77 करोड़ से 75 हजार करोड़ कैसे पहुंचा यूपी की बिजली कंपनियों का घाटा, साजिश के पीछे कौन ?

लखनऊ। यूपी की बिजली कंपनियां भारी घाटे में हैं। उपभोक्ता परिषद ने चौंकाने वाला खुलासा किया है। वर्ष 2000-01 में कम्पनियों का कुल घाटा 77 करोड़ से अब 75 हजार करोड़ के ऊपर पहुंच गया है। यह घाटा यूं ही नहीं हो रहा है। इसके पीछे है भ्रष्टाचार, बिजली चोरी और जिम्मेदारों की फिजूलखर्ची। उपभोक्ता परिषद ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बिजली कंपनियों के घाटे की उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग की है। ताकि इस गड़बड़झाले का खुलासा हो। दोषियों को सजा मिले। नहीं तो प्रबंधन की कारगुजारियों को सूबे के उपभोक्ताओं को भुगतान पड़ेगा।

विरोधाभासः सुधार के वादे और बढ़ता घाटा

सूबे की बिजली कंपनियों का भारी घाटा तब बढ़ रहा है, जबकि  बिजली कम्पनियां सुधार के बड़े-बड़े दावे करती हैं।  राज्य विद्युत परिषद का गठन 1959 में हुआ।  जिसका कुल घाटा वर्ष 2000 में मात्र 10 हजार करोड़ पहुच जाने पर ही राज्य विद्युत परिषद को भंग कर कई कम्पनियों में विभाजित कर दिया गया।  दावे किये गये कि अब बिजली कम्पनियों  की आर्थिक हालत में सुधार होगा। मगर, खुद कंपनियों का मानना है कि अब उनका कुल घाटा लगभग 70738 करोड़ है और वहीं पावर फार आल में माना कि वर्ष 2015-16 तक बिजली कम्पनियों का कुल घाटा लगभग 72770 करोड़ है। वर्तमान में यह 75 हजार करोड़ के ऊपर होगा, इसके लिये कौन जिम्मेदार है।

क्या कहते हैं उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष

विद्यत उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा बिजली कंपनियों की ऑडिट की मांग करते हैं। कहते हैं कि लगातार बढ़ रहे घाटे की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए। प्रबंधन के लिए जिम्मेदार लोग किसी घोटाले में भी शामिल हो सकते हैं।  इसका खामियाजा प्रदेश की जनता को भुगतना पड़ रहा है। इस घाटे का मुख्य कारण फिजूखर्ची बिजली चोरी भ्रष्टाचार गलत प्लान प्रबन्धन की अक्षमता है।  बिजली कम्पनियों द्वारा 14 मार्च, 2013 में एफआरपी (वित्तीय पुनर्गठन योजना) लायी गयी और जिसको उप्र के मंत्रिमण्डल ने अनुमोदित किया । अब उदय व पावर फार आल के अनुबन्ध तहत सुधार की बात हो रही है। वर्तमान में बिजली कम्पनियों के वर्षवार घाटों पर नजर डालें तो बहुत कुछ स्थिति साफ बयां हो रही है कि कम्पनियां बड़े-बड़े दावे भले ही कर लें लेकिन उनका घाटा लगातार बढ़ रहा है और जिसका खामियाजा प्रदेश की जनता भुगत रही है। सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि पिछले वर्षो में बिजली कम्पनियों का घाटा जब सबसे ज्यादा बढ़ा है उस दौरान बिजली दरों में सबसे ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई है, अतिरिक्त रेगुलेटरी सरचार्ज वसूला गया है। जो यह सिद्ध करता है कि बिजली कम्पनियों की उदासीनता व फिजूलखर्ची के चलते यह विषम परिस्थिति आयी है।

आंकड़े बोलते हैं

वर्ष                          बिजली कम्पनियों का कुल घाटा (करोड़ में)

2000-01                77 करोड़ (एफ0आर0पी0 के अनुसार)

2005-06                5439 करोड़ (एफ0आर0पी0 के अनुसार)

2007-08                13162 करोड़ (एफ0आर0पी0 के अनुसार)

2009-10                20104 करोड़ (एफ0आर0पी0 के अनुसार)

2010-11                 24025 करोड़ (एफ0आर0पी0 के अनुसार)

जनवरी 2016 में         70738 करोड़ (उदय अनुबन्ध के अनुसार)

2015-16                 72770 करोड़ (पावर फार आल के अनुसार)

वर्तमान में                  लगभग 75000 करोड़ के ऊपर

 

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