति किसी मुश्किल में पड़ता है तो वह न्यायालय की तरफ़ भागता है। क्यों कि उसका विश्वास है कि न्यायलय उसे कभी धोखा नहीं देगा।

लेकिन वास्तव इससे विपरीत है। इस देश में एक आम नागरिक को न्याय कभी नहीं मिलता। और अगर भगावान की दया से मिल भी जाये तब तक वह इस दुनिया से ही चल बसा होता है। दुनिया के किसी भी देश में न्यायालय से न्याय मिलने में इतना विलंब नहीं होता होगा जितना की भारत में होता है। आज का दिन ऐसा है कि पैसेवालों को न्याय चुटकीयों में मिलता है और एक गरीब न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाते हुए ही मर जाता है।

देश का न्यायांग खॊखला हो चुका है। भ्रष्टाचार का तांडव न्यायालय के अंदर भी दिखाई पड़  रहा है। जिस तरह के निर्णय न्यायालय के आंगन से आ रहा है उससे यह प्रतीत होता है की न्यायलय देश के लिए नहीं बल्कि किसी एक पार्टी के लिए काम कर रहा है। हिन्दू विरॊधी निर्णय लेने के लिए खुद न्यायालय और जज शक के खटघरे में खड़े हैं। जनता के मन में यह शक पनप रहा है की देश का न्यायालय कहीं हिन्दू विरॊधी तो नहीं।

देश में कई वर्षों से कई गहन विचार न्यायलय के अंगने में न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। न्याय के लिए न्यायपालिका के दरवाज़े पर दस्तक दे रहे हैं। लेकिन न्यायलय के पास इस विचारों को देखने का भी फुरसत नहीं है। जब बात हिन्दू आचरणॊं पर प्रतिबंद लगाने में आती है तो न्यायपालिका तुरंत हरकत में आती है और हिन्दू आचरणॊं पर प्रतिबंद लगाती है। जब कश्मीरी पंडितों को न्याय दिलाने की बात आती है तब कानूनी पेचीदगि का वास्ता देकर न्यायालय अपना पल्ला झाड़ता है, लेकिन रॊहिंग्या मुसलमानों को देश से निकाले जाने के खिलाफ कॊई केस दायर करता है तो तुरंत कार्यवाही लेती है और उनको देश में रहने की अनुमति देती है। लोगों का कहना है कि लंबे अरसे से जनता के कई महत्वपूर्ण मुद्दे न्यायालय में लटका हुआ है उनको जल्द से जल्द निपटाने के बजाए न्यायपालिका अल्प विचारों में टांग अड़ाकर अपना और जनता का समय बरबाद कर रहा है।

देश के न्यायलय के इस रवय्ये से जनता बहुत परेशान है। इसी के चलते महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद जी ने न्यायालय और जजों को नसीहत दी है। उन्हों ने कहा कि न्यायपालिका में ऐसी भाषा का प्रयॊग हो जिसे आम जनता बड़ी आसानी से समझे। संविधान दिवस पर सर्वोच्च न्यायलय द्वारा आयॊजित कार्यक्रम में उन्होंने न्याय मिलने में होनेवाली देरी, गरिबों को न्याय मिलने में आने वाली समस्याओं और जजों की नियुक्ति में पारदर्शिता को लेकर न्यायपलिका को आड़े हाथों लिया। मान्य राष्ट्रपति जी ने कहा कि देश के न्यायालय में लंबे समय से लटके हुए मुद्दों को जल्द से जल्द निपटाकर जनता को न्याय दिलाने में तेज़ी लाने का प्रयास न्यायपालिका को करना चाहिए।

वास्तव में सर्चोच्च न्यायालय में जजों का रिश्वत खोरी का मामला सामने आया है जिसे लेकर सर्वोच्च न्यायलय के अंदर ही गर्मी का माहोल बना हुआ है। उस पर आरोप भी है कि अपने अंगने में कई वर्षों से अटके हुए मामलों को निपटाने के बजाए न्यायलय केंन्द्र सरकार के हर फैसले में टांग अड़ा रही है। जब से मोदी सरकार ने कॊलिजियम व्यवस्था को हटाकर जजों के नियुक्ति में पारदर्शिता लाने की बात की है तब से ही न्यायालय और जज केंन्द्र सरकार के पीछे हाथ धो के पड़े हैं। कुछ ही दिन पहले लोकसभाध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने भी खुद को सरकार से ऊपर समझनेवाले जजों को फटकार लगाया है।

अंग्रेजों द्वारा शासन में लाई गयी कॊलिजियम व्यवस्था का दुरुपयोग कांग्रेस सरकार पिछले 60 सालों से करती हुई आई है। अपने निजी स्वार्थ के लिए कांग्रेस ने न्यायपालिका का भी दुरुपयोग किया है इस बात कोई अनभिज्ञ नहीं है। जब से जजों की नियुक्ति के लिए रिश्वत देने की सबूत सामने आये हैं तबसे ही न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति  के लिए पारदर्शी व्यवस्था बनाने की मांग उठी है जिसका पुरज़ोर विरॊध देश की तमाम न्यायपालिका और जज कर रहे हैं। राष्ट्रपति जी से फटकार लगने के बाद अगर न्यायांग में पारदर्शिता आती है तो देश के आम नागरिक चैन की सांस ले सकता है।

 

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