9वीं के छात्रों को ‘पास’ करने पर शिक्षा विभाग का जोर

student04मुंबई। शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत 1 से 8वीं तक के छात्रों को पास करना अनिवार्य है। 9वीं से यह नियम लागू नहीं होता। हालांकि शिक्षा जगत में चर्चा गर्म है कि अब 9वीं के छात्रों को भी अनिवार्यत: पास करने पर जोर दिया जाएगा। इस मामले पर शिक्षकों और शिक्षा विभाग से जुड़े वरिष्ठ अधिकारियों की अलग-अलग राय सामने आ रही है।

एक ओर शिक्षकों का कहना है कि 8वीं तक के छात्रों को अनिवार्य रूप से पास करने के चलते वे पढ़ाई पर ध्यान नहीं देते, नतीजतन पढ़ाई में कमजोर हो जाते हैं। इस वजह से वे अगली कक्षा में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते। दूसरी ओर शिक्षा विभाग के मुंबई क्षेत्र के उप-निदेशक बी.बी. चव्हाण ने आरोप लगाया है कि शिक्षक और स्कूल मिलकर 9वीं के छात्रों को जानबूझ कर फेल कर देते हैं, ताकि उनके स्कूल का 10वीं का रिजल्ट 100% आ सके। वे 9वीं में छात्रों को फेल कर उन्हें फॉर्म-17 थमा देते हैं और निजी रूप से परीक्षा देने को कहते हैं।

बता दें कि पिछले दिनों इसी संदर्भ में शिक्षा विभाग द्वारा एक जीआर जारी किया गया था, जिसके अंतर्गत स्कूलों को 9वीं का पासिंग प्रतिशत 100% करने की हिदायत दी गई थी और यदि कोई छात्र फेल होता है, तो उसे उसी वर्ष जुलाई महीने में पुनः परीक्षा देकर अपना साल बचाने का अवसर भी मिलेगा।

चव्हाण के मुताबिक, नागपुर सत्र के दौरान प्रमुख सचिव ने सभा ली थी। तब मुख्यमंत्री ने सभी स्कूलों को माध्यमिक स्तर का ड्रॉप आउट कम करने का आदेश दिया था। चव्हाण ने बताया, ‘हमने पिछले साल अगस्त-सितंबर में सर्वे कर 9वीं और 10वीं के छात्रों का डेटा जमा किया था। हमने इस तरह का सर्वे पहली बार किया है। इसमें हमने पाया उत्तर, पश्चिम और दक्षिण मुंबई में कुल 115 स्कूल ऐसे हैं जिनमें 50 से ज्यादा छात्रों को मार्च 2015 की 9वीं की परीक्षा में फेल किया गया है। इस वजह से हमने शिक्षकों और प्रधानाचार्यों से कहा है कि यदि किसी विषय में कई छात्र फेल होते हैं, तो उसके लिए उस विषय के शिक्षक और उस स्कूल के प्रधानाचार्य जिम्मेदार होंगे।’

स्कूलों को भेजा था कारण बताओ नोटिस: शिक्षा विभाग की ओर से अक्टूबर में सभी स्कूलों को कारण बताओ नोटिस भेजा जा चुका है। उसमें स्कूलों से पूछा गया था कि 9वीं में उनके स्कूल में इतने ज्यादा बच्चे क्यों फेल हो रहे हैं और फिर 10वीं का पासिंग पर्सेंटेज इतना ज्यादा कैसे रहा। चव्हाण ने बताया कि स्कूलों की तरफ से इसका जवाब दिया जा चुका है, पर फिलहाल उन्हें प्राप्त नहीं हुआ है।

क्या चाहता है शिक्षा विभाग: बी.बी. चव्हाण कहते हैं, ‘हम चाहते हैं कि छात्रों को जानबूझ कर फेल न किया जाए। जिस तरह शिक्षक 10वीं के छात्रों पर विशेष रूप से ध्यान देते हैं, वैसे ही वे 9वीं के छात्रों पर भी दें। 10वीं की परीक्षा बाहरी परीक्षा है, जबकि 9वीं की गृह परीक्षा। ऐसे में 9वीं के परीक्षार्थियों का रिजल्ट 10वीं से बेहतर होना चाहिए, पर हो विपरीत रहा है। बच्चों को फेल कर देने से उनमें चिड़चिड़ापन, गुस्सा भर जाता है और वे गलत कामों में लिप्त होने लगते हैं। लेकिन यदि उन्हें 9वीं में पास होने दिया और उन्हें 10वीं की परीक्षा देने का मौका दिया गया तो उनमें आत्मविश्वास आएगा। 10वीं पास करने के बाद वे बहुत से काम करने योग्य भी हो जाएंगे।’

फेल का कारण ‘कठिन सिलेबस’: टीचर डेमोक्रैटिक फ्रंट के उपाध्यक्ष राजेश पांड्या का इस मामले पर कहना है कि ऐसा नहीं है कि शिक्षक जानबूझ कर छात्रों को फेल कर रहे हैं। वे 10वीं के छात्रों की तरह ही 9वीं के छात्रों को पढ़ाते हैं। कमजोर छात्रों पर खास ध्यान देते हैं, लेकिन 8वीं तक का सिलेबस बेहद आसान होने के चलते और छात्रों को अनिवार्य रूप से पास करने के चलते वे पढ़ाई को गंभीरता से नहीं लेते। 9वीं का सिलेबस मुश्किल व लंबा है, जिस वजह से छात्र 9वीं में फेल हो जाते हैं। पांड्या चव्हाण के आरोप को गलत बताते हुए कहते हैं, अनुदानित स्कूलों में छात्रों को फॉर्म-17 भरकर निजी रूप से परीक्षा देने को भी नहीं कहा जाता है। यह आरोप गलत है।

 

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